नोटबंदी को लेकर पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने गंभीर टिप्पणी की है। राजन ने आरोप लगाया है कि नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक पर जबरदस्ती थोपा गया है जबकि ये सरकार का आदेश था जो रिजर्व बैंक को दिया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार ने रिज़र्व बैंक की राय को जरा भी एहमियत नहीं दी और अब नतीजा सबके सामने है।
राजन ने ये सवाल अतिसे समय मे उठाया है जब राजनीति अपने चरम पर है और सरकार के फैसलों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। नोटबंदी के नुकसान से अभी तक देश उभरा नहीं है लाखों लोग बेरोजागर हो गए तो वहीं लाखो रोजगार बंद हो गए।
सबसे बड़ी बात है कि नोटबंदी जैसे फैसले से भारत की अर्थव्यवस्था धड़ाम हो गयी है। लेकिन सरकार अभी भी अपने इस फैसले को सही ठहरा रही है। आपको बता दें कि आरबीआई ने अभी हाल ही में नोटबंदी के आंकड़े जारी किए जिनमें 99% नोट वापस आने की बात कही। अब सवाल उठना लाज़मी था क्योंकि नोटबंदी कालेधन पर रोक लगाने के लिए की गई थी। जब 99% धन वापस आ गया तो मात्र 1% कालाधन भारत में था। तो क्या सरकार ने मात्र 1% के लिए लोगों को लाइन में लगवा दिया?
अब इसी को लेकर रघुराम राजन भी मैदान में उतार आये हैं और वो सीधे-सीधे सरकार पर हमला बोल रहे हैं।
रघुराम राजन ने कहा कि उन्होंने सरकार को नोटबंदी से दीर्घावधि के फायदों पर निकट भविष्य के नुकसान के हावी होने को लेकर चेतावनी दी थी। लेकिन उनकी बात को अनसुनी कर दिया गया।
राजन ने कहा कि उन्होंने फरवरी 2016 में मौखिक तौर पर अपनी सलाह दी और बाद में आरबीआई ने सरकार को एक नोट सौंपा जिसमें उठाए जानेवाले जरूरी कदमों और इसकी समयसीमा का पूरा खाका पेश किया गया था।
राजन ने ये सारी बातें अगले सप्ताह आनेवाली अपनी पुस्तक ‘I Do What I Do: On Reforms Rhetoric and Resolve’ (मुझे जो करना होता है, वह मैं करता हूं: सुधारों का शोरगुल और संकल्प) में लिखी हैं। वह लिखते हैं, ‘आरबीआई ने इस ओर इंगित किया कि अपर्याप्त तैयारी के अभाव में क्या हो सकता है।’ उन्होंने आरबीआई गवर्नर का अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद बतौर फैकल्टी शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनस में वापसी कर ली।
एक अखबार के साथ बातचीत में राजन ने यह भी स्पष्ट किया कि आरबीआई से संपर्क तो किया गया था, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान कभी भी नोटबंदी पर फैसला लेने को नहीं कहा गया। राजन का कार्यकाल 5 सितंबर 2016 को पूरा हो गया था जबकि नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की गई।
तब प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बंद करने का ऐलान किया था। इसी सप्ताह आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि पुराने बंद किए गए 500 और 1000 रुपये के 99 प्रतिशत नोट बैंकों में जमा हो गए।
सरकार ने नोटबंदी के फैसले का यह कहते हुए बचाव किया कि इससे टैक्स बेस बढ़ने से लेकर डिजिटल ट्रांजैक्शन में इजाफे तक कई दूसरे फायदे हुए हैं। राजन ने माना कि नोटबंदी के पीछे इरादा काफी अच्छा था, लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से अब तो कोई किसी सूरत में नहीं कह सकता है कि यह आर्थिक रूप से सफल रहा है।’
खैर जो भी हो लेकिन विपक्ष को रघुराम राजन के बहाने एक मौका मिल गया कि वो नोटबंदी के मामले में सरकार को एक बार फिर जबर्दस्त घेरा जा सकता है।