इस दिवस पर अपने कविता और इसके इतिहास को संछिप्त में बताते हुए स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी कहते है कि,,
प्रत्येक वर्ष 31 अक्टूबर को वर्ल्ड थ्रिफ्ट डे यानी विश्व बचत दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य समग्र रूप से सभी सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़े व्यवसायी सामाजिक व्यक्तियों और राष्ट्रों की बचत और वित्तीय सुरक्षा को बढ़ावा देना है।इस बचत दिवस का उद्देश्य बचत के प्रति लोगों के व्यवहार को बदलना है और लगातार धन के महत्व को स्मरण दिलाना है।
धन की बचत से व्यवसाय शुरू करने, अच्छी शिक्षा प्राप्त करने और अच्छे स्वास्थ्य उपचार का लाभ उठाने में मदद मिलती है। लोगों में बचत की आदत दो लोगों के परस्पर लेन ओर देन के साथ-साथ देश को भी आर्थिक व व्यवसायिक स्वतंत्रता भरी सफलता व विकास देगी।
बचत हर क्षेत्र में करनी चाहिए चाहे बल की बचत हो या धन की बचत या बुद्धि की व्रद्धि करते हुए उसके अतिरिक्त उपयोग की सही दिशा में बचत हो या सेवा भाव और जप तप को अधिक मात्रा में करके उसकी पुण्यबल की व्रद्धि करके की गई जप तप सेवा की बचत को किसी अन्य को आवश्यकता पड़ने पर वरदान रूपी सहायता से दान करने की सामर्थ्य प्राप्ति करना आदि महान धर्म यानी आध्यात्मिक कर्म फल रूपी बचत कहलाती है।
यो इस को ध्यान में रखते है ये बचत की महिमा पर कविता इस प्रकार से कहीं है कि,,
बचत कुशल बुद्धि उपयोग अर्थ
धन का मितव्ययी पर सही उपयोग।
उपयोगितावादी दृष्टिकोंण मनुष्य
वही सुखी आज कल मिल सुयोग।।
बचत सभी क्षेत्र करना सीखों
धन बल बुद्धि सद्कर्म।
धन कि बचत धन लाभ दे
बल शरीर स्वस्थ दे नवश्रम।।
बुद्धि बचत दे विवेक बल
सद्कर्म बचत बढ़े पुण्य।
तीनों बल की बचत सदा
मानुष जीवन सफल दे धन्य।।
बने दूजे सहायक बचत धन
वो खर्च परिजन हो या स्वयं।
घर पर भी धन रखो बचत
उपयोगी बन तुरंत फलदायी स्वयं।।
अधिक बचत धन जमा करो
जा खाता खोल बैंक स्व देश।
वो काम आए भविष्य निधि बन
ब्याज बढ़ खुद विकास संग देश।।
धन बचा न ब्याजी बने
ना अधिक ले बचत का ब्याज़।
ब्याज़ अधिक शाप जीवन दे
उस वंश कभी न हो जन नाज।।
निज गुल्लक घर में राखिए
नित दिन कुछ धन डाल।
यही बचत धन बन पुण्य तेरा
यायक काम आये बुरे काल।।
जप सेवा दान अधिक करो
वही बचत बन आये काम।
जप की बचत पद प्रतिष्ठा दे
रोग मिटाएं सेवा बचत दान करे कल्याण।।
आज मनाओ बचत दिवस
निज गुल्लक रख घर अपने।
आज ही जाकर खाता खोल बैंक
बचत धन डाल पूरे भविष्य कर सपने।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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