नोटबंदी हुए आज एक साल पूरा हो गया। इस काले दिन को शायद ही कोई भूला हो। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने इस दिन का जश्न मनाने का फैसला किया। लेकिन नोटबंदी के बाद जारी रिजर्व बैंक ने जो आंकड़ों जारी किये उससे केंद्र सरकार को बैकफुट पर ला दिया था, जबकि विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की थी। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इस नोटबंदी से सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को 2.25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
8 नवंबर 2016 से 31 दिसंबर 2016 तक लगभग 110 लोग नोटबंदी की वजह से अपनी जान गँवा बैठे थे। कालेधन के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए शुरू हुई नोटबंदी गरीबों के गले की फांस बनकर रह गयी। मरने वालों में कोई अमीर नहीं था और ना ही किसी अमीर को बहुत ज्यादा समस्या आयी। नोटबंदी की वजह से देशभर में लगभग 5 लाख छोटे बड़े रोजगार बंद हुए जिनकी वजह से लाखों लोगों के सामने खाने के लाले पड़ गए। इस नोटबंदी की वजह से बड़ी-बड़ी कम्पनियों में कर्मचारियों की छटनी हुई जिसकी वजह से लोग सड़कों पर आ गए आज तक लोग इस नोटबंदी की मार झेल रहे हैं। सरकार की तरफ से ऐसे लोगों को अभी तक कोई मदद नहीं मिली। देश में लाखों लोग बेरोजगार हुए इसके लिए सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई और ना सरकार ने ये बताया कि नोटबंदी से अबतक कितने रोजगार मुहैया करवाए और न ही आंकड़े भी जारी किये।
फिर ये जश्न कैसा ? क्या ये सरकार देश की सरकार नहीं है? क्या ये सरकार आम जनता की सरकार नहीं है? सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया कि जितना रुपया बाहर था वो सब वापस आ गया और नोटबंदी फ़ैल हो गयी उल्टा नए नोट छापने के लिए ढेर सारा पैसा खर्च करना पड़ा।
भाजपा की सरकार नोटबंदी की सफलता का जश्न मना रही है। लेकिन उन गरीबों का क्या जिनके घर आजतक मातम पसरा है।
ये एक ऐसा जश्न मनाया जा रहा है। जिसे जनता नहीं बल्कि सरकार मना रही है। जबकि आमजन आज भी अपने को ठगा महसूस कर रहा है। और इनमें तो आज भी बहुत सारे लोग अपने नफे नुकसान का आंकलन कर रहे हैं उन्हें अभी तक यही समझ नहीं आया कि नोटबंदी से आखिर हुआ क्या? तो सरकार किस बात का जश्न मना रही है ? अगर वाकई नोटबंदी से कुछ अच्छा हुआ है तो सरकार क्यों पब्लिक की भी जिम्मेदारी बनती है कि वो इस बात का जश्न मनाये और सरकार का साथ दे। लेकिन जश्न में सरकार सिर्फ अकेले शामिल है?
मोदी ने नोटबंदी को देशहित में एक सफल अभियान बताया था। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से देश की जीडीपी सुधरेगी, कालेधन वालों की धरपकड़ होगी, नोटबंदी से नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे, आतंकवाद पर लगाम लगेगी इत्यादि।
लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी कोई कालेधन वाला सामने नहीं आया, न ही आतंकवाद पर लगाम लगी, नौकरी के नए अवसर तो छोड़िए 25 लाख लोग बेरोजगार हो गए।
अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि ये किस तरह की योजना थी जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था धड़ाम से नीचे गिर गयी।
मोदी भ्रष्टाचार के लिए हमेशा कांग्रेस का रोना रोते आये हैं। कभी 70 साल तो कभी 60 साल। वो खुद ही कंफ्यूज हैं कि उन्हें कहना क्या है। देश 1947 में आज़ाद हुआ और इसी साल देश ने 70 साल की आज़ादी का जश्न मनाया फिर देश को कांग्रेस ने 70 साल कैसे लूटा?
खैर मोदी एक तरफ ये भी कहते आये हैं कि अंग्रेज भारत से सब कुछ लूट कर चले गए तब कांग्रेस का रोना क्यों?
आपको बता दें कि सन 1600 में ईस्ट इंडिया कम्पनी बनने के समय विश्व की जीडीपी में ब्रिटेन का योगदान 1.8% था और सन 1700 में दुनिया की जीडीपी में भारत का योगदान 27% था। सन 1947 में आज़ादी के समय ब्रिटेन दुनिया की जीडीपी में 10% का हिस्सेदारी रखने वाला देश बन चुका था और भारत तब तीसरी दुनिया का देश बन चुका था।
मतलब ब्रिटेन ने भारत को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था, और ऐसा बर्बाद देश विरासत में कांग्रेस को मिला, जिसे कांग्रेस ने आज यहां तक पहुंचाया, हालांकि बहुत से लोग इस बात को नहीं मानेंगे, उनके हिसाब से जो भी काम हुए हैं वो पिछले सिर्फ मोदी के कार्यकाल में ही हुए हैं। खैर वो मानें या ना मानें। जो सच्चाई है वो सबके सामने है
और गौर करने वाली बात यह है कि तत्कालीन काँग्रेस नेताओं ने, यहाँ तक कि वर्तमान नेताओं ने भी कभी किसी तरह की लुटा पिटा देश मिलने की मजबूरी नही जताई। जिसमें जनता पार्टी की भी सरकार बनीं, लेफ्ट की भी सरकार बनीं, खुद बीजेपी की अटल बिहारी बाजपाई की सरकार बनी लेकिन किसी ने भी अपनी मजबूरियाँ नहीं गिनायीं तो वो सब भी भ्रष्ट थे ?
उन्हें जैसा भी देश मिला, सबने आगे बढ़ाया। जैसा भी था योगदान सबने दिया।
नेहरू ने उसे आगे बढ़ाने का सपना देखा और सभी ने पूरा करने के लिए हरसंभव प्रयास किये। लेकिन आज मोदी से 3 सालों का हिसाब मांगो तो वो 70 साल की लूट का हवाला देने लग जाते हैं।
अब आपको बताते हैं कि जिस नोटबंदी को गरीबों के हित में बताया था आखिर उसकी वजह क्या थी।
नीचे हम उन डिफाल्टरों के आंकड़े दे रहे हैं जिन्होंने भारतीय बैंकों के कर्जे नहीं चुकाए हैं।
भूषण स्टील- 44,477 करोड़, एस्सार स्टील- 37,284 करोड़, भूषण पावर- 37,248 करोड़, एल्क्ट्रो स्टील-10,274, मोनेट इस्पात- 8,944 करोड़। कुल मिलाकर इन पांच कंपनियों पर बैंकों का बकाया हुआ 1, 38, 227 करोड़। एस्सार स्टील पर 22 बैंकों का बकाया है।
इसके अलावा अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप पर अकेले 1, 21, 000 करोड़ का बैड लोन है। इस कंपनी को 8,299 करोड़ तो साल का ब्याज़ देना है। कंपनी ने 44,000 करोड़ की संपत्ति बेचने का फ़ैसला किया है।
रूइया के एस्सार ग्रुप की कंपनियों पर 1, 01,461 करोड़ का लोन बक़ाया है।
गौतम अदानी की कंपनी पर 96,031 करोड़ का लोन बाक़ी है। कहीं 72000 करोड़ भी छपा है।
मनोज गौड़ के जे पी ग्रुप पर 75,000 करोड़ का लोन बाकी है।
10 बड़े बिजनेस समूहों पर 5 लाख करोड़ का बक़ाया कर्ज़ा है। किसान पांच हज़ार करोड़ का लोन लेकर आत्महत्या कर ले रहा है। इन पांच लाख करोड़ के लोन डिफॉल्टर वालों के यहां मंत्री से लेकर मीडिया तक सब हाज़िरी लगाते हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक इन्हें वसूलने में बहुत जल्दी में नहीं दिखता, वैसे उसे नोटबंदी के नोट भी गिनने है। इसलिए 2 लाख करोड़ के एन पी ए की साफ-सफाई की पहल होने की ख़बरें छपी हैं। इन समूहों को 2 लाख करोड़ की संपत्ति बेचनी होगी।
बैंक अपने बढ़ते हुए NPA के बोझ से चरमरा रहे हैं। एन पी ए बढ़कर 8 लाख करोड़ हो गया है। इसमें से 6 लाख करोड़ का ए पी ए पब्लिक सेक्टर बैंकों का है। करीब 20 पब्लिक सेक्टर ने जितने लोन दिये हैं उसका 10 फीसदी NPA में बदल गया है। इंडियन ओवरसीज़ बैंक का एन पी ए तो 22 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
2016 के दिसंबर तक 42 बैंकों का एन पी ए 7 लाख 32 हज़ार करोड़ हो गया । एक साल पहले यह 4 लाख 51 हज़ार करोड़ था।
इस साल के पहले आर्थिक सर्वे में लिखा हुआ है एशियाई संकट के वक्त कोरिया में जितना एन पी था, भारत में उससे भी ज़्यादा हो गया है।
एन पी ए को लेकर शुरू में लेफ्ट के नेताओं ने कई साल तक हंगामा किया, मगर पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा नहीं बन सका। बाद में किसानों के कर्ज़ माफ़ी के संदर्भ में एन पी ए का ज़िक्र आने लगा।
एन पी ए को भी उद्योगपतियों को मिलि कर्ज़ माफ़ी की नज़र से देखा जाने लगा। इसका दबाव सरकार पर पड़ रहा है। तीन साल तक कुछ नहीं करने के बाद पहली बार कोई सरकार एन पी ए की तरफ कदम बढ़ाती नज़र आ रही है। बैंकिंग कोड बना है, दिवालिया करने का कानून बना है।
लोन न चुकाने वाली कंपनियों के ख़िलाफ़ NATIONAL COMPANY LAW TRIBUNAL( NCLT) में याचिका दायर की गई है।
मगर बैड लोन को लेकर कितनी शांति है। 8 लाख करोड़ लोन है तो मात्इर 25 फीसदी को लेकर ही हरकत क्यों है?
इन सवालों को लेकर कोई भी मीडिया इनके घर नहीं जाएगा। वरना बेचारा रिपोर्टर कंट्री के साथ साथ इकोनोमी से ही बाहर कर दिया जाएगा। सब कुछ आदर से हो रहा है। रिपोर्टर ही नहीं, कोई मंत्री तक बयान नहीं दे सकता है। बेचारा उसकी भी छुट्टी हो जाएगी।
सीबीआई की प्रेस रीलीज़ के अध्ययन के दौरान नोटिस किया कि दस हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा बैंकों में फ्राड के मामले की जांच एजेंसी कर रही है। बैंकों में चार हज़ार तक का घोटाला हो जाता है।
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने उन 12 खातों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं जिन पर 5000 करोड़ से अधिक का एन पी ए है। कुल एन पी ए का यह मात्र 25 फीसदी है।
NPA बनने के कई कारण होंगे। घोटाला और राजनीतिक सांठगांठ तो पक्का होगा। बस यही एक घोटाला है जिसका कोई खलनायक नहीं है। आप समझते हैं न ये गेम। ये लोग तो विकास की राष्ट्रवाही राह में ठोकर खाए हुए हैं। अपराधी थोड़े न हैं।
अर्थव्यवस्था में जब संकुचन आता है तो निवेश का रिटर्न कम होने लगता है। कंपनियां लोन नहीं चुका पाती हैं। यही कारण है कि 2017 के पहले तीन महीने में प्राइवेट कैपिटल इंवेस्टमेंट सिकुड़ गया है। CMIE नाम की एक प्रतिष्ठित संस्था है, इसका कहना है कि अप्रैल और मई में नए निवेश के प्रस्ताव पिछले दो साल में घटकर आधे हो गए हैं। कंपनियों के पास पैसे ही नहीं रहेंगे तो निवेश कहां से करेंगे।
2016 की दूसरी छमाही के बाद से बैड लोन बढ़ता जा रहा है। इस कड़ी में अब छोटी और मझोली कंपनियां भी आ गईं है। बिक्री और मुनाफा गिरने के कारण ये कंपनियां लोन चुकाने में असर्मथ होती जा रही हैं। कई कंपनियां अपनी संपत्ति बेचकर लोन चुकाने जा रही हैं। क्या उनके पास इतनी संपत्ति है, क्या इतने ख़रीदार हैं?
बैंक चरमरा रहे हैं। विलय का रास्ता निकाला गया है। विलय करने से NPA पर क्या असर पड़ेगा, मुझमें यह समझने की क्षमता नहीं है। बिजनेस अख़बारों में इस पर काफी चर्चा होती है मगर बाकी मीडिया को इससे मतलब नहीं। NPA एक तरह का आर्थिक घोटाला भी है। आठ लाख करोड़ के घोटाले की प्रक्रिया को नहीं समझना चाहेंगे आप?
आज के फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ख़बर है कि 21 पब्लिक सेक्टर बैंकों के विलय से 10 या 12 बैंक बनाए जायेंगे। देश में स्टेट बैंक की तरह 3-4 बैंक ही रहेंगे। हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक में छह बैंकों का विलय हुआ है। इसकी सफलता को देखते हुए बाकी बैंकों को भी इस प्रक्रिया से गुज़रना पड़ सकता है। 2008 में भी भारतीय स्टेट बैंक में स्टेट बैंक आफ सौराष्ट्र का विलय हुआ था। 2010 में स्टेट बैंक आफ इंदौर का भारतीय स्टेट बैंक में विलय हुआ था।
नोट: (ये सभी आंकड़ें 16.7.2017 का बिजनेस स्टैंडर्ड, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 8.5.2016 का हिन्दू, 20.2.2017 का FIRSTPOST.COM, 9.6.2017 का MONEYCONTROL.COM की मदद ली है। सारी जानकारी इन्हीं की रिपोर्ट्स पर आधारित है)
नोटबंदी पर विपक्ष ने भी जबरदस्त हमला बोला और नोटबंदी को बताया काला दिवस।
केंद्र सरकार के नोटबंदी के जश्न पर राहुल गांधी ने मोदी पर साधा निशाना
नोटबंदी का एक साल पूरा होने पर विपक्ष सरकार को घेर रही है। कांग्रेस नोटबंदी की पहली वर्षगांठ को काला दिवस के रूप में मना रही है। इसी क्रम में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आज बुधवार को सूरत दौरे पर पहुंचे। सूरत में राहुल गांधी ने व्यापारियों के साथ बैठक की। इस अनौपचारिक बैठक में राहुल गांधी ने नोटबंदी के साथ जीएसटी को लेकर भी मोदी सरकार पर हमला बोला।
राहुल गांधी ने केन्द्र सरकार को नोटबंदी और जीएसटी दोनों मुद्दों पर विफल बताया। राहुल गांधी ने व्यापारियों से कहा कि देखिए, मैं कई बार केंद्र सरकार से अपील कर चुका हूं कि पांच स्लैब्स के साथ जीएसटी बिल्कुल नहीं चल सकता है। जीएसटी का स्लैब अधिक से अधिक 18 फीसद तक होना चाहिए। इसलिए मैं शुरुआत से कहता आ रहा हूं कि इसमें सुधार की बेहद जरूरत है। ज्ञातव्य है कि इससे पहले ट्विटर पर भी राहुल गांधी ने नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा।
राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि नोटबंदी एक त्रासदी है, हम लाखों ईमानदार लोगों के साथ खडे हैं, जिनके जीवन और आजीविका को प्रधानमंत्री के निर्णय ने तबाह कर दिया। ज्ञातव्य है कि इससे पहले भी राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान यह कह चुके हैं कि अगर उनकी सरकार आती है, तो वह जीएसटी को पूरी तरह से बदल देंगे, जो व्यापारियों को सहूलियत देगा, परेशानी नहीं।
नोटबंदी पर ममता ने केंद्र सरकार पर बोला हमला
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को दावा किया कि नोटबंदी के बाद उत्पीडऩ और मंदी के चलते लगभग 75,000 भारतीय उद्योगपतियों ने देश छोड़ दिया और वे एनआरआई बन गए। ममता ने कहा कि इन उद्योगपतियों के जाने से सरकारी खजाने को सात लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ममता ने कहा, ‘‘लगभग 75,000 भारतीय उद्योगपतियों ने उत्पीडऩ और मंदी का सामना करते हुए देश छोड़ दिया है और वे एनआरआई बन गए हैं। वे यातना और मानसिक पीड़ा सहन नहीं कर सकते थे।’’ नोटबंदी की पहली वर्षगांठ पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अगर वे 50 करोड़ रुपये से लेकर 500 करोड़ रुपये के बीच निवेश करते थे, तो इसका मतलब यह है कि सात लाख करोड़ रुपये पहले से ही देश से बाहर जा चुके हैं।’’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए ममता ने कहा, ‘‘काला धन लाने के बजाय, यहां हमारा पैसा ही देश से बाहर हो गया है।’’ दरअसल मोदी ने नोटबंदी के दौरान कुछ भारतीयों द्वारा विदेशों में छुपाए काले धन को वापस लाने का वादा किया था। उन्होंने सरकार द्वारा डिजिटल भुगतान समाधान एप पेटीएम मॉल का समर्थन करने को लेकर जांच की मांग की है। पेटीएम चीन की ई-कॉमर्स साइट दिग्गज अलीबाबा का मुख्य सर्मथक है। अलीबाबा के खिलाफ चीन में ‘सूचना न देने’ के लिए जांच चल रही है। उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले की जांच जरूर होनी चाहिए। जितने लंबे समय तक यह पार्टी (भाजपा) केंद्र में बैठी रहेगी, सच्चाई बाहर नहीं आएगी। लेकिन वे हमेशा सत्ता में नहीं रहेंगे। फिर जांच होगी और सच्चाई जनता के बीच पहुंचेगी।’’
केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल आठ-नौ नवंबर की रात 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले पर निशाना साधते हुए ममता ने कहा, ‘‘100 से अधिक लोगों की मौत हो गई, 12,500 किसानों ने आत्महत्या कर ली। 50 लाख से अधिक लोगों ने नौकरी खो दी। टेक्सटाइल से लेकर असंगठित क्षेत्र, सभी नोटबंदी से पीडि़त हैं। अगले दो वर्षों में भी कोई नया रोजगार नहीं बनाया जाएगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह फैसला, राजनीतिक और शासन के लिए एक बुरा निर्णय रहा है।’’उन्होंने जुलाई में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने के लिए मोदी सरकार पर हमला बोला। ममता ने कहा, ‘‘हमने उनसे एक योजनाबद्ध तरीके से तैयारी करने के साथ ही इंतजार करने और जल्दबाजी न करने को कहा था। लेकिन उन्होंने खुद ही जुलाई में इसे लागू कर दिया। ऐसा लगता है कि वे कुछ वर्गों के प्रति निष्ठा रखते हैं।’’
पी.चिदंबरम ने गिनाये नोटबंदी से हुए नुकसान
पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने नोटबंदी को लेकर बुधवार को मोदी सरकार पर हमला बोला और सवाल उठाया कि इसे नैतिक कदम कैसे कहा जा सकता है, जब नौकरियां नष्ट हो रही हैं और कई उद्योग बंद हो रहे हैं। ट्वीट की एक श्रृंखला में पूर्व वित्तमंत्री ने ठीक एक साल पहले सरकार के 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद करने के फैसले पर हमला बोला। चिदंबरम ने कहा, वित्तमंत्री (अरुण जेटली) ने कहा कि नोटबंदी नैतिक था। क्या करोड़ों लोगों को परेशानी में डालना नैतिक था? खासकर 15 करोड़ दिहाड़ी मजदूरों को? क्या यह नैतिक था कि 2017 में जनवरी से अप्रैल के बीच 15 लाख नियमित रोजगार नष्ट कर दिए गए?
उन्होंने कहा, क्या यह नैतिक था कि हजारों सूक्ष्म और छोटे उद्योगों को बंद कर दिया जाए? क्या सूरत, भिवंडी, मुरादाबाद, आगरा, लुधियाना और तिरुप्पुर के जैसे जीवंत औद्योगिक केंद्रों को नुकसान पहुंचाना नैतिक था? जेटली ने मंगलवार को नोटंबदी को नैतिक अभियान और नैतिक कदम करार दिया था। कांग्रेस नेता ने कहा कि इस तथ्य को कोई खारिज नहीं कर सकता कि नोटबंदी के फैसले से लोगों को जान गंवानी पड़ी, छोटे उद्योग बंद हो गए और लोगों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ीं।
उन्होंने कहा कि जल्द ही लोगों के हाथों में नकदी उसी स्तर पर पहुंच जाएगी, जिस स्तर पर 2016 के नवंबर से पहले थी। चिदंबरम ने कहा, लोगों के पास 15 लाख करोड़ रुपये की नकदी है, जो जल्द ही 2016 के नवंबर के स्तर 17 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। वहीं, नोटबंदी के एक साल बाद केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि नकली नोटों के जरिए आतंकवादियों को किया जाने वाला वित्त पोषण जम्मू एवं कश्मीर तथा छत्तीतसगढ़ में कम हुआ है।
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Special Report: Manish Kumar
Editor-in-Chief
Khabar 24 Express