
कभी दोस्त तो कभी दुश्मन,
कभी हां तो कभी ना।
जी हां राजनीति का यही स्वरूप है, जो आज दोस्त था वो कल दुश्मन भी हो सकता है, और जो कल का दुश्मन था वो आजका जिगरी यार हो सकता है। यही राजनीति है। राजनीति आजकल कुर्सी की होती है, संभावनाओं की तलाश में होती है।
हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र की राजनीति की उठक पटक पर। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान होते ही पार्टियों का आपस में सीटों के बंटवारे लिए बंदरबांट होने लगा है।
शिव सेना और बीजेपी इस बार साथ में चुनाव लड़ने जा रही हैं। पिछली बार यानि 2014 में दोनों पार्टियों ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन दोनों के लिए ही परिणाम बहुत बेहतर नहीं रहा। खासकर शिवसेना के लिए।
अर्से से मुख्यमंत्री पद की तलाश में शिवसेना हर बार चूक जाती है।
2014 में शिवसेना ने चुनावी हवा को अपने पक्ष में भी करना चाहा लेकिन कर न पाई।
और आखिरकार उसे बीजेपी के साथ ही मिलकर सरकार बनानी पड़ी या यूँ कहें कि सरकार बनाने में शिवसेना को बीजेपी का सहयोग करना पड़ा और मुख्यमंत्री की सीट भी बीजेपी की ही रही।
अब इस बार शिवसेना पूरे जोर शोर के साथ चुनावी मैदान में है। अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि को भुनाने की लाख कोशिशों के बावजूद शिवसेना कहीं पिछड़ गई।
और वो वजह है मोदी लहर। आज देशभर का वातावरण मोदीमय है। देश के कौने कौने में मोदी लहर लोगों के सर पर चढ़कर बोल रही है।
अब इसी को देखते हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में 124 सीटों पर राजी होकर शिवसेना ने बीजेपी का छोटा भाई बनना स्वीकार कर लिया। बीजेपी ने सीटों की हिस्सेदारी में बाजी मारने के साथ ही शिवसेना को चार बड़े क्षेत्रों में एक तरह से बेदखल कर दिया है। पुणे, नवी मुंबई, नागपुर और नासिक में विधानसभा की 20 सीटें हैं, लेकिन शिवसेना के खाते में इन चारों इलाकों से एक भी सीट नहीं है। ऐसे में मुंबई और ठाणे के बाहर शिवसेना की मौजूदगी नजर ही नहीं आती है। मुंबई की 36 सीटों में से शिवसेना 19 और बीजेपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं, ठाणे में बीजेपी की एक सीट के मुकाबले शिवसेना के हिस्से में तीन सीटें आई हैं।
सीट शेयरिंग के 164-124 फॉर्म्युले में में दोनों सहयोगी कुछ शर्तों पर भी सहमत हुए हैं। शिवसेना का कहना है कि उसे बीजेपी कोटे से विधान परिषद की दो अतिरिक्त सीटों का वादा किया गया है। आरपीआई और आरएसपी जैसे सहयोगियों को बीजेपी अपने कोटे में समायोजित करेगी। हालांकि बीजेपी ने साफ किया है कि वह मुख्यमंत्री पद शेयर नहीं करेगी। साथ ही शिवसेना को डेप्युटी सीएम पोस्ट भी नहीं दी जाएगी। जोकि शिवसेना उम्मीद जगाए बैठी थीं शिवसेना ने वाकायदा आदित्य ठाकरे को चुनाव मैदान में उतारा है। यह पहला मौका है जब शिवसेना से ठाकरे परिवार का कोई नेता चुनावी मैदान में है।
वहीं इस गठबंधन को लेकर शिवसेना की ओर से कहा गया कि ‘गठबंधन होने पर यहां-वहां चलता ही रहता है। शिवसेना के बारे में इस बार ये मानना पड़ेगा कि लेना कम और देना ज्यादा हुआ है। लेकिन जो हमारे हिस्से आया है, उसमें शत-प्रतिशत यश पाने का हमारा संकल्प है।’
शिवसेना और बीजेपी के बीच तीन दशक पुराना प्यार और तकरार का रिश्ता रहा है। इस साल मई में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले उद्धव की अगुआई वाली शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही। 2014 से पहले तक शिवसेना ने बीजेपी को 105 से 119 सीटों के बीच हिस्सेदारी दी। सियासी जानकारों का मानना है कि शिवसेना 2014 की तरह जोखिम नहीं उठाना चाहती है, जब सीट बंटवारे पर बातचीत फेल होने के बाद दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
2014 में, शिवसेना 288 सीटों में से 151 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी। मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने शिवसेना के साथ काफी सीट बंटवारे पर काफी जद्दोजहद की। लेकिन शिवसेना सीटें देने को राजी न होकर अपनी मांग पर अड़ी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी ने 122 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना ने 63 सीटें हासिल कीं।’
शिवसेना के लिए इस बार का फैसला व्यावहारिक था। शिवसेना के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘एक ऐसे वक्त में जब बीजेपी मोदी लहर और हिंदुत्व लहर दोनों पर सवार है, उद्धव अलग-थलग पड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकते। कांग्रेस-एनसीपी के साथ भी गठबंधन की कोई संभावना नहीं थी, क्योंकि वे दूर-दूर तक सत्ता में लौटने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने हालात के हिसाब से फैसला लिया है, जैसा हम 2014 में नहीं कर सके थे।’
पार्टी के नेताओं का यह भी मानना है कि आदित्य ठाकरे के चुनाव में उतरने के बाद उनकी बड़े अंतर से जीत सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन अहम था। पार्टी पहले ही उन्हें अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट बताती रही है। इस बीच शिवसेना को पहली लिस्ट जारी होने के बाद अपने नेताओं की बगावत और इस्तीफों से भी जूझना पड़ रहा है।
शिवसेना के एक नेता का कहना है, ‘अगर हम अपना स्ट्राइक रेट सुधार लेते हैं और 100 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करते हैं तो हम मुख्यमंत्री और डेप्युटी सीएम के पद के लिए जोर लगा सकते हैं। हमें 100 सीटों के आंकड़े को पार करना होगा।’
महाराष्ट्र में मतदान की तारीख 21 अक्टूबर अब दूर नहीं है और 24 अक्टूबर को परिणाम घोषित हो जाएगा। इसके बाद कि जो स्थिति होगी वो देखने वाली होगी। क्या कांग्रेस एनसीपी जो पूरी तरह से अलग थलग हैं, वापसी की स्थिति में होंगी? या बीजेपी शिवसेना आपसी भेदभाव के बावजूद एक दूसरे का जय वीरू की तरह साथ निभाकर मोलभाव के साथ सरकार बना लेंगे।
इतंजार करिये 24 अक्टूबर तक, नतीजे आजके सामने होंगे।

मुम्बई से ख़बर 24 एक्सप्रेस के लिए कन्हैयालाल मराठा की रिपोर्ट
Discover more from Khabar 24 Express Indias Leading News Network, Khabar 24 Express Live TV shows, Latest News, Breaking News in Hindi, Daily News, News Headlines
Subscribe to get the latest posts sent to your email.