प्रधानमंत्री मोदी ने जब भ्रष्टाचार-मुक्त भारत का नारा दिया तो देश ने उनपर विश्वास किया।लेकिन अब वह विश्वास तो लुप्त हो ही गया, स्वयं प्रधानमंत्री की ‘नीयत’ संदेहों के घेरे में आ गई है।
खबर है कि वामदलों के साथ मिल कर सत्तारूढ़ भाजपा RTIका विरोध कर रही है।वही RTI जिसे पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने देश को एक मजबूत हथियार के रुप में सौंपा था।पारदर्शी शासन के पक्ष में RTI को एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा गया।सफलता भी मिली।भ्रष्टाचार के अनेक मामले इसके द्वारा उजागर हुए।कार्रवाइयां हुईं, अनेक दंडित भी हुए।ऐसे में, सत्तापक्ष द्वारा इसका विरोध?सवाल तो उठेंगे ही!
इसी प्रकार मामला लोकपाल का भी।अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद दबाव में आई यूपीए सरकार के समय बड़ी मशक्कत के बाद लोकपाल विधेयक संसद से पारित हुआ।लेकिन, नई मोदी सरकार आई, आये3 वर्ष भी हो गये, अबतक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई।नियुक्ति के प्रति सरकार की उदासीनता से सवाल खड़े हो रहे हैं।एक ओर तो प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की बात कर रहे हैं,अपनी सरकार को विदेशी धरती पर भी ईमानदारी का प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं, दूसरी ओर भ्रष्टाचार पर नज़र रखने, जांच करने वाली स्वायत-संवैधानिक संस्था ‘लोकपाल’को अस्तित्व में ही नहीं आने दिया जा रहा!क्यों डर रही है मोदी सरकार?जब सरकार ईमानदार है, पाक साफ है तब डर किस बात की?
प्रसंगवश, नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं होने दी थी।
और, ये भी कि अन्ना हजारे ने कहा था कि लोकपाल की नियुक्ति होने पर आधे से ज्यादा मंत्री जेलों के अंदर होंगे!