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वर्णिका कुंडू छेड़छाड़ केस: मीडिया के दबाव की वजह से सुभाष बराला का बिगड़ैल बेटा विकास फिर पहुंचा सलाखों के पीछे

 

 

ना रसूख काम आया, ना दबाव। मीडिया की ताकत के आगे सब कुछ फीका रहा। बहादुर बेटी वर्णिका कुंडू के समर्थन में एकजुट हुए मीडिया ने आखिरकार वही किया जो सही मायने में उसे करना चाहिए था। भाजपा की आईटी सेल से उस बहादुर बिटिया के हुए चरित्र चित्रण से खफ़ा मीडिया ने एकजुटता दिखाई और हर गलत तथ्यों की सत्यता को सामने लाया, जिन गलत और झूंठी बातों की वजह से मासूम बहादुर बिटिया वर्णिका का बीजेपी के गुंडे चरित्र चित्रण करने में लगे थे।
मीडिया ने इस केस से जुड़े हर पहलू को दिखाया साथ ही उस इलाके की सीसीटीवी फुटेज तक ढूंढ निकाली जो पुलिस को अब तक नहीं मिली थी।
विकास बराला की करतूत को मीडिया ने पूरे हिंदुस्तान के सामने लाकर रख दिया और दिखा दिया कि झूंठ, पैसे, रसूख, राजनीतिक दबाव से बड़ा कुछ और भी है और हम वही हैं, हमारी एकता है, मीडिया की निष्पक्षता है।
मीडिया ने दिखा दिया कि अगर वो अपने पर आ जाये तो क्या कुछ नहीं हो सकता है। इसमें ख़बर 24 एक्सप्रेस ने भी एहम भूमिका निभाई, ख़बर 24 एक्सप्रेस ने सुभाष बराला के बिगड़ैल बेटे की हर करतूत को लोगों के सामने लाकर रखा और पुलिस पर राजनीतिक दबाव को उजागर किया। हमारी इस मुहिम से भारत सरकार, प्रदेश सरकार और पुलिस ये सब दबाव में आयें। और हुआ भी ऐसा ही। इस मसले का दबाव प्रदेश सरकार से ज्यादा केंद्र सरकार पर रहा जिसकी वजह से आज विकास बराला जेल की सलाखों पीछे पहुंचा।

बेटे की करतूत के चलते अपनी राजनीतिक साख बचाने में जुटे हरियाणा भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला ने अपने बेटे को सरेंडर करवा दिया है, लेकिन बराला कुर्सी पर संकट अभी बरकरार है। चौतरफा दबाव, अपने राजनीतिक कैरियर की फिक्र के बीच आखिरकार काूनन के सामने नतमस्तक हुए बराला ने कलेजे पर पत्थर रख कर बेटे को पुलिस के सामने पेश करने का फैसला कर ही लिया।
पिछले चार दिनों से धर्मसंकट में फंसे बराला के सामने सिर्फ दो विकल्प थे। पहला अपनी और पार्टी की साख बचाना और दूसरा बेटे को कानून के सुपुर्द करना। परिवार और राजनीतिक दबाव के बीच बराला ने पहले विकल्प को चुना। इस पूरे घटनाक्रम में विपक्ष की मांग बराला का इस्तीफा है।

ऐसे में बेटे को कानून के सुपुर्द करने के बावजूद बराला की कुर्सी से खतरे के बादल पूरी तरह से छंटे नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गुजरात राज्य सभा चुनाव से फुर्सत पा चुके हैं। बराला को अभयदान देना है या नहीं यह उनके फैसले पर निर्भर होगा।

बराला की कुर्सी जाएगी या फिर बचेगी यह सवाल राजनीतिक व प्रशासनिक गलियारों में अभी भी मंथन का विषय बना हुआ है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, राबर्ट वाड्रा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तीखे कमेंट आने के बाद भाजपा का थिंक टैंक डैमेज कंट्रोल में जुटा है, लेकिन हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा।

चारों तरफ हो रही किरकिरी में हरियाणा के नेताओं ने यह सुझाव दिए हैं कि अगर बराला का इस्तीफा ले लिया जाता है तो भी विपक्षी दल इस मुद्दे को उनके खिलाफ इस्तेमाल करेंगे और बराला पद पर बने रहेंगे, तब भी विपक्ष इस बात को मुद्दा बनाएगा। सूत्रों के मुताबिक गुजरात राज्य सभा चुनाव से फुर्सत पाने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस मामले में फीडबैक लिया है।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल के समर्थन के चलते प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हुए बराला के लिए मुख्यमंत्री के दिल में स्थान तो है, लेकिन मामला तूल पकड़ जाने केकारण केंद्र में बैठे लोग नफा नुकसान का आंकलन कर रहे हैं। राजनीतिक उठा पटक के बीच यदि बराला की कुर्सी बचती है तो बराला को नया राजनैतिक जीवन मिलेगा। अन्यथा हरियाणा भाजपा के ही कई नेता प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए लाइन लगाए हुए हैं।


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