
भारत का अन्नदाता, भारत का किसान आज अपनी मांगों को लेकर, अपने हक की लड़ाई को लेकर दिल्ली समेत पूरे भारत में अपना विरोध दर्ज करवा रहा है। लेकिन इस आंदोलन की खास बात यह है कि “किसान आंदोलन आज़ादी के बाद किसी भी सरकार के खिलाफ अबतक का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण आंदोलन है।”

लगभग 2 महीने से किसान दिल्ली में अपना आंदोलन कर रहे हैं, कड़कड़ाती ठंड, शीतलहर, बारिश इन सबके बीच भी भारतीय अन्नदाता दिल्ली में डटा हुआ है, टस से मस नहीं हुआ है। भारत के अन्नदाता ने इस आंदोलन से दिखा दिया कि जब वो खेती करता है तो हर प्राकृतिक आपदा से खुद ही निपटता है। उसे ठंड, बारिश, आंधी तूफान डिगा भी नहीं सकते हैं।
इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी खास बात यह रही कि “ये किसान आंदोलन किसी भी सरकार के खिलाफ आज़ादी के बाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन है”, और भारत सरकार सुनना तो छोड़िए अन्नदाता पर न जाने क्या-क्या आरोप लगा रही है।

भारत के इतिहास में आजतक ऐसा नहीं हुआ जब किसानों के आंदोलन का दमन करने के लिए कोई भी सरकार किसी भी हद तक गयी हो। सरकार ने किसानों के आंदोलन को दबाने के लिए कड़कड़ाती ठंड के बीच उनके ऊपर ठंडे पानी की तेज बौछारें करवायीं, उनका रास्ता रोकने के लिए सड़कें खुदवा दीं, उनके आंदोलन को दबाने के लिए सरकार के मंत्रियों-सांसदों ने उन्हें आतंकवादी, खालिस्तानी का दर्जा दिया, आंदोलन को पाकिस्तान की चाल बताया, विपक्षी पार्टियों का आंदोलन बताया। सरकार ने किसानों के खिलाफ गंभीर अपराधों में मुकद्दमे दर्ज करवाये, जेल में डलवाया, सभी साम, दाम, दंड, भेद हर प्रकार को अपनाया लेकिन किसान अड़े रहे।

2013-14 में यूपीए की सरकार के खिलाफ़ अन्ना हज़ारे का आंदोलन भी इतना बड़ा नहीं था जबकि उस आंदोलन को बीजेपी समेत हर विपक्षी पार्टी का समर्थन प्राप्त था। लेकिन वो आंदोलन भी इतना व्यापक नहीं था जितना कि यह किसान आंदोलन। लेकिन आजतक ऐसी कोई भी सरकार नहीं रही जब इतने बड़े आंदोलन के आगे न झुकी हो। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार अपने हठधर्मिता को लिए बैठी है वो किसी भी कीमत पर एक भी कदम पीछे हटने को तैयार नहीं है।

पिछले 2 महीने में इस आंदोलन के दौरान अबतक 70 से ज्यादा किसानों की मौतें हो चुकी हैं। कुछ किसान ठंड से मरे, कुछ बीमारी से और कुछ ने इस आंदोलन के समर्थन में अपनी जान दे दी।

इसके अलावा भारत के इतिहास में मीडिया के लिए सबसे बड़ी शर्म की बात रही। किसानों के खिलाफ मीडिया का उदासीनता भरा रवैया पूरे मीडिया जगत को बदनाम कर गया, मीडिया की साख पर हमेशा-हमेशा के लिए काला धब्बा लगा गया।
वहीं सरकार समर्थित लोगों ने इस आंदोलन को खालिस्तानी, पाकिस्तानी आतंकवादी समर्थित बताया। लेकिन भारत का अन्नदाता शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन करता रहा। भले दिल्ली में लाखों किसान इस आंदोलन में डटे रहे लेकिन उन्होंने आम आदमी को परेशान नहीं किया और न ही आंदोलन कोई उग्र रूप ले पाया।
यह किसी भी सरकार के खिलाफ भारत के इतिहास का अबतक का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण आंदोलन है।
मोदी सरकार को अपनी हठधर्मिता छोड़कर किसानों की बात सुननी चाहिए। अबतक 70 से ज्यादा किसानों की जान इस आंदोलन की वजह से चली गई और कितनी जानों पर सरकार का दिल पिघलेगा?


खैर जो भी हो, सरकार को अन्नदाता की बात सुननी चाहिए और माननी भी चाहिए। अन्नदाता अपना हक मांग रहा है, सरकार से कोई भीख नहीं मांग रहा।

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