हिंदी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। यह अपने आप में पूर्ण रूप से एक समर्थ और सक्षम भाषा है। सबसे बड़ी बात यह भाषा जैसे लिखी जाती है, वैसे बोली भी जाती है। इसके अलावा लेखन अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम होता है। इसके माध्यम से हम अपनी बात समाज के हर तबके तक पहुंचा सकते हैं।
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज आज हिंदी और लेखन की अभिव्यक्ति पर महत्वपूर्ण चर्चा कर रहे हैं।
हिन्दी दिवस और लेखन अभिव्यक्ति पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी का भक्तों सहित सभी को कविता के माध्यम से ये संदेश : –
अधिकतर मैं भक्तों से ये कहता और टोकता रहता हूँ की- भई हिंदी दिवस हो या अन्य कोई भी दिवस हो..उस पर अपना चिंतन या जो देख या पढ़ रहे हो उसका अपने तौर पर एक अच्छी सार गर्भित बात अवश्य कमेंट में लिखा करो।इसे उस लेख या लेखक व्यक्ति या मुझसे जुड़े और भी या नहीं जुड़े लोगो में ये अच्छा संदेश जाता है की-हां भई इस व्यक्ति के विचार से इसके मानने व् जानने वाले लोगो या भक्तो में इनकी बातों की समझ से कुछ ज्ञान या समझ आई है।यो बार बार कहने पर भी भक्त जन..बस सत्य ॐ सिद्धायै नमः लिख छुट्टी कर अपनी कलम लेखनी को विश्राम दे देते है की-अब बहुत लिख लिया यहां।और जब कुछ भक्तो से जब ये फिर ये कहता हूँ की- भक्त लिखो सही से, विस्तार से तो उनका उत्तर होता है की-अरे गुरु जी लिखा तो अपने देखा नहीं??
अरे भक्त जब मैं ये कह रहा हूँ की-लिखा करो..तो अर्थ है की-केवल जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः.,नहीं., इसे तो अपने लिखे के बाद में लिखना।उसे पहले क्या कहा और क्या समझ आया वो भी लिखो भई.,पर भक्त तो ये सुनते ही तुरंत विभक्ति को प्राप्त हो जाता है।वो वहां लिखने की बजाय.,मुझसे ही सुतर्कि बनकर इलझ जाता है की-आओ गुरु जी..अब कुछ टाइपिंग हो जाये… कुछ कह दू तो, मै गुरु जी नही.. बल्कि एक प्रतिद्धंदी बन जाता हूँ…
अब और कहीं जगहां जाकर टाइपिंग करते है।वहाँ वार्ता में एक दूसरे से इलझने में या कमिया बताने में या कम्प्लेंट करने में बड़ा अच्छी लेखनी यानि टाइपिंग का विकट प्रदर्शन करते है….
जबकि सच में व्यक्ति के चिंतन शक्ति का इस बात से अधिक पता चलता है की-वो जो देख और सुन पढ़ रहा है।उसे कितना अच्छी तरहां से उसने पलट कर सही रूप में उत्तर दिया और उससे अच्छा उत्तर अपनी हिंदी या लोक भाषा के लेखन से दिया जाता है।उसमे सारी बात का निचोड़ होता है।ये नहीं की..वेरी नाइस..गुड़..वेल डन आदि आदि।यानि वो भी कथित हिंगलिश में नहीं,इससे आपकी भाषा और लेखन पर उन्नतिकारक प्रभाव नहीं पड़ता और न ही बढ़ता है। आप अपने को अपनी मातृभाषा में अधिक से अधिक अभिव्यक्त करना सीखों और करना भी चाहिए।ठीक यही आपकी अपने को सही रूप से अभिव्यक्त करने की अच्छी आदत ही आपके दैनिक जीवन में चाहे वो, ऑफिस हो या व्यापार या घर या प्रेम का विषय हो,सबमे एक धैर्य और सुलझने वाले चिंतन को निखरता है। और हल भी निकालता है।सच में आपको अवश्य ही लिखना चाहिए और अपने को अपने ही यानि विस्तृत शब्दों से प्रकट करना चाहिए की-स्वयं की क्या सोच है? ये नही की इधर उधर से कुछ उठाया और चेप दिया दूसरे को.,अरे तुम्हारा पढ़ा लिखा और समझ या शायरी कहाँ है और हुयी.,हाँ वो शायरी दुःख दर्द और दूसरे को ये बताने में जायज ज्यादा होती है की-तुम् में प्यार नहीं और मुझमें ज्यादा है…अच्छी शायरी अच्छे लेखन और दिल को बताती है।और वहीं सन्तों के दोहे कहे जाते है।ये सुन
बहुत से लोग भक्त कहते है की-गुरु जी लिखा नहीं जाता है।अरे भई लिखोगे तो ही तो लिखा जायेगा।अब तो मोबाईल में अच्छी टाइपिंग सुविधा आ गयी है।पर लिखो तब ही लाभ।
मुझे वीडियो में बोलते में ये भी ध्यान रखना पड़ता है की-अधिक विद्धवता भी न हो जो समझ नहीं आये और ऐसी कोई बात सदा भाषा में बोलने से नहीं जाये जो अर्थ का अनर्थ कर दे।अधिकतर सामान्य शब्दों में साधनगत ज्ञान को नहीं प्रकट किया जाता है।क्योकि सामान्य शब्द का अर्थ भी सामान्य ही होता है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है।यो उच्चस्तर की बात को शास्त्रीय यानि शुद्ध हिंदी में ही लिखा जाता और जाना चाहिए।जो मैं अधिकतर लिखता हूँ।यो
तभी कहा गया है की-सही समझदार व्यक्ति का प्रश्न हो,तो तभी सही उत्तर मिलेगा।ये नहीं की-एक व्यक्ति आये और बोल दे की-गुरु जी ब्रह्म और ब्रह्मज्ञान क्या है??
बोलने में क्या जाता है।कोई भी बोल दे की ब्रह्म क्या है???
और इसके उत्तर में एक नहीं, अनेक जीवन चला जाता है।यो फिर भी अपनी समझ से प्रश्न करो और उत्तर भी मिलेगा।यो यहां ज्यादा नहीं लिखते हुए.. यही कहूँगा की-आप आज ही हिंदी में अपनी मातृभाषा में लिखना प्रारम्भ करें यानि कमेंट करें. जिसका सही अर्थ है-अपनी समझ को प्रकट करो।कमेंट यानि-आलोचना.. वो आलोचना हो या समालोचना हो..आज ही लिखा करें यानि आज ही लिखे।
जैसा की मैने अभी का अभी मन प्रेरित होकर लिखा है कि : –
लिखो लिखो जो भी लिखो
पर लिखो अपना ही चिंतन।
भले टुकड़ो में लिखो
पर हो अनुभव निज मंथन।।
ज्ञान बढ़ाये ज्ञान बढ़े
और मान बढ़ाये अभिमान।
समझ बढ़ाये बढ़े समझ
लिखे से बढ़े लिखा विधान।।
अभिव्यक्त करो सभी विचार
अभिव्यक्त करो कर्म आचार।
अभिव्यक्ति ही मिल एक व्यक्ति है
अभिव्यक्ति ही आत्म अभिसार।।
समझ समझो और समझाओ
दूजे लधो नही बन कुतर्क।
शब्द बल को छल बनाओ नहीं
अपनत्व शब्द रख कहो सुतर्क।।
जो देखो और जो पढ़ो
उसमें अपने को चित्रित ढूंढ।
महत्ता सभी लिखे कहे की सदा
ज्यों वृक्ष सहित उपयोगी झूंड।।
लिखो और जो बने लिखो
अपनी अपनी क्षेत्र देश की भाषा।
पर उस लेखन में निज चिंतन हो
यही सच्चे व्यक्ति लेखन परिभाषा।।
अभी लिखो आज लिखो
और सदा लिखो जो देखा।
सुना लिखो कहा लिखो
और लिखो वो भी अनदेखा।।
बढ़े कल्पना और ह्रदय बढ़े
और बढ़े निज आत्मा ज्ञान।
मिटती चले कुटिलता लिखे
लिखे बढ़ प्रकट हो आत्मभगवान।।
और मैं कुछ शब्द हिंदी की महिमा पर यो कहता हूँ की…
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान
हिंदी मातृभाषा करो सम्मान।
भारत की है यही पहचान
हिंदी को दो घर घर ज्ञान।।
गर्व से सदा हिंदी बोलो
हिंदी से प्रेम अमृत घोलो।
हिंदी दे शब्द अर्थ महान
हिंदी उत्सव में संग हो लो।।
मात्र भाषा है अपनी हिंदी
कभी ना खोने दे इसे पहचान।
हिंदी लेखन लेख लिखो सब
हिंदी पर करो सदा अभिमान।।
लिखो मित्रों को हिंदी पत्र
गठित करो हिंदी के सत्र।
पुरुष्कृत करो हिंदी भाषी को
लिखो हिंदी में कवि कवित्त्व।।
हिंदी हिंदुस्तान की बिंदी
हिंदू वही जो बोले हिंदी।
बनो बनाओं हिंदी को गर्व
हिंदू हिंदुस्तान माँ हिंदी।।
नित्य करो हिंदी अध्ययन
हिंदी साहित्य दो ज्ञान स्थान।
प्रेषित करो हिंदी लेखन को
जय बोलो हिंदी हिंदू हिंदुस्तान।।
इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः