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नोटबंदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को डुबो दिया : US

नोटबंदी और इमरजेंसी भारत के इतिहास की दो सबसे बड़ी घटनाये हैं और इन दोनों घटनाओं ने भारत को बहुत कुछ ऐसा दिया है जो लोग वर्षों वर्षों तक नहीं भूलेंगे। इन दोनों घटनाओं की चर्चा पूरे विश्व में हैं। इमरजेंसी के घाव तो अब भरने लगे हैं लेकिन जो चोट नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को दी है उसे सालो साल भुलाया ना जा सकेगा।

 

 

 

आपको बता दें कि नोटबंदी की वजह से भारत में अब तक सबसे ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं तो किसी का व्यापार ही नहीं रहा। एक सर्वे के मुताबिक भारत में लगभग 4 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं और लगभग 50000 छोटे बड़े उद्योग इससे प्रभावित हुए हैं। वैसे अभी आकंड़े पूरे तरह से आये नहीं हैं या प्रकशित नहीं हुए हैं, या आने नहीं दिए गए हैं। जिस दिन आंकड़े आएंगे उस दिन इससे पर्दा उठ जायेगा। जुबान वित्तमंत्रालय और आरबीआई भी मानता है कि नोटबंदी का प्रयोग सफल नहीं रहा क्योंकि भारत सरकार ने जितना अनुमान लगाया था उससे ज्यादा की रकम बैंकों में वापस आ गयी।

 

भारतीयों को लाइन में लगा देने वाली नोटबंदी पर अमेरिका की एक प्रतिष्ठित मैगजीन ने दावा किया है कि भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी का नोटबंदी का फैसला अर्थव्यवस्था के इतिहास में देश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला प्रयोग साबित हुआ। मैगजीन ने कहा है कि नोटबंदी के चलते भारत की कैश आधारित अर्थव्यवस्था में एक ठहराव सा आ गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की मैगजीन `फॉरेन अफेयर्स` के ताजा अंक में लेखक जेम्स क्रेबट्री ने लिखा है कि नोटबंदी ने साबित कर दिया है कि वह सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला प्रयोग था। गौरतलब है कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर को 500-1000 के पुराने नोटों को बंद कर चलन से बाहर कर दिए थे। इस बारे में मैगजीन में लिखा है कि मोदी सरकार को अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए।

 

 

ज्ञातव्य है कि लेखक जेम्स क्रेबट्री सिंगापुर में ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सीनियर रिसर्च फैलो हैं। वे पहले भी भारत में नोटबंदी की काफी आलोचना करते रहे हैं। क्रेबट्री ने लिखा कि मोदी के इकोनॉमिक अचीवमेंट्स तो सही हैं, लेकिन उनके ग्रोथ लाने वाले रिफॉर्म्स ने लोगों को एक तरह से निराश किया है। मैगजीन में लिखा है कि नोटबंदी के लिए सरकार ने जितने बड़े स्तर पर काम किया, उसने अर्थव्यवस्था पर उतना असर नहीं डाला। हालांकि पीएम मोदी का यह फैसला काफी चर्चित हुआ।

 

साथ ही जेम्स ने लिखा कि अगर वे 2019 के चुनावों को देख रहे हैं, तो इसके लिए उन्हें पिछले सबक से सीखने में मुश्किल नहीं आएगी। जेम्स क्रेबट्री ने लिखा कि सच तो ये है कि शॉर्ट टर्म ग्रोथ के लिहाज से नोटबंदी खराब रही। 2017 की पहली तिमाही की जीडीपी पर नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नोटबंदी के चलते लाखों भारतीयों को 500-1000 रुपए के नोट बदलने के लिए बैंक की लाइन में लगना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ी।

 

 


नोटबंदी पर क्या कहते हैं भारत के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर कौशिक बसु, नोबेल से सम्मानित पॉल क्रूगमैन और अमर्त्य सेन, फोर्ब्स के एडिटर इन-चीफ स्टीव फोर्ब्स और फ्रेंच इकोनॉमिस्ट गाय सोरमन… पढ़िए इस रिपोर्ट में….
1# नोटबंदी के फायदे से ज्यादा नुकसान होंगे
– भारत के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर और वर्ल्ड बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट रहे कौशिक बसु ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा था, ”करप्शन, टेरर फाइनेंसिंग और इन्फ्लेशन रोकने के लिए नोटबंदी का फैसला लिया गया था। लेकिन इसे इतनी खराब तरह से डिजाइन किया गया कि इसके नाकाम होने के आसार हैं। अभी तक इसके नतीजे मिडल क्लास, लोअर मिडल क्लास और गरीबों के लिए मुसीबत लाने वाले रहे हैं। इससे भी बदतर हो सकता है।”
– “करप्शन जैसी दिक्कतों से निपटने की सरकार की इच्छा तारीफ-ए-काबिल है, लेकिन नोटबंदी का फैसला इतनी जल्दबाजी में लिया गया कि इससे करप्शन तो टेम्पररी तरीके से ही रुकेगा, लेकिन पूरी इकोनॉमी हिल जाएगी।”
– ”दरसअसल, भारत में मौजूद ब्लैकमनी पूरी तरह से कैश में नहीं है। ये सिल्वर, गोल्ड, रियल एस्टेट और विदेशी बैंकों में जमा खातों में मौजूद है।”
– ”जो जाली नोट पहले से चलन में हैं, उन्हें पकड़ने से आतंकियों को रोकने की मदद नहीं मिलेगी। इससे आप इकोनॉमी में जाली करंसी को आने से भी नहीं रोक पाएंगे। इससे सिर्फ उन लोगों के लिए असुविधा पैदा होगी जो असली नोटों का इस्तेमाल कर रहे हैं और जिनका आतंकियों या ब्लैकमनी से कोई लेना-देना नहीं है।”
– “मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला ‘गुड इकोनॉमिक्स’ कतई नहीं है। इसके फायदों से ज्यादा, इसके नुकसान होंगे। GST को आप गुड इकोनॉमिक्स की कैटेगरी में रख सकते हैं, लेकिन नोटबंदी को नहीं रख सकते।”
2# नोटबंदी से एक ही बदलाव आएगा, बेईमान अब ज्यादा सतर्क हो जाएंगे
– 2008 में इकोनॉमिक्स के नोबेल से सम्मानित हो चुके पॉल क्रूगमैन ने एक लीडरशिप समिट में कहा था, ”बड़े नोटों को बंद करने से भारत की इकोनॉमी को बड़ा फायदा होते नहीं दिख रहा। इस फैसले से सिर्फ करप्ट लोग भविष्य में ज्यादा अलर्ट हो जाएंगे। हम समझ पा रहे हैं कि नोटबंदी का फैसला अचानक ध्यान बंटाने का बड़ा कदम है, लेकिन क्या इससे किसी के बर्ताव में बदलाव आ जाएगा? अगर मैं गलत साबित हो जाऊं तो मुझे खुशी होगी।”
– ”लोगों के बिहेवियर में सिर्फ एक ही परमानेंट बदलाव आएगा, वह यह कि बेईमान लोग अपने पैसे को काले से सफेद करने के मामले में ज्यादा सतर्क हो जाएंगे और उसके ज्यादा नए तरीके ढूंढ लेंगे।”
3# इकोनॉमी की बुनियाद हिला देने वाला मनमाना फैसला
– इकोनॉमिक्स के नोबेल से सम्मानित अमर्त्य सेन ने नोटबंदी के मोदी सरकार के फैसले को ऐसा मनमाना फैसला करार दिया है, जिसने भरोसे पर चलने वाली इकोनॉमी की बुनियाद को हिला दिया है।
– ”नोटबंदी का फैसला नोटों की अहमियत, बैंक खातों की अहमियत और भरोसे पर चलने वाली पूरी इकोनॉमी की अहमियत को कम कर देता है। ये मनमाना फैसला है। बीते 20 साल में भारत ने काफी तेजी से तरक्की की है। लेकिन इसकी बुनियाद एक-दूसरे से कहे गए भरोसे के शब्द हैं। लेकिन नोटबंदी का मनमाना फैसला यह कहने के बराबर है कि हमने वादा तो किया था, लेकिन हम उस वादे को पूरा नहीं कर सकते।”
– हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सेन ने कहा कि अगर सरकार यह वादा करती है कि वह पैसे की कमी नहीं होने देगी और अगर वह वादा टूट जाता है तो उसे तानाशाही भरा कदम कहा जा सकता है।
4# नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला
– बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स के एडिटर इन-चीफ स्टीव फोर्ब्स ने अपने एडिटोरियल में लिखा था कि नोटबंदी का फैसला जनता के पैसे पर डाका डालने जैसा है।
– फोर्ब्स ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की तुलना 1970 के दशक में लागू की गई नसबंदी से की है।
– उन्होंने कहा, ”तब नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला लिया गया था, लेकिन उसके बाद से नोटबंदी तक ऐसा फैसला नहीं लिया गया था। मोदी सरकार ने देश में मौजूद 86% लीगल करंसी एक झटके में इलीगल कर दी। यह कदम देश की इकोनॉमी को तगड़ा झटका देगा।”
– “यह जनता के पैसों पर डाका डालने जैसा है। इस फैसले से लोगों को सिर्फ परेशानी मिली है। यह दुनिया के सामने एक डरावनी नजीर पेश करने जैसा है। सरकार को ऐसा लगता है कि नोटबंदी के इस फैसले से देश में आतंकवादी गतिविधियां कम हो जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं है।”
– “इंडियन इकोनॉमी कैश पर ज्यादा डिपेंड है। ऐसे में, अचानक से नोटबंदी ने इकोनॉमी को जमकर नुकसान पहुंचाया है। यह फैसला लेते समय सरकार ने सही प्रॉसेस नहीं अपनाई। किसी डेमोक्रेटिक सरकार का यह कदम हैरान कर देने वाला है। भारत में टैक्स ज्यादा होने की वजह से लोग इसे बचाने के लिए कई तरीके अपनाते हैं। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि टैक्सेशन के नियमों को आसान किया जाए।”
5# जड़ें जमा चुका करप्शन इससे खत्म नहीं होगा
– फ्रेंच इकोनॉमिस्ट गाय सोरमन कहते हैं, “पॉलिटिकल नजरिए से बैंक नोटों को बदलना एक बेहतरीन सियासी कदम है। इससे कुछ वक्त के लिए कमर्शियल ट्रांजैक्शन बंद हो सकता है और इकोनॉमी सुस्त पड़ सकती है। हालांकि, जड़ें जमा चुके करप्शन को यह खत्म नहीं कर सकता।”
– “ज्यादा रेग्युलेशन वाली इकोनॉमी में करप्शन बढ़ता है। करप्शन हकीकत में लालफीताशाही और अफसरशाही के इर्द-गिर्द घूमता है। ऐसे में, करप्शन कम करने के लिए रेग्युलेशन कम करना सही तरीका होगा।”
– ”नरेंद्र मोदी का शासन में जल्दबाजी दिखाना कुछ निराश करने वाला है। मुझे लगता है कि इकोनॉमी को चलाने के लिए पहले से तय उपायों को अपनाना बेहतर कदम होता।”

 

 

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