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और इस तरह अरविन्द केजरीवाल पर कपिल मिश्रा के दावे हो गए फुस

 

दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा के दावे एक दिन भी नहीं चल सके उनके दावों की हवा निकल गयी और वो लगभग गलत साबित हो गए।
कपिल मिश्रा पर सबसे बड़ा आरोप तो यही था कि वो एमसीडी चुनावों से ठीक पहले भाजपा का दामन थामने वाले थे लेकिन उन्होंने उस वक़्त मना कर दिया था।
खुद कुमार विश्वास अब अरविन्द केजरीवाल के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं कुमार के मुताबिक अरविन्द केजरीवाल ने 2 करोड़ रूपये लिए तो उसी वक़्त कपिल मिश्रा ने अपनी ईमानदारी का परिचय क्यों नहीं दिया।
दूसरा सवाल यह था जब खुद कपिल मिश्रा अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से नाराज़ चल रहे थे तो वो कपिल मिश्रा के सामने ही पैसे लेंगे और कपिल मिश्रा उनसे ये भी पूँछेंगे कि ये पैसा आपको क्यों मिल रहा है और कहाँ से आया है, ये हास्यपद सवाल हैं जो कपिल मिश्रा ने उठाये हैं और इन सभी दावों की हवा निकल गयी है।

दिल्ली की राजनीति में पिछले कई दिनों से चल रहे घटनाक्रम में रविवार को एक नया मोड़ आया, जब दिल्ली कैबिनेट के पूर्व सदस्य कपिल मिश्रा ने सीएम अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए। भ्रष्टाचार विरोध आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और सीएम अरविंद केजरीवाल पर उनकी ही कैबिनेट में मंत्री रहे कपिल मिश्रा के इन आरोपों ने कई सवाल खड़े किए हैं।

जहां इन आरोपों ने केजरीवाल की छवि को ठेस पहुंचाई है, वहीं मंत्रिमंडल से हटाए जाने के बाद मिश्रा के इन आरोपों को लेकर कानूनी पक्ष का भी एक अहम सवाल खड़ा होता है। क्या केवल मौखिक आरोप के सहारे केजरीवाल के खिलाफ जांच शुरू की जा सकती है, यह सवाल भी है। इस मसले पर कानूनी जानकारों का कहना है कि अभी तक की स्थिति को देखें तो कोई ठोस प्रमाण नजर नहीं आ रहा है, जिसके आधार पर जांच शुरू की जा सके। अगर कपिल मिश्रा को अपने आरोप साबित करने हैं तो उन्हें ठोस प्रमाण व सबूत पेश करने होंगे, तभी जांच एजेंसियां इन आरोपों पर कार्रवाई कर सकेंगी।

सीनियर क्रिमिनल लॉयर रमेश गुप्ता का कहना है कि कथित लेनदेन के इस मामले में केस चलाने के लिए सिर्फ मौखिक आरोप ही काफी नहीं है। जब भी किसी के सामने रिश्वत दी जाती है तो उसके तुरंत बाद अगर शिकायत नहीं कई गई तो यह भी माना जा सकता है कि शिकायत करने वाला पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। उनका कहना है कि अगर ये मान भी लिया जाए कि जो आरोप लगाए गए हैं, वे सही है तो यहं पर यह सवाल भी उठता है कि जब शिकायतकर्ता के सामने लेनदेन हुआ है तो फिर पुलिस शिकायत करने वाले को भी संदेह के घेरे में रख सकती है। इस मामले में मीडिया के जरिए आरोप लगाए गए हैं।
मौजूदा हालात को देखें तो केवल मौखिक आरोप ही काफी नहीं है और इन आरोपों को साबित करने के लिए अडिशनल एविडेंस पेश करने बहुत ही जरूरी हैं। गुप्ता का कहना है कि उनकी समझ से आज की तारीख में केवल इस आरोप के सहारे यह जांच एजेंसियों या पुलिस का केस नहीं बनता। शिकायत करने वाले को अपनी बात साबित करने के लिए कुछ और सबूत पेश करने ही होंगे।

सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर ऐडवोकेट का कहना है कि अभी तक इस मामले को लेकर जो घटनाक्रम देखने को मिला है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि पूर्व मंत्री के आरोप की पॉलिटिकल वैल्यू तो बेशक हो सकती है लेकिन लीगल वैल्यू अभी नजर नहीं आती। अब कल क्या होगा, इस बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन अभी तक जो केस है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि केवल बयान के आधार पर कोई जांच या केस नहीं बन रहा है। एलजी को शिकायत की गई है लेकिन एलजी भी अभी इस मामले को देखेंगे कि क्या केस बन रहा है और क्या हो सकता है और इस तरह के मामलों पर कोई फैसले के लिए समय लगेगा।

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