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यवतमाल का 950 वर्ष पुराना प्राचीन हेमाडपंथी शिवमंदिर मनदेव, विशेषताएं जानकर रह जायेंगे हैरान

यवतमाल-आर्णी मार्ग पर मनदेव में, प्रकृति की गोद में एक प्राचीन हेमाडपंथी शिवालय है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण करीब 950 साल पहले हुआ था। महाशिवरात्रि पर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। यह मंदिर प्राचीन वास्तुकला के बेजोड़ उदाहरण के रूप में देखा जाता है। ऐसा पाया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1155 में रामदेव राय यादव के काल में हुआ था। नंदगाँव खंडेश्वर में मंदिर के एक शिलालेख में दर्ज है कि रामदेव राय यादव के प्रधानमंत्री हेमेन्द्री पंत ने इस मंदिर का निर्माण किया था। मनदेव महादेव के साढ़े तीन पीठों में से एक है। करीब 150 साल पहले रेवा भारती इस मंदिर में पुजारी के पद पर कार्यरत थीं। मंदिर के पास ही उनकी समाधि है बरगद के पेड़ के कारण यह ब्लॉक नष्ट हो गया है।

इसके बाद पेड़ के आसपास के क्षेत्र को काटकर साफ किया गया। मंदिर के पूर्व में कालभैरव की मूर्ति है। उत्तर और दक्षिण में एक सभागार है। यहां साईं बाबा का मंदिर है। मंदिर के पीछे एक मंदिर है। पूर्व की ओर मारुति का मंदिर है और आकाश की छत्रछाया में नागराज विराजमान हैं। महाशिवरात्री के पर्वपर इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

बताया जाता है कि हेमाड़पंथी आनंदेश्वर मंदिर लासुर जागृत देवस्थान है। अजंता-एलोरा के 7 और 8 नंबर की गुफा में जिस प्रकार के शिल्प बनाए गए हैं, उसी तरह के शिल्प यहां देखने को मिलते हैं। एक के ऊपर एक पत्थरों को रखकर इस मंदिर का निर्माण कार्य किया गया है। ऊपर से स्वस्तिक आकार वाले इस शिवालय का गुंबद नहीं है,लेकिन मंदिर के अंदर और सभागृह में भरपूर प्रकाश होने के कारण बीच का सभामंडप खुला रखा गया है। प्रवेश द्वार के सामने एक भव्य चबूतरा और दो छोटे चबूतरे बने हुए हैं। मंदिर के पूर्व और पश्चिम दिशा में हरे भरे पेड़ हैं तथा मंदिर की दक्षिण दिशा में दो फर्लांग की दूरी पर पूर्णा नदी है। इस मंदिर के चारों ओर प्रशस्त प्रदक्षिणा मार्ग होने के साथ ही इस ऊंचे प्रदक्षिणा मार्ग पर खड़े रहने पर आसपास के छोटे-छोटे गांवों का दृश्य और प्राकृतिक सौंदर्य मन को आनंदित कर देता है।

सूर्योदय व सूर्यास्त का मनोरम दृश्य
यहां से सुबह के समय सूर्योदय और शाम के समय सूर्यास्त का मनोरम दृश्य देखते ही बनता है। शिवालय के अंदरुनी हिस्से में खुले 12 और दीवार में 6 कुल 18 स्तंभ हैं। प्रत्येक स्तंभ पर नक्काशीदार शिल्पकारी दिखाई देती है जो कि हमारे देश की समृद्ध कलात्मकता की गवाही दे रहे हैं। मंदिर के भीतरी तथा बाहरी दीवारों पर भूमितीय आकृतियां, फूल, फल तथा आलेख पध्दति का इस्तेमाल किया हुआ नजर आता है। आकृतियों की आकार की रचना परिपक्व और परिणत है। छत पर राधा-कृष्ण, गोपियों का नृत्य, गोधन एवं दीवारों पर हाथी, घोड़े, मदारी, गौपालक, नर्तक, भक्तगण, बंदर, हनुमान, गणेशजी तथा भगवान कृष्ण आदि की कलाकृतियां तथा शोभायात्रा की पंक्तियों को उकेरा गया है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, ब्रह्मा, राधा-कृष्ण, गोवर्धन की मूर्तियों का निर्माण किया गया है।

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