बाल कल्याण समिति दाहोद द्वारा हो रही बाल मजदूरी को ध्यान में रखते हुए दाहोद शहर में स्थित रेलवे स्टेशन रोड पर कान्हा भोजनालय में से 7 बाल मजदूरों को पकड़ा गया। उन सभी बच्चों को बाल कल्याण समिति ऑफिस में लाया गया, बाल कल्याण समिति के चेयरमैन ने सभी बच्चों से रूबरू बात की और हकीकत जानना चाहा,सभी बच्चों के डाक्यूमेंट्स भी वेरीफाई किए गए ताकि पता चले कि उन बच्चों की सही मायने में उम्र क्या है और बच्चे कहां के हैं। 7 बालकों मे से तीन बालको के माता-पिता मिल चुके हैं,उन्हें समझाकर उनके बच्चों को उनके सुपुर्द कर दिया गया। अभी भी चार बालों को के माता-पिता की छानबीन जारी रही है। जैसे ही उनके माता पिता मिल जाएंगे बच्चों को उनके सुप्रद कर दिया जाएगा। उन 4 बच्चों को अभी दाहोद,चिल्ड्रन होम में रखा गया है।
हम बात करें बाल मजदूरी कि तो सच में यह गलत है। जो उम्र पढ़ने ओर खेलने कूदने की होती है उसमे बच्चे काम करते हैं, माता-पिता को भी उन बच्चों को पढ़ना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ समस्या,मजबूरी,बेरोजगारी, पारिवारिक हालत खराब,खाने के लाले पड़ना तो इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बच्चे आज की बेरोजगारी को देखते हुए वह शुरू से ही कुछ न कुछ ऐसे कामों में लग जाते हैं,तो सरकार को चाहिए बेरोजगारी पर ध्यान दें ताकि ऐसे बच्चों के माता-पिता को कुछ काम मिल सके यदि माता-पिता के पास काम होगा तो शायद वह माता-पिता अपने बच्चों को बाल मजदूरी के लिए नहीं भेजेंगे।
बाल मजदूरी आज एक ही भोजनालय का विषय नहीं बल्कि जहां भी आप देखोगे हर जगह आपको मिलेगी। चाहे वह छोटी दुकान हो या बड़ी दुकान। 18 साल से कम उम्र के बच्चों को खैनी,गुटखा या पान मसाला खाना माना है लेकिन फिर भी बच्चे खाते हैं ठिक उसी प्रकार से बाल मजदूरी करना ठिक नहीं फिर भी बच्चे कर रहे हैं। यदि बाल मजदूरी को रोकना है तो हमें उसकी तह तक जाना होगा और हकीकत को जानना पड़ेगा कि ऐसी क्या मजबूरी है कि यह बालक बाल मजदूरी करने को मजबूर है।इनके घर की वास्तविक परिस्थितियां क्या है उसे भी जानने की बहुत आवश्यकता है।
ब्यूरो रिपोर्ट : राजेश सिसोदिया, दाहोद