EVM के मुद्दे पर इलेक्शन कमीशन की काफी किरकिरी होने के बाद आयोग ने सरकार से एक ऐसी मांग की है जिसे आप सुनकर हँसेंगे भी और हैरान भी रह जायेंगे।
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन पर छिड़ी बहस के बीच चुनाव आयोग ने अपनी गरिमा के लिए बड़ी मांग उठाई है।
आपको बता दें कि चुनाव आयोग हमेशा से नेताओं के निशाने पर रहा है और इस पर भी सीबीआई की तरह इल्जाम लगते आये हैं। जैसे सीबीआई को सरकार का तोता कहा जाता है वैसे ही चुनाव आयोग को भी सरकार का पक्षधर कहा जाता है। और शायद कई बार साबित भी हुआ है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के चुनावों में थोड़ा बहुत साबित भी हुआ। आपको बता दें कि उत्तराखंड 6 विधानसभा सीटों की ईवीएम को उत्तराखंड हाइकोर्ट ने जांच के लिए अपने पास मंगा लिया था और अभी तक उनकी जांच चल रही है।
उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की कई सीटों पर जांच की मांग उठी थी जिसे इलेक्शन कमीशन ने ख़ारिज कर दिया था जबकि कानून यह कहता है कि जब काफी संख्या में लोग आवाज उठायें तो जांच होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसीलिए उत्तराखंड हाइकोर्ट ने इसको अपने संज्ञान में लेते हुए चुनाव आयोग से ईवीएम मंगवा ली।
इसके बाद चुनाव आयोग नेताओं और लोगों के निशाने पर आ गया और उसकी विश्वसनीयता पर ऊँगली उठने लगी।
इसी को देखते हुए चुनाव आयोग ने कानून मंत्रायल से मांग की है कि उन्हें भी अदालतों की तरह उसे भी अवमानना का अधिकार दिया जाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनाव आयोग जैसी संवैधिानिक संस्था के फैसलों और उसके खिलाफ बोलने वालों पर इससे लगाम लग सकेगी। इतना ही नहीं संस्था की छवि खराब होने से भी बच सकेगी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक ईसी अवमानना अधिनियम 1971 में संसोधन की मांग करते हुए अपने लिए अवमानना का अधिकार मांग रहा है।
दरअसल, पीछे इवीएम को लेकर उठे विवाद पर विपक्षी पार्टियों ने कथित तौर पर ईसी को सरकार के एजेंट बोलना शुरू कर दिया था। इसी से नाराज ईसी ने कहा कि ये अधिकार मिलने के बाद ऐसे लोगों पर लगाम कसेगी और इन्हें कानूनी शिकंजे में लाने पर सबक भी सिखाया जा सकेगा।
Hehehehe or maang ho bhi kya sakti hai