महाराष्ट्र से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरी न्याय व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। 32 साल तक चली सुनवाई, परिवार की उम्मीदें और अदालतों के अनगिनत चक्कर लेकिन आखिर में नतीजा क्या निकला? सभी आरोपी बरी।
ठाणे जिले की सत्र अदालत ने 1992 में हुई एक हत्या के मामले में पांचों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष न तो ठोस सबूत पेश कर पाया और न ही किसी गवाह की गवाही भरोसेमंद साबित हुई।
32 साल पुराना मर्डर केस: क्या था पूरा मामला?
यह मामला 16 दिसंबर 1992 का है। ठाणे के सम्राट अशोक नगर इलाके में लकी प्रेमचंद भाटिया नाम के शख्स की धारदार हथियारों से बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद पुलिस ने सुरेश दीनानाथ उपाध्याय, गौतम महादेव गायकवाड़, मोहिद्दीन सिद्दीक खान, कन्हैया बसन्ना कोली और कुमार चेतुमल नागरानी को आरोपी बनाया।
लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने पूरी न्याय प्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिए। केस सालों तक अदालत में लटकता रहा। सुनवाई बार-बार टलती रही। वक्त बीतने के साथ न सिर्फ गवाह कमजोर होते गए बल्कि कई अहम सबूत भी नष्ट हो गए।
कोर्ट में क्या कहा गया?
26 सितंबर को कल्याण के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पी.एफ. सैय्यद ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से जांच और सबूतों को लेकर भारी लापरवाही बरती गई। कोर्ट ने पाया कि कई जरूरी दस्तावेज फटे हुए मिले, यहां तक कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी रिकॉर्ड में मौजूद नहीं थी।
गवाहों की स्थिति भी बेहद कमजोर थी। एक गवाह को पार्किंसन की बीमारी थी, जिसकी वजह से उसकी गवाही को अविश्वसनीय माना गया। अभियोजन पक्ष कुल मिलाकर सिर्फ दो गवाहों से ही जिरह कर सका, जो किसी को दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं था।

आखिर में बरी हुए सभी आरोपी
जब सबूत पुख्ता नहीं रहे और गवाहों की गवाही भी भरोसेमंद नहीं रही, तो अदालत ने पांचों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि बिना ठोस साक्ष्य और विश्वसनीय गवाह के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
न्याय पर उठे सवाल
अब सबसे बड़ा सवाल यही है – 32 साल तक चले इस केस का अंत ऐसे ही होना था? क्या जांच एजेंसियों और अभियोजन पक्ष की लापरवाही ने एक परिवार को न्याय से वंचित कर दिया? और अगर इतनी लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद भी सबूत ही न बचें, तो क्या किसी अपराधी को सज़ा दिलाना मुमकिन है?
आपका क्या मानना है? क्या ऐसी जांच एजेंसियों और अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने इतने सालों तक इस केस को गंभीरता से नहीं लिया? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं।
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