“ॐ शं शनैश्चराय नमः”
आज शनिवार के शुभअवसर पर श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज शानि भगवान के प्रिय रत्नों के बारे में बता रहे हैं जिससे आपके भाग्य के सभी दोष दूर हो जाएंगे।
श्री सत्य साहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज कहते हैं कि श्री शनि देव भाग्य के देवता हैं, न्याय के देवता हैं, कर्मफल दाता हैं। वैसे तो शनि भगवान की आराधना मात्र से ही समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। लेकिन हमारे दैनिक जीवन के बहुत से ऐसे कार्य होते हैं, या हम करते हैं, जिनकी वजह से हम अक्सर ऐसी गलतियां कर जाते हैं जिनका आभास तक नहीं होता है। और उन्हीं गलतियों का नतीजा हमें भारी नुकसान के रूप में भुगतना पड़ता है।
तो आज हम आपको ऐसी चीजें बता रहे हैं जो आपके जीवन में उजाला भर देंगी।
“शनि ग्रह और उनके देव शनिदेव तथा शनि के रत्न नीलम, व उसके उपरत्न, व शनि मुद्रिका क्या है और उनको कैसे सिद्ध करके मनुष्य का कल्याण हो सकता है? तो आइए जानते हैं इन रहस्यों के बारे में।”
शनि ग्रह को भाग्य का देव कहा जाता है और भाग्य सभी मनुष्य का होता है तथा भाग्य के पांच भाग है-
1- शिक्षा और दीक्षा
2- नौकरी और व्यवसाय यानि जीवन यापन
3- प्रेम और विवाह
3- संतान और उत्तम संतान
4- स्वास्थ्य, रोग और उससे मुक्ति
5- सामाजिक पद- प्रतिष्ठा- उन्नति- यश आदि।।
ये सब भाग्य के पांच भाग है, जिनमें से सभी को इन पांचों की आवश्यकता है, जो सभी को नहीं मिलते है, या इनमें से कोई न कोई एक या दो या तीनों या सारे कम या मध्यम स्तर के प्राप्त होते है और ये कम की प्राप्ति ही दर्भाग्य कहलाता है।
अर्थात भाग्य या शनि का कोप.. और इन पांचों की अधिकता ही मनुष्य को विश्व प्रसिद्ध बनाती है और यही स्वर्ग कहलाता है और इन पांचों का सन्तुलन ही योगी होना है तथा इनका असन्तुलन ही नरक कहलाता है।
वैसे तो भाग्य की सभी को किसी न किसी रूप में पूर्ण आवश्यकता होती है और जब आवश्यकता है तो उसका मूल उपाय है उसका रत्न और उसका मंत्र।
तो रत्न नीलम भी इसी कारण पांच प्रकार के होते है।जो पहचानें नही जाते है, बल्कि उन्हें लाकर टेस्ट या परीक्षण किया जाता है।
परीक्षण कैसे करें :-
देखने में नीलम दो प्रकार के होते हैं,
1- हलका नीले रंग का नीलम और
2-।गहरे नीले रंग का नीलम।
पर इन्हीं दो नीलमों में ही अन्य तीन नीलम छिपे होते है,जो केवल व्यक्ति द्धारा अपने लिए टेस्ट करके और उनका स्वप्नों द्धारा ज्ञान से पाया जाता है जैसे कि
प्रकर्ति यानि पेड़ पोधे आदि का देखने से स्वास्थ्य के लिए धारण करने वाला नीलम है।
और सजे हुए हाथी या घोड़े का पुत्र या उच्च संतान की प्राप्ति का नीलम है।
शत्रु को या दुष्ट वृति वाले पशु और जीवों का अपने साथ मित्रवत व्यवहार करने का स्वप्न देखने पर सामाजिक प्रतिष्ठा-पद आदि वृद्धि देने वाले नीलम का शुभ होना अर्थ है।
सजी हुयी स्त्री या पुरुष का आपके निकट आने और कुछ वस्तु देने का स्वप्न नौकरी प्राप्ति या व्यवसाय या नवीन व्यवसाय आदि में वृद्धि के नीलम का अर्थ है।
अपने से विपरीत लिंगी प्रसिद्ध अथवा केवल अच्छे पुरुष या अच्छी स्त्री का स्वयं के निकट आकर प्रणय निवेदन या भोगरत होने करने का स्वप्न प्रेम की प्राप्ति अथवा शीघ्र विवाह के नीलम का अर्थ है,की पहना हुआ नीलम आपकी इस मनोकामना को पूर्ण करने वाला है।
और इस सबके विपरीत स्वप्न हो तो पहना नीलम अशुभ है।
ये ऐसे जाने कि :
जेसे आपको रोग कोई है और ओषधि कोई दी गयी है, तो वो ओषधि होते हुए भी आपको और आपके रोग का निदान नहीं होने से हानि कारक है,यो त्यागने योग्य है अथवा अशुभ है।
यो ही प्रत्येक व्यक्ति को ये पांच नीलम उनकी पांचों जीवन की आवश्यकता के अनुरूप टेस्ट कर पहनने होंगे।समझे
ज्योतिषियों और रत्न विक्रेताओं ने लोगो के द्धारा बार बार टेस्ट परीक्षण किये जाने से और न पसंद आने के कारण पहले तो ऐसा करने के बदले पैसा काट लेते थे,बाद के वर्षों में उन्होंने उसे सीधा बेकने के भाव से ऐसा करने को मना कर दिया और बस खरीद लो या कोई और रत्न पहन लो।यो ये नीलम के परीक्षण होने और पहनने बन्द हो गए।जो की पूर्णतया गलत है।
नीलम को सभी राशि वाले पहन सकते है।
बस परीक्षण की आवश्यक्ता भर है और व्यक्ति को सम्पूर्ण भाग्य वृद्धि का लाभ मिलेगा।
शुक्रवार की रात्रि को नीलम अपनी बीच की मध्यमा ऊँगली में टेप से या बेंडेड से ऊँगली के ऊपर की ओर चिपका कर बांध ले और जो शुभ स्वप्न आये तो सोने या चांदी की अंगूठी में बनवा कर पहन लें।
यदि अशुभ है तो और नीलम लेकर ऐसे ही स्वप्न देख कर टेस्ट कर पहन ले।
बस व्यक्ति को ये ही टेस्टिंग यानि परीक्षण करने के समय का धैर्य करना है और फिर मनवांछित भाग्य लाभ की प्राप्ति अवश्य होगी। ये अनुभूत प्रयोग है।
प्रथम उपाय:-
ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है कि शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब शनि पुष्य महूर्त बनता है, तब काले घोड़ा जो दौड़ रहा हो और उसकी अपने आप छोड़ी उसके पैरो में लगी लोह नाल अचानक निकल जाये, तब उस लोह नाल को जो मनुष्य ले कर उसको बिना आग में तपाये, लोहार से उसका छल्ला बनवा कर, उसे एक प्लेट में सरसों के तेल में डुबो का रखे और शनि भगवान ने नाम का स्मरण करते हुए उसमें शनिदेव भगवान की स्म्रति को आशीर्वाद स्वरूप लेकर, तब “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का कम से कम 108 बार या अधिक जप करें, जप के उपरांत दूसरी प्लेट में दूध-गंगा जल-दही-शहद-गो मूत्र का पंचाम्रत बनाकर उसमें इस शनि छल्ले को धोये, तब शनिदेव का स्मरण करते हुए, अपनी सीधे हाथ की मध्यमा ऊँगली में पहने, अब तेल का दीपक बनाकर उसे शनिदेव मन्दिर अथवा पीपल पर जलाये और पंचाम्रत को भी वहीं चढ़ाएं। तब ऐसा करने पर मनुष्य के भाग्य में यदि कंगालापति योग भी है, तो वो शनिदेव की कृपा से महालक्ष्मी योग से परिपूर्ण हो जायेगा।
लेकिन ऐसा सारा योग किसे और कैसे मिलता है?
ये असम्भव में से एक है और यदि ऐसा होता भी है, तो ये प्राप्ति होना उसका पूर्वजन्म का प्रबलतम भाग्य ही होगा। ये दुर्लभ है।
आजकल इस योग के नाम पर बड़ी ठगाई चल रही है। अनेक ऐसे लोग अपने घोड़ों को शनिवार के पुष्य नक्षत्र योग में दौड़ा कर उनके पैरों में ढीली करके लोह नाल लगा देते है और घोड़े के थोड़ा दौड़ने पर वो नाल निकल जाती है और उस नाल को महंगे दामों पर बेचते है, जोकि किसी काम की नहीं होती है। ये क्रतिम उपाय लाभकारी नहीं है।बस मन बहलाने को ठीक है।
-द्धितीय उपाय:-
तब ज्योतिष ज्ञानियों ने एक और उपाय निकाला कि शनि पुष्य नक्षत्र में गंगा जी में चलती नाव की कील को निकाल कर उसकी ठीक पहले की तरहां छल्ला बनाकर उसे उसी विधि से धारण करें। तब उतना तो नहीं परंतु धीरे-धीरे शनि कृपा का लाभ अवश्य मिलेगा।
तीसरा उपाय :-
किसी सिद्ध शनि मन्दिर से मिलने वाली लोह छल्ले को वहां के पुजारी से शनिवार के दिन लेकर पहने।
हाँ इस लोह छल्ले को और भी शनिदेव की कृपा शक्ति से युक्त फलदायी बनाने का अचूक उपाय है- कि अपने इस प्राप्त लोह छल्ले को शुक्रवार की रात्रि में सरसों के तेल में डुबो कर अपने पूजाघर में रात्रि भर रख दे और वहां अखण्ड ज्योति प्रातः तक को जला दे, वो बुझ भी जाये तो चिंता न करें, उसकी देख स्वयं शनिदेव करेंगे। अब रात्रि में अपने बिस्तरे पर भी लेटे-लेटे
“ॐ शं शनैश्चराय नमः”
लोह छल्ले को स्मरण करते-करते चाहे सो जाये, तब अवश्य स्वप्न में शनिदेव का तुम्हारे भाग्य सम्बंधित स्वप्न में शुभ आदि संकेत प्राप्त होगा, तब प्रातः उठकर स्नानादि करके अब उस शनि मुद्रिका को शनि मंत्र से जप कर उसे पंचाम्रत से स्नान यानि धोकर अपनी मध्यमा ऊँगली में पहने और उस बचे तेल का दीपक शनि मन्दिर या पीपल पर जलाये और पंचाम्रत को पीपल या किसी फूल वाले पोधे पर वहाँ चढ़ाये। अगर 8 शुक्रवार करके शनिवार में इस प्रकार छल्ला पहने से शनिदेव की बड़ी ही चमत्कारिक कृपा की अवश्य प्राप्ति होगी। ये अनुभूत प्रयोग है।
जब मनुष्य का भाग्य निर्बल होता है,तब उसके शरीर में लोह तत्व की बड़ी भरी कमी होती जाती है, इस लोह तत्व की पूर्ति इस उपाय से होती है, शनि छल्ला पहनाया जाता है। लेकिन यहाँ स्मरण रहे की-इस लोह छल्ले में घोड़े के पेरो के घर्षण से और गंगा जल के निरन्तर घर्षण से अथवा मन्त्र जप के घर्षण से एक सकारात्मक शक्ति का उदय होता है,जिसके फलस्वरुप आकाश तत्व का लोह छल्ले में आकर्षण होकर उस पहनने वाले को प्राप्त होता है। अन्यथा तो लोह तत्व के विटामिनों को खाने से शनिदेव की कृपा की प्राप्ति नहीं होगी।यो इस भ्रम में नहीं रहे।
शनिदेव का रंग अथवा आकाश तत्व का रंग काला या चमकदार नीला होता है,विशेषकर पृथ्वी पर उसका आकर्षण होकर जल तत्व से मिश्रण होकर ये नीलवर्ण शक्ति बनती है,जो पृथ्वी में इस अद्धभुत आकाश तत्व का संग्रह-नीलम रत्न के रूप में प्राप्त होता है।ये है-नीलम रत्न को पहनने का ज्योतिष विज्ञानं का वैज्ञानिक रहस्य।
अधिकतर भगवान को निलवर्णीय दिखाया जाता है,क्योकि प्रत्येक तत्व में स्त्री-ऋण और पुरुष-धन शक्ति होती है,यो आकाश तत्व के भी दो स्वरूप होते है-पुरुष-स्त्री।यो आकाश को पुरुष तत्व माना भी गया है और आकाश मनुष्य का पिता माना है,तथा आकाश तत्व के रंग पुरुष भगवान अथवा जिस देवी में आकाश तत्व यानि स्त्रित्त्व शक्ति की अत्यधिक अधिकता होती है,यो निलवर्णीय देवी भी होती है।
यो शनि यानि भाग्य के भी दो पक्ष-स्त्री और पुरुष का संयुक्त रूप भी होता है,जैसे-बिन ऋण और धन के कोई विधुत आदि उत्पन्न से लेकर नही कार्य करती है।यो ही बिना स्त्री और पुरुष के इस संसार में कोई कर्म सम्भव नहीं है।यो शनिदेव और उनकी पत्नी नीलादेवी की कृपा मिलकर ही मनुष्य का भाग्य और कृपा बनती है।ये समझने को संछिप्त सहज उदाहरण दिया गया है।
यो नीलम अथवा उसके उप या साहयक रत्न-नीली-कटैला-फिरोजा आदि को भाग्यदोष निवारण को पहनाया जाता है।
शनि मुद्रिका यानि लोह छल्ले के दोनों छोर मिले होने चाहिए या दोनों अलग अलग होने चाहिए..
इसको कैसे पहना जाये :-
इस विषय में विज्ञानवत बात है कि – जब घोड़े की नाल से या नाव की कील से बनी शनि मुद्रिका हो तो, उसमें जो आकर्षण शक्ति का उदय घोड़े के दौड़ने से और गंगा जी के जल के घर्षण से उत्पन्न होने से और साथ ही शनि मंत्रों के जप से होता है, तो उसको परस्पर मिलाने से उसकी ऊर्जा समाप्त हो जाती है, उन दोनों लोह छोरों को कम अंतर से रखते है, ताकि उनके दोनों छोरों के बीच में ऊर्जा तड़ित होती रहने से पहनने वाले व्यक्ति को बीच बीच में मिलती रहती है। छोर मिले हुए नहीं होने चाहिए। इसे स्कूटर के प्लग के उदाहरण से जाने की – प्लग में भी पिस्टन के संघर्ष से उत्पन ऊर्जा इकट्ठा होकर उसमें दो छोर के बीच आकर तड़ित होती है, तभी वहाँ अग्नि और विधुत उत्पन्न होकर स्कूटर को मिलती है। वहाँ यदि ज्यादा अंतर रहा या कम तब भी स्कूटर स्टार्ट नहीं होता है। कुछ ऐसा ही विज्ञान यहां भी जाने।
शनि बीज मंत्र का जाप करना :-
ॐ शं शनैश्चराय नमः..में शं..शनिदेव (पुरुष शक्ति)और नीलादेवी (स्त्री शक्ति) का संयुक्त बीजमंत्र है। परन्तु इसका ही जप से उतना लाभ नहीं होता है, जितना की-पुरे मन्त्र के जपने से लाभ होता है, यह सम्पूर्ण मंत्र जपना चाहिए।
ये ही है शनिदेव और उनकी शक्ति का संयुक्त द्धितीय मंत्र-ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनैश्चराय नमः..का जप करना चाहिए।
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जय श्री शनि देव
जय सत्य ॐ सिद्धाय नमः
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज