चुनाव कोई भी जीते आएगी तो बीजेपी ही। ऐसा हम नहीं बल्कि आंकड़े कह रहे हैं। कई प्रदेशों में देखने को भी मिला है और फिर ये तो एमसीडी चुनाव हैं।
100 का आंकड़ा पार करने वाली पार्टी अब सदन में चौथी बार सत्ता हासिल करने की कवायद में है। बुधवार को सांसद गौतम गंभीर का यह बयान आने के बाद कि कूड़े का पहाड़ तो भाजपा ही खत्म करेगी, दिल्ली की सियासत में खलबली मच गई। सब इसके अपने मायने-मतलब निकालने में लगे हैं।
एमसीडी चुनाव में भाजपा बेशक बहुमत के आंकड़े से दूर रही, लेकिन निगम की सत्ता हथियाने की दौड़ में पीछे नहीं है। 100 का आंकड़ा पार करने वाली पार्टी अब सदन में चौथी बार सत्ता हासिल करने की कवायद में है। बुधवार को सांसद गौतम गंभीर का यह बयान आने के बाद कि कूड़े का पहाड़ तो भाजपा ही खत्म करेगी, दिल्ली की सियासत में खलबली मच गई। सब इसके अपने मायने-मतलब निकालने में लगे हैं।
वहीं, पार्टी कार्यालय में केंद्रीय पदाधिकारियों से लेकर प्रमुख नेताओं ने लगातार बैठक की। जीते हुए पार्षदों को भी प्रदेश कार्यालय बुलाकर नेताओं ने जो टिप्स दिए उससे भी जाहिर है कि अंदरखाने भाजपा की खिचड़ी मेयर बनाने को लेकर पक रही है। उधर, सियासत में हलचल मिलने के बाद आप आदमी पार्टी ने भी इस पर अपने अंदाज में प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि हिम्मत है तो भाजपा निगम में अपना मेयर बनाकर दिखाए।
इससे पहले चुनावी परिणाम हक में न होने के बावजूद पार्टी प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता, मीडिया रिलेशन प्रमुख हरीश खुराना, चुनाव प्रबंधन समिति संयोजक आशीष सूद, वरिष्ठ उपाध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा, प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर, यासिर जिलानी सहित अन्य सभी नेता आत्मविश्वास से लबरेज दिखे। भाजपा नेता यह कहने से भी नहीं चूके कि जितने विपरीत दावे एग्जिट पोल और अन्य स्थान पर चर्चा में थे, उससे कहीं अधिक अच्छा प्रदर्शन पार्टी ने किया है।
भाजपा नेता अपने पुरानी गलती को दोहराने के पक्ष में नहीं हैं। दिल्ली विधानसभा (2013) के चुनाव में भाजपा 32 सीट लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन जादुई आकड़ा नहीं होने से कांग्रेस के समर्थन पर आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई। कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद भाजपा जोड़तोड़ कर सरकार बनाने की जगह चुनाव कराने के पक्ष में थी। इसके बाद के चुनाव में आम आदमी पार्टी लगातार परचम लहराती रही और आज दो राज्यों में सरकार चला रही है। इससे सबक लेते हुए भाजपा यह गलती दोबारा नहीं करेगी।
हाल ही में संसद में एकीकरण के निमित्त संशोधित डीएमसी एक्ट में भी दल-बदल कानून का कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। यह भी साफ किया गया है कि मनोनीत सदस्यों को मत देने का अधिकार नहीं है। इस तरह से निर्वाचित 250 पार्षद, प्रशासक द्वारा मनोनीत 10 विशेषज्ञ सदस्य व स्पीकर द्वारा 14 विधायकों को मिलाकर 274 सदस्यों वाला दिल्ली नगर निगम का सदन होगा। दल-बदल कानून लागू नहीं होने से मेयर के चुनाव में कोई भी पार्षद किसी भी दल के मेयर उम्मीदवार के पक्ष में वोट दे सकता है। इसके लिए किसी तरह की व्हीप पार्टी की तरफ से जारी नहीं होता है। सदन में पार्षद अनुपस्थित भी रह सकता है। जिस दल के मेयर के लिए वोटिंग की गई होगी, वह अवश्य मेयर बन सकता है। एकप्रकार से इसे क्रॉस वोटिंग कह सकते हैं।
चर्चा यह भी है कि इसके लिए पार्टी आलाकमान ने भी हरी झंडी दे दी है, ताकि निर्दलीय पार्षदों के अलावा अन्य भी भाजपा के मेयर के लिए पक्ष में खड़े होने से परहेज न करें। इसके लिए कुछेक वरिष्ठ पदाधिकारियों को विशेष तौर पर जिम्मेदारी सौंपी गई है। लगातार आप के बढ़ रहे ग्राफ को रोकने के लिए एमसीडी की सत्ता में मेयर बनाना बेहद जरूरी है। वैसे भाजपा प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति संयोजक व जम्मू-कश्मीर के सह प्रभारी आशीष सूद की मानें तो निगम की पहली बैठक जनवरी में होगी और तभी मेयर का भी चुनाव होगा। मेयर के चुनाव में सांसद और विधायक भी वोट देते हैं।
ब्यूरो रिपोर्ट : अनिल कुमार, दिल्ली