इस दिवस पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी अपनी ज्ञान ओरकविता के माध्यम से जनसंदेश देते कहते है कि
इस दिवस को उन सभी दुर्लभ बीमारियों केनाम पर मनाया जाता है जिनका प्रतिशत जनसाधारण में कम पर इलाज में असाध्य है।हमारे भारत देश मे भी ऐसे दुर्लभ रोगों से हर 20 में 1 भारतीय प्रभावित है। इस दिवस को फरवरी के अंतिम दिन में प्रत्येक साल दुर्लभ रोग दिवस के रूप में विश्वस्तर पर मनाया जाता है। इन दुर्लभ रोगों को अंग्रेजी में ऑरफन डिजीज नाम से जानते हैं।
विश्व भर में लगभग 350 मिलियन लोग दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं।
हमारे देश भारत की इंडियन सोसायटी फॉर क्लीनिकल रिसर्च यानी ISCR के अनुसार भारत में 70 मिलियन और दुनिया भर में लगभग 350 मिलियन लोग इन दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं।अध्ययन बताते है कि लगभग विश्व भर में 7,000 से अधिक विभिन्न प्रकार के दुर्लभ और आनुवंशिक रोग यानी Genetic Diseases के प्रकार उपलब्ध हैं।जिनमें से कैंसर और एड्स से अधिक लोगों को प्रभावित किया है और इनमें से अधिकतर का प्रसार तेज होता है, इनसे मनुष्य जीवन को भी बड़ा खतरा होता है। इन दुर्लभ बीमारियों में से 80 प्रतिशत में आनुवंशिक उत्पत्ति होती है।
ये दुर्लभ बीमारियां के कुछ रूप है,जो विश्व स्तर पर अपना विस्तार करके मनुष्य जाति को बहुत क्षति पहुँचाती है-जैसे:-
एसेंथामोएबा केराटाइटिस
क्रुत्ज़फेल्ट-जैकब रोग (CJD)
सिस्टसरकोसिस
ओर विशेषकर वर्तमान की कोरोना ओर उसके ओर रूप की असाध्य बीमारियां है।
इस दिवस सम्बन्धित स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी की ज्ञान कविता इन दुर्लभ बीमारियों के साथ साथ इनके निदान का ज्ञान देते हुए इस प्रकार से है कि,
दुर्लभ रोग दिवस पर ज्ञान कविता
खांसी बुखार दस्त जुखाम
सूजन दर्द घुटन खुश्की।
रक्त खराब त्वचा फटना
नस बन्द हड्डी कमजोर हो खिसकी।।
ये तो रोग बाहरी लक्षण
जो होते है लगभग हर रोग।
कुछ ही रोग ज्ञात चिकित्सा
अभी बहुत पता नहीं है रोग।।
जिन रोगों का इलाज नहीं सम्भव
ओर वे रोग जो अल्प संग असाध्य।
जिनकी ओषधि अभी नहीं है विकसित
उन्हें दुर्लभ रोग कहने को बाध्य।।
सात हजार से अधिक है संख्या
जिन्हें दुर्लभ बीमारी दिया है नाम।
बीस में से एक चपेट इन रोगी
जो असाध्य दुर्लभ बीमारी अनाम।।
मनुष्य शरीर के हर अंग में
छिपे है अनेक दुर्लभ रोग।
सतही स्तर पर इलाज अभी सम्भव
मूल जड़ चिकित्सा अभी नहीं निरोग।।
भारतीय आयुर्वेद महान है
जिसमें सभी रोग निदान।
योग संतुलन करे प्राण मन संग
सहायता प्रकृति ले ओषधि ज्ञान।।
अभी उपलब्ध है भौतिक चिकित्सा
जिसकी केवल शरीर तक पेंठ।
आत्मा से मन और मन से तन है
अनन्त जन्म के कर्म रोग दें ऐंठ।।
कर्म और उसका फल स्वास्थ है
जैसा कर्म वैसा फल रोग।
यो कर्म सुधारों दैनिक दिनचर्या
जप तप दान करें सर्व निदान दुर्लभ रोग।।
जप से मन स्वस्थ होता है
ओर तप से होता शरीर स्वस्थ।
दान करें से प्रतिक्रिया कर्म मिटती
त्रिदोष मिट होता मनुष्य स्वस्थ।।
यही भारतीय अध्यात्म सिखाता
की सदा ईश्वर नाम जपो।
दैनिक दान करो सहायता
शुभ कर्मी बन सदा तपो।।
बुरी क्रिया की प्रतिक्रिया रोग है
यो कभी बुरा न करो विचार।
सुधारों स्वधय्यन कर नित्य मन तन
सदा सुख पाओ शुद्ध आचार व्यवहार।।
विश्व शिरोमणि अध्यात्म है भारत
जिसमें सभी चिकित्सा रोग।
उसका अध्ययन और प्रचार आवश्यक
वही अपनाओ ओर रहो सदा निरोग।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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