लेकिन श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के मुताबिक अब कल्कि अवतार नही, बल्कि अब स्त्री शक्ति अवतार होंगे! स्वामी जी प्रमाण सहित बता रहे है कि आने वाले समय में कल्कि अवतार की नहीं बल्कि स्त्री अवतार की चर्चा होगी।
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के मुताबिक : –
‘‘उत्तराखण्ड के योगी, सन्त और महात्माओं की एक बैठक की गई जिसमें निष्कलंक अवतार के सम्बन्ध में चर्चा हुई और सर्व सम्मति से निष्कर्ष निकाला कि भगवान कल्कि का अवतार हो चुका है। मुसीबत यह थी कि अनेक नामधारी सन्त, महन्त अपने आपको कल्कि घोषित करने लगेेंगे तब क्या होगा ? ‘‘वास्तविक कल्कि अवतार‘‘ नामक एक छोटी सी पुस्तिका छपवाकर उत्तराखण्ड के महात्माओं ने उसे सारे देश में वितरित किया जिससे लोग अनेक कल्कियों के चक्कर में न पड़ कर वास्तविक कल्कि की पहिचान कर तथा उसके द्वारा विश्व की नवनिर्माण की प्रक्रिया में सहयोग दे सकें।
इसी पुस्तिका के कपितय अंश-
कहाँ होगा भगवान कल्कि का जन्म?
कल्कि भगवान उत्तर प्रदेश में गंगा और रामगंगा के बीच बसे मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में जन्म लेंगे। भगवान के जन्म के समय चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्रा और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्रा में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होगा। मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँंगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे, तब सतयुग शुरू होगा। वे धर्म के अनुसार विजय पाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे।
भगवान कल्कि अवतार
माना जाता है और जैसा वर्तमान में चल रहा है कि कलियुग के अंत में संसार की ऐसी दशा होगी। लोग मछली-मांस ही खाएँगे और भेड़ व बकरियों का दूध पिएँगे। गाय तो दिखना भी बंद हो जाएगी। सभी एक-दूसरे को लूटने में रहेंगे। व्रत-नियमों का पालन नहीं करेंगे। उसके विपरित वेदों की निंदा करेंगे। स्त्रियाँ कठोर स्वभाव वाली व कड़वा बोलने वाली होंगी। वे पति की आज्ञा नहीं मानेंगी। अमावस्या के बिना ही सूर्य ग्रहण लगेगा। अपने देश छोड़कर दूसरे देश में रहना अच्छा माना जाएगा। व्याभिचार बढ़ेगा। उस समय मनुष्य की औसत आयु सोलह साल होगी। सात-आठ वर्ष की उम्र में पुरुष व स्त्री समागम करके संतान उत्पन करेंगे। पति व पत्नी अपनी स्त्री व पुरुष से संतुष्ट नहीं रहेंगे। मंदिर कहीं नहीं होंगे। युग के अंत में प्राणियोें का अभाव हो जाएगा। तारों की चमक बहुत कम हो जाएगी। पृथ्वी पर गर्मी बहुत बढ़ जाएगी। इसके बाद सतयुग का आरंभ होगा। उस समय काल की प्रेरणा से भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा।
भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के नाम के होंगे। याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी – लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे – जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक।
उस महापुरूष के मस्तक में दोनों भौहों के बीच अंग्रेजी के वी के आकार का चन्द्रमा होगा, गले में दो रेखायुक्त अद्र्धचन्द्र का चिन्ह होगा। यह विशुद्ध भारतीय वेश भूषा में होगा, उसका बालकों जैसा स्वास्थ, योद्धाओं जैसा साहसी, अश्विनी कुमारों की तरह चिरयुवा, वेदों और शास्त्रो का प्रकाण्ड पंडित होगा। उसका पिता ही उसे योग साधनाओं की ओर प्रेरित करेगा। 32 अक्षरों का उसके जीवन में अत्यधिक महत्व होगा।
और इन भविष्यवेत्तों ने इनके जन्म के साथ इनकी मृत्यु मोक्ष कैसे होगा, ये नही बताया है क्यों?
भविष्य का अवतार ‘‘कल्कि‘‘:-
महाभारत के वन पर्व में महात्मा मार्कण्डेय ने कलयुग के तमाम लक्षण बताने के बाद कहा है कि जब कलयुग में एक बार पृथ्वी पर विनाश का तांडव हो रहा होगा। तब संभल नामक गांव में एक ब्राम्हण विष्णुयशा के घर में एक अवतारी बालक उत्पन्न होगा। इस बालक को लोग कल्कि विष्णुयशा नाम से जानेंगे। यह बालक आरम्भ से ही बहुत असाधारण बुद्धिमान, बलवान तथा बहादुर होगा, इच्छा करते ही वह कुछ भी कर सकेगा यह विद्यावान युवकों की एक ब्रह्म सेना बनायेगा और पृथ्वी को अत्याचारियों व अनाचारियों से मुक्त करायेगा। कल्कि विष्णुयशा एक महाप्रतापी शासक के रूप में लम्बे समय तक राज भी करेगा।
-सभी तक सारे भगवान क्षत्रियों में हुए है राम और कृष्ण और महावीर तथा बुद्ध। अब क्या ये कल्कि अवतार ब्राह्मणों में होगा? तब जो पीछे के श्री कृष्ण को विष्णु का सम्पूर्ण और अंतिम अवतार की घोषणा होती आई है उसका क्या अर्थ है? जबकि राम ने कृष्ण के भविष्य अवतार की कोई घोषणा नही की और कृष्ण ने केवल अपनी घोषणा में जब जब धर्म की हानि होगी, मैं अवतार लूंगा, कह कर स्वयं को ही केंदित अवतार बताया है। और किसी नाम की घोषणा भी नही की है। तब ये कल्कि अवतार की घोषणा किस अवतार ने की है ये तो मनुष्य की कोरी कल्पनिक भविष्यवाणी है।
और श्री कृष्ण के मृत्यु उपरांत अंधकार युग आया वही कलियुग था। जबकि किसी भी अवतार का अवतरित होने का अर्थ है नवीन और सम्पूर्ण युग का अवतरण जो की नही हुया। तब इस भगवान के अवतरण होने की सफल धारणा और भविष्यवाणी का क्या अर्थ हुआ? यानि ईश्वर के अवतरण से कोई विशेष युग परिवर्तन नही हुआ और ना ही शांति हुयी बल्कि केवल अंधकार युग ही आया। यो कृष्ण का अवतरण निष्फली रहा और कलियुग में महावीर स्वामी ने अवतरण लिया और धर्म फेलाया। और बाद में बुद्ध ने सनातन धर्म का पुनर्जागरण किया उसका क्या अर्थ है? जबकि ये वेदों को मान्य नही कर गए तब भी इन्हें विष्णु के अवतार घोषित किया गया। तब ये युग कौन से रहे? और भविष्यपुराण के अनुसार कलियुग में अत्याचार चरम पर होंगे, तब क्या पूर्व तीन युगों में कम अत्याचार हुए है? वहाँ तो इससे भी ज्यादा अत्याचार हुए थे। जबकि आज एक सामान्य मनुष्य वायुयान की यात्रा कर सकता है स्त्रियां अपना सार्वभोमिक विकास करती स्वतंत्रता की और प्रगतिशील है। आखिर कलियुग है कहाँ? केवल ऐसे पुरुषों की द्रष्टि में जो केवल स्त्रियों को अपनी भोग लालसा के उपयोग को ही मान्यता देते है। अगर स्त्रियां गुलामी का जीवन जिए तो ही सतयुग होगा अन्यथा नही और कलियुग के उपरान्त फिर से सत्ययुग ही आएगा ये मान्यता है तब उस युग में क्या केवल पुरुष अवतार ही आएगा? कोई स्त्री अवतार नही आएगी?, ये कोई वर्णन नही है। इसका अर्थ है की केवल पुरुष वर्चस्व का अर्थ ही सतयुग त्रेतायुग व् द्धापर युग है। कलियुग में केवल स्त्री की समस्त उन्नति का अर्थ व्यभचारी अर्थ है, बाकी पुरुष ही सर्वश्रेष्ठ युग अवतार है। यही है पुरुषवादी कल्कि अवतार का अर्थ केवल और केवल पुरुष अवतार ही आते और जाते रहेंगे और स्त्री अवतार का कोई अर्थ नही है?
और कल्कि अवतार की पत्नी भी वैष्णोंदेवी होंगी। जिन्हें राम ने त्रेतायुग में आश्वासन दिया की मैं आगामी कलियुग में तम्हे पत्नी रूप में स्वीकार करूँगा। तब द्धापर युग में कृष्ण ने राम युग की अनेक नारियों को और ऋषियों को अपनी पत्नी और गोपियाँ बनाया तब वैष्णों देवी को क्यों नही अपनाया? तब द्धापर में ही क्यों नही पत्नी बनाया। तब क्या पत्नी बनाने का संकल्प पूरा हो गया था। जो शेष रह गयी उनके कलियुग में अपनाएंगे इसका क्या अर्थ है?
यहाँ इन पुरुषवादी युगों में ये पुरुष अवतार अपने वर्चस्व की ही व्रद्धि करेंगे और बहुप्रथा के विभत्स्व रूप में अनेक स्त्रियों को केवल अपनी भोग पूर्ति को पत्नी बनाएंगे, तब क्या ये सद्चरित्र ईश्वर के सम्पूर्ण महावतार कहलाने का अर्थ देते है?
आखिर स्त्रियों का उद्धार कौन करेगा? कोई स्त्री या ये अनेक पत्नीधारी कल्कि भगवान? आखिर कौन है स्त्रियों की सार्वभोमिक उन्नति को प्रदान करने वाला ईश्वरीय अवतार?
यो सत्यास्मि मिशन ने इन सब पुरुषवादी भगवान अवतारो के नवीन जन्मों को प्रमाणित रूप से नही माना है। और कहा है जब ईश्वर का अर्थ है। स्त्री और पुरुष ओर बीज की एकल अवस्था “प्रेम” और प्रेम में समानतावादी दर्शन कार्य करता है दोनों समान है। तभी महारास घटित होता है। यदि स्त्री अपनी सर्वोच्चता को प्राप्त नही करती है। तब पुरुष को भी सर्वोच्चता की प्राप्ति नही होगी और वे सदा अतृप्त ही रहेगा यो स्त्री के भी युग है। जिनमे वो अपना भौतिक व् आध्यात्मिक ज्ञान विज्ञानं सम्पूर्ण करेगी जैसा की वर्तमान में चल रहा है। तभी स्त्री सर्वत्र सभी क्षेत्रों में सम्पूर्णता प्राप्त कर रही है। यो किसी कल्कि अवतार का जन्म नही होने वाला है।
-दुर्गासप्तशती में भी वर्णित सारी देवी अवतार पूर्वकालान्तर में अवतरित हो चुकी है। यो देवी के ग्यारहवें अध्याय के देवताओं को वरानुसार व् वचनानुसार की जब जब धर्म की हानि होगी। तब तब मैं अवतार लुंगी। यो अब पुरुषों के नही,स्त्री शक्ति के नवीन अवतारों के अवतरण का समय है। और जो मनुष्य जाति की उन्नति करता या करती है वही अवतार कहलाता है। यो अब केवल स्त्री अवतारों का ही अवतरण होगा,उसमें पुरुष केवल अपना सहयोग देगा,जैसा की अबतक स्त्री ने पुरुष के सभी अवतारों के सम्पूर्ण होने में दिया है। और स्त्री की वो “सत्यई पूर्णिमाँ” की सोलह कला अवतारो निम्न है:-“अरुणी,यज्ञयी,तरुणी,उरूवा,मनीषा,सिद्धा,इतिमा,दानेशी,धरणी,आज्ञेयी,यशेषी,ऐकली,नवेषी,मद्यई,हंसी” का अवतरण समय है। जो सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न भाषा अनुरूप नाम से जन्मी और जन्मेंगी और इनके अवतरण को चारों नवरात्रियाँ चैत्र,आषाढ़,क्वार,पौष की मनानी अब बड़े जोरों से प्रारम्भ है।और स्त्री महावतार सत्यई पूर्णिमाँ के अनेक श्रीभगपीठ मंदिर बनकर भक्तों का कल्याण कर रहे है।
जो कार्य सत्यास्मि मिशन में बड़े स्तर पर चल रहा है।और समय समय पर स्त्री की कुंडलिनी जागरण के मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक पुरुष से कैसे भिन्न है,उसका प्रमाणिक चित्र और स्त्री के 5 बीजमंत्र-भं,गं,सं,चं,मं को उल्लेखित करके प्रमाणिक रूप से दिया गया है।और स्वतंत्र रूप से पुरुष अखाड़ों की तरहां स्वतंत्र अलग कुम्भ स्नान का 5वीं बार प्रारम्भ हो चूका है।और विश्व धर्म इतिहास में पहली बार 5 वीं बार मनाया जाने वाला पुरुषों द्धारा अपनी पत्नी के लिए प्रेम पूर्णिमां व्रत आदि ऐसे अनेक कार्यक्रम बड़े जोरो से प्रगति पर है।
यही है स्त्री का चार नवयुग-सिद्धयुग-चिद्धि-तपि-हंसियुग और फिर चार बीजयुग और स्त्री के 16 नवावतार की घोषणा का प्रमाण।
बहुतों को ये बुरा लगेगा,पर सत्य सत्य और विज्ञानवत होता है।
विस्तार से जानने के लिए-सत्यास्मि धर्म ग्रंथ में माँगा कर पढ़ें।
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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Jay satya om siddhaye namah