एक मासूम बिटिया जो अपना भविष्य बनाने दिल्ली आयी हुई थी, लेकिन उसे क्या मालूम था कि वो जिस दिल्ली में अपने भविष्य बनाने आयी है एक दिन वही दिल्ली उसके जी का जंजाल बन जायेगी। वो दिल्ली उसके सभी अरमानों को खा जायेगी, वो दिल्ली जो उसकी जिंदगी को तार-तार कर देगी, वो दिल्ली जो उसकी साँसे छीन लेगी, वो दिल्ली जो उसके परिवार को जिंदगी भर के लिए तड़पने के लिए छोड़ देगी…।
निर्भया, बहादुर बिटिया, मासूम बिटिया ना जाने किन-किन नामों से जानी जा रही थी वो बिटिया।
16 दिसंबर 2012 की वो काली रात। अपने दोस्त के साथ बस के इन्तजार में खड़ी थी, इस बात से अंजान कि कुछ हैवान आकर उसकी अस्मत को तार-तार कर देंगे। उस बिटिया को सिर्फ यही पता था कि वो दिल्ली में है, उस दिल्ली में जो रात दिन चलती रहती है कभी थमती नहीं है, और कभी ना थमने वाली इस दिल्ली में भला उसे क्या हो सकता है। लेकिन उसे नहीं पता था कि इस दिल्ली में कुछ जिस्म के भूंखें आदमखोर जानवर भी रहते हैं। वो जानवर जिन्हें सिर्फ महिलाओं बच्चियों के मांस से अपनी भूंख मिटाना आता है।
और फिर क्या था बस वो एक पल जिसमें सब कुछ ख़त्म हो गया वो वो मासूम बच्ची जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थी अपने लड़की होने पर खुद को कोस रही थी। वो भीख मांग रही थी भैया मुझे छोड़ दो, मुझे मत मारो, भैया आपके घर भी बहन होगी, भैया आपको जिसने जन्म दिया उस माँ का वास्ता, भैया मुझे मत मारो, भैया अपनी बहन को याद करो, उस बहन को याद करो जो आपकी कलाई पर राखी बांधती होगी, उस माँ को याद करो जिसने आपको पाल पोस कर इतना बड़ा किया, प्लीज मेरे जिस्म के साथ मत खेलो, भैया आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ मेरा रूपया पैसा सब ले लो, लेकिन मेरे साथ ऐसा गन्दा खेल मत खेलो….. वो गिड़गड़ाती रही लेकिन हैवान अपनी हैवानियत से थके नहीं, वो तब तक उसके साथ हैवानियत का खेल खेलते रहे जब तक वो मासूम बिटिया अधमरी नहीं हो गयी। और जब वो किसी काम की नहीं रही वो आदमखोर जानवर उस मासूम को सड़क किनारे गड्ढे में मरने के लिए छोड़ गए।
ये कहानी थी उस निर्भया की जिसकी अस्मत को 6 हैवानों ने ताड़-ताड़ कर दिया था, उन हैवानों में एक 16 साल का नाबालिक भी शामिल था, ये वो नाबालिक था जिसने सबसे ज्यादा हैवानियत की, उस बिटिया के जिस्म को हर जगह से कुत्ते की तरह नौंचा, ठीक वैसे ही जैसे चील किसी मांस के टुकड़ों को नौंच रही हो।
लेकिन हमारे कानून की खामियों की वजह से उसको उसकी हैवानियत की सज़ा महज़ 3 वर्ष की मिली।
5 हैवानों में से एक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली और बाकी चारों की सजा को आज सुप्रीम कोर्ट ने बरक़रार रखा। बड़ी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही कहा कि इनका जुर्म ज़रा भी माफ़ी के लायक नहीं है इनकी फांसी की सजा को बरक़रार रखा जाये वैसे ही उन आदमखोर हैवानों की आँखों से बेशर्मी के आँसू टपक पड़े। ये पश्चाताप के आँसू तो कतई नहीं हो सकते हैं क्योंकि अगर ऐसा होता तो वो इतना बड़ा गुनाह कभी ना करते।
5 साल के लंबे वक़्त के बाद बेटी निर्भया को अधूरा इन्साफ तो मिला।
लेकिन उसकी आत्मा को शांति तभी मिलेगी जब ये चारों फांसी के फंदे पर लटक जायेंगे और वो नाबालिक भी कानून के हाथों मारा जायेगा।
दिल्ली में दिसंबर 2012 में चलती बस में निर्भया के साथ हुए गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चारों आरोपियो को मिली फांसी की सजा को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद निर्भया की मां ने कहा हम इस फैसले से संतुष्ट हैं। सबका धन्यवाद समाज, देशवासियों और मीडियावालों का शुक्रिया। हम आज कह सकते हैं कि कहीं न कहीं देर है लेकिन अंधेर नहीं।
नाबालिग दोषी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि छूटने पर रहेगा मलाल। मां आशा देवी ने आगे कहा कि पिछले साढ़े चार साल में कई बार खुद को टूटा हुआ महसूस किया, मुझे कई दफा तो ऐसा लगा कि शायद न्याय ही नहीं मिलेगा। मुझे आज के दिन का लंबे समय से इंतजार था और इतने दिनों तक हमारा साथ देने के लिए देशवासियों का धन्यवाद।
उन्होंने कहा कि पहले मेरी बेटी को कोई जानता था फिर भी लोगों ने उसका साथ दिया लेकिन आज भी हालत वैसी ही है। निर्भया की मां ने सरकारों के रवैये पर निराशा जताते हुए कहा कि ऐसे हादसों से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता।
उन्होंने कहा कि कहने के लिए रेप दो वर्णों का एक छोटा सा शब्द है लेकिन सिस्टम को इस बारे में सोचना चाहिए और कड़ा एक्शन लेना चाहिए। मेरी बेटी बेकसूर थी फिर भी उसे न्याय मिलने में इतनी देरी क्यों हो रही है?
उन्होंने कहा कि टीवी पर बयान देने और डिबेट करने से इसका हल नहीं निकलेगा, उन्होंने कहा कि जब तक कड़ा कानून नहीं बनेगा तब तक इस पर हमें न्याय नहीं मिलेगा।सरकार का इस मुद्दे पर संवेदनशील होना काफी जरूरी है।
स्पेशल सीपी दिल्ली पुलिस ने निर्भया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि इस फैसले का डेमोन्सेट्रेटिव इफेक्ट समाज में जाएगा। आज के बाद दूरगामी परिणाम होगा। इस फैसले के बाद कोई इस तरह का क्राइम करने की सोच भी ना सके।
मालूम हो कि 16 दिसंबर 2012 की रात मृतक राम सिंह और उस समय नाबालिग रहे आरोपी के अतिरिक्त चार लोगों ने शनिवार की शाम चलती बस में अपने दोस्त के साथ घर जा रही युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया था।
सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। दोषियों अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश की ओर से हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
बलात्कार के बाद युवती और उसके दोस्त के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया और दोनों को चलती बस से नीचे फेंक कर उसे कुचलने की भी कोशिश की गई थी।
इस मामले के बाद दिल्ली सहित देशभर में व्यापक आक्रोश फैला और विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए। दिल्ली में लोगों का गुस्सा इस कदर बड़ गया कि भारी भीड़ ने राष्ट्रपति भवन तक में घुसने की भी कोशिश की थी।
अगर आपको निर्भया केस के बारे में पता नहीं है तो अब पूरे मामले को जानिये…
बलात्कार का वो मामला, जिसने सड़क से संसद तक और देश से दुनिया तक, हर जगह तहलका मचा दिया। निर्भया गैंगरेप केस 2012 से 2016 तक आ पहुंचा है और दोषियों की सज़ा पर सुनवाई जारी है। ग़ौर कीजिए, ये पूरा मामला क्या रहा।
16 दिसंबर, 2012: दिल्ली के मुनीरका में छह लोगों ने एक बस में पैरामेडिक छात्रा से सामूहिक बलात्कार और वहशीपन किया। घटना के बाद युवती और उसके दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया गया।
18 दिसंबर, 2012: राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता गिरफ़्तार। 21 दिसंबर को मामले में नाबालिग दिल्ली से और छठा अभियुक्त अक्षय ठाकुर बिहार से गिरफ़्तार।
29 दिसंबर, 2012: पीड़िता ने अस्पताल में दम तोड़ा।
3 जनवरी, 2013: पुलिस ने पांच बालिग अभियुक्तों के ख़िलाफ़ हत्या, गैंगरेप, हत्या की कोशिश, अपहरण, डकैती आदि आरोपों के तहत चार्जशीट दाख़िल की।
17 जनवरी, 2013: फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने पांचों अभियुक्तों पर आरोप तय किए।
11 मार्च 2013: राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या की।
31 अक्टूबर, 2013: जुवेनाइल बोर्ड ने नाबालिग को गैंगरेप और हत्या का दोषी माना और उसे प्रोबेशन होम में तीन साल गुज़ारने का फ़ैसला सुनाया।
10 सितंबर, 2013: फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने चार अन्यों को 13 अपराधों के लिए दोषी ठहराया और 13 सितंबर को मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को सज़ा-ए-मौत सुनाई गई।
13 मार्च, 2014: दिल्ली हाई कोर्ट ने चारों दोषियों की मौत की सज़ा को बरक़रार रखा।
2014-2016: दोषियों ने फ़ांसी की सज़ा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और शीर्ष अदालत फिलहाल इस पर सुनवाई कर रही है।
.
*****
मनीष कुमार
+919654969006
Us nabalik k bree honay ka dukh hamesha satata h,kyo nahi us nay apni bahan aur maa k saath aisa kiya,kyo nahi vah kisi bus ya train k agay aa kar mar gya,Sahi m yeh andha kanoon h aur adhura nayay h.