प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोगीबील पुल से गुजरने वाली पहली यात्री रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर देश के सबसे लंबे इस रेल सह सड़क पुल की शुभारंभ किया। इस पुल के बनने के बाद असम के तिनसुकिया से अरूणाचल प्रदेश के नाहरलगुन कस्बे तक की रेलयात्रा में 10 घंटे की कमी आएगी। यानी अब 10 घंटे से अधिक समय की बचत इस पुल के बनने से हो जाएगी।
तिनसुकिया-नाहरलगुन इंटरसिटी एक्सप्रेस सप्ताह में पांच दिन चलेगी। कुल 4.9 किलोमीटर लंबे इस पुल की मदद से
बताया जा रहा है कि यह एशिया का दूसरा जबकि भारत का सबसे लंबा रेल सह सड़क पुल है।
इस पुल को चीन के साथ लगती सीमा पर रक्षा साजो-सामान के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन माना जा रहा है। इस पुल की लंबाई 4.94 किलोमीटर है। यह पुल असम के डिब्रूगढ़ को धीमाजी से जोड़ेगा।
बता दें कि यह पुल 1987 के असम संधि का हिस्सा है। इसको बनाने के लिए 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने इसकी आधारशिला रखी थी। हालांकि इसका निर्माण कार्य 2002 में अटल सरकार में शुरू किया गया। लेकिन एक लंबे वक्त के बाद आज आखिरकार देश को एक तोहफा मिल ही गया।
आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच 4000 किलोमीटर की सीमा है ऐसे में यह पुल भारतीय सेना की गतिविधियों में मददगार साबित होगा। इस पुल के निर्माण में पांच हजार नौ सौ करोड़ की लागत आई है। इसकी आयु लगभग 120 सालों से अधिक होगी।
एशिया के इस दूसरे सबसे बड़े पुल में सबसे ऊपर एक तीन लेन की सड़क है और उसके नीचे दोहरी रेल लाइन है। यह पुल ब्रह्मपुत्र के जलस्तर से 32 मीटर की ऊंचाई पर है। इसे स्वीडन और डेनमार्क को जोड़ने वाले पुल की तर्ज पर बनाया गया है।
यह पुल डिब्रूगढ़ से 17 किमी की दूरी पर है। यहां से सबसे नजदीकी सड़क पुल 225 किमी जबकि सबसे नजदीकी रेल पुल 560 किमी दूर है। ऐसे में यह पुल स्थानीय लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
बोगीबील पुल भूकंप प्रभावित क्षेत्र में बना है। यहां रिक्टर पैमाने के 7 स्केल तक का भूकंप आता रहा है। इस पुल को भूकंपरोधी बनाया गया है जो 7 तीव्रता से ज्यादा के भूकंप को भी झेल सकता है।
अभी डिब्रूगढ़ से अरुणाचल प्रदेश जाने के लिए गुवाहाटी होकर जाना पड़ता था। ऐसे में किसी को भी 500 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करनी होती थी। अब इस पुल के निर्माण होने से यह यात्रा अब 100 किलोमीटर से कम रह जाएगी।