अंदाज़े बयां सदा जिसका
अदायगी हर रूहानी खूबसूरती।
लव्ज़ देता निकल मतलब जुबां से
वाह कर उठती जहां ए हर सूरती।।
नज़्म बज़्म या हो शायरी
जिंदगी खुद देखती दीवानगी आइना।
ख़्याल बन हक़ीक़त हर नजर में
सज जाता दिले उस मायना।।
शराब चढ़ती अपने शबाब में
उनके गिलास में ढ़ल।
पीना बंद है होंटो से जरूर
पर नशा रहा है शेरों में मचल।।
हर ख़त है शुरू और ख़त्म
जिनकी अदाएं अदायगी से।
उनमें भरा उडलता है उन्हीं के लव्ज
वही जो चाहत को विदायगी से।।
गया वक्त नही है वे
जब चाहो याद करो।
बस एक दिल चाहिए
उन्हें जब चाहे आबाद करो।।
तेरी कही सदा अपना मैं रख
किरदार खुद रहे कहानी तेरी रख।
खेले तेरे खेल में तेरी ही गोटी बन
और तेरी शह में अपनी मात रख।।
खुद में खुदा देख ज़मी आसमां में नही
खुद में झांक जान ए तालिब।
मुक़द्दर तुझ से है यूँ मौक़ा न छोड़
मिलेंगे यहीँ अब खुदा हाफ़िज ग़ालिब।।
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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