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माणिक रत्न पहनने के फायदे व नुकसान, माणिक रत्न जो बदलकर रख देगा आपकी जिंदगी, रत्न रहस्य में बता रहे हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

 

 

“रत्न रहस्य में आज आप जानेंगे माणिक रत्न के बारे में, माणिक एक ऐसा रत्न है जो पहनते ही अपने अपना काम करना शुरू कर देता है, यह तेज़ी से लाभ पहुंचता है तो नुकसान भी।”

 

वैसे रत्न कोई भी हो राशि के हिसाब से यानि पूरे विधि विधान के अनुसार ही पहनना चाहिए, वरना ये रत्न फायदे की जगह बड़ा नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज आज ऐसे एक रत्न माणिक के बारे में बता रहे हैं।
माणिक एक ऐसा रत्न है जो पल भर में अपना असर दिखना शुरू कर देता है। माणिक पहनने से जहां बहुत सारे लाभ मिलते हैं वहीं इसे पहनते वक़्त काफी सावधानियां रखनी पड़ती हैं।

 

 

 

 

माणिक रत्न ruby gemstone के लाभ और उसे कौन सी राशियाँ पहन सकती है:-

सूर्य ग्रह के मुख्य रत्न माणिक यानि रूबी के विषय में बताता हूँ की- प्रत्येक लग्न का सूर्य से क्या सम्बन्ध है और क्या सब माणिक धारण कर सकते हैं या नहीं:-

सूर्य मनुष्य की जन्मकुंडली में उसकी आत्मा की स्थिति के विषय में बताता है की-इस मनुष्य की आत्मा केसी यानि तमगुण या रजगुण या सतगुण प्रधान है और उसमें भी शापित है या वरदानी है या केवल अभी इसका जन्म मनुष्य के जन्म में चलना प्रारम्भ हुआ है या ये देवताओं या योगी की श्रेणी में आने जा रहा है या ये इस जन्म के बाद अगले जन्म में नीच योनि में जायेगा।यो प्रत्येक जन्मकुंडली में सूर्य की डिग्री अवश्य देखे और उसमें देखे की-सूर्य बालक अवस्था में है तो अभी ये आत्मा इस जीवन में केवल अनुभव प्राप्त करेगी और वयस्क है तो ये आत्मा पीछे जन्म में सीखती आई और क्या सीखा वो भी पता चलता है सूर्य के साथ या उससे युक्ति करते ग्रहों के ज्ञान से यानि बुरे ग्रह के साथ सूर्य का योग है तो बुरे प्रभाव लिए आत्मा है जेसे-राहु के साथ सूर्य हो या दृष्टि योग हो तो,उस आत्मा पर किसी अन्य आत्मा का प्रभाव है,उच्च राहु ग्रह या उसकी की डिग्री से पता चल जाता है,की इस पर इसके गुरु या दिव्य आत्मा के शक्तिपात से सिद्धि मिलेगी या पितरों से या पिशाच से सिद्धि मिलेगी।और अंत में क्या होगा।यो उसी अनुसार रत्न आदि का उपाय लाभ देता है।

मेष लग्न और माणिक रत्न:-
राशी चक्र की पहली राशी है मेष, जिसके स्वामी हैं मंगल। मेष राशी का लग्न हो तो सूर्य के स्वामित्व में पंचम भाव सिंह आयेगा (प्रथम मेष, द्वितीय वृषभ, तृतीय मिथुन, चतुर्थ भाव कर्क और पंचम भाव सिंह) मेष राशी का लग्न है तो लग्नेश हुए मंगल जो ग्रहों की मित्रता चार्ट से सूर्य के मित्र हैं और पंचम भाव जिसके सूर्य स्वामी हैं, सबसे शुभ त्रिकोण भाव है। तो मेष लग्न के लिए माणिक्य पहनना बहुत शुभ है।
सूर्य के पंचमेश होने की वजह से माणिक के पहनने से व्यक्ति को ज्ञान, मान, प्रतिष्ठा एवं यश में वृद्धि करेगा और अध्यात्मिक जगत की प्रगति में सहायता करेगा।उसकी संतान के लिए भी यह शुभ होगा।आपकी सूर्य के महादशा एवं अंतर दशा में तो यह बहुत ही गुणकारी फल देगा।तो मेष लग्न के जातक अवश्य ही माणिक रत्न धारण कर सकते हैं।

वृषभ लग्न और माणिक रत्न:-

राशी चक्र की दूसरी राशी है वृषभ, जो शुक्र के स्वामित्व की पहली राशी है। लग्न भाव वृषभ हुआ तो सूर्य के स्वामित्व में चतुर्थ भाव होगा (लग्न या प्रथम भाव वृषभ, दूसरा भाव मिथुन, तीसरा कर्क तथा चतुर्थ सिंह) चतुर्थ भाव मनुष्य के सभी भौतिक सुखों का भाव है, पर वृषभ लग्न के स्वामी ग्रह शुक्र के सूर्य शत्रु हैं।
यो माणिक सिर्फ सूर्य के महादशा या अंतर दशा में पहना जा सकता है। वृषभ लग्न में यदि सूर्य दशम भाव में स्थित हो तो भी माणिक धारण किया जा सकता है, क्योकि दशम भाव में सूर्य दिग्बली होता है और बहुत शक्तिशाली माना गया है।
वैसे भी ज्योतिष में द्वितीय और सप्तम भाव शुभ भाव ही माने गए हैं, पर साथ ही ये मनुष्य के लिए मारक भाव भी हैं,विशेषकर दूसरे और सातवें भावों के स्वामी की महा दशा या अंतर दशा में।यदि इन भावों के स्वामी लग्नेश में मित्र हों या किसी और तरह से शुभ हों, तो इनका मारकत्व कम हो जाता है।

मिथुन लग्न और माणिक्य रत्न:-

मिथुन लग्न का मुख्य ग्रह बुध है। मिथुन लग्न में सूर्य तीसरे घर के स्वामी बनते हैं और लग्नेश बुध के मित्र हैं।और तीसरा भाव ज्योतिष में मारक माना गया है,यो तीसरे भाव के स्वामित्व की वजह से माणिक मिथुन लग्न के लिए उपयुक्त नहीं है। यदि सूर्य तीसरे भाव में ही स्थित हो यानी अपने ही भाव में हो तो सूर्य स्वग्रही हो जाते हैं और सिर्फ इस स्थिति में मिथुन लग्न के लोग सूर्य के महा दशा या अंतर दशा में माणिक पहन सकते हैं।

कर्क लग्न और माणिक्य रत्न:-

राशी चक्र की चतुर्थ राशी कर्क राशी है जो चन्द्रमा ग्रह की राशी है। चन्द्र भी सूर्य की तरह एकाधिपति ग्रह हैं जिसका मतलब होता है,की एक भाव के स्वामी होना। कर्क लग्न में सूर्य दुसरे भाव के स्वामी बनते हैं अर्थात (कर्क लग्न या प्रथम भाव और सिंह द्वितीय) और चन्द्रमाँ सूर्य के मित्र हैं और सूर्य इस लग्न के लिए धन भाव के स्वामी यानी धनेश भी हैं।अतः व्यक्ति माणिक्य पहन सकता है।और यदि इस लग्न के व्यक्ति माणिक के साथ में मोती भी जड़वा लें तो सेहत से लेकर कॅरियर के लिए बहुत ही शुभ रहेगा।

सिंह लग्न और मणिक्य रत्न:-

सूर्य के स्वयं की राशी सिंह है। सिंह लग्न में सूर्य ही लग्नेश हैं। माणिक धारण सिंह लग्न के लिए बहुत ही शुभ है माणिक इस लग्न वाले की आयु के लिये, जीवन के प्रति उत्साह के लिये, अच्छे अच्छे स्वास्थ्य के लिये और भौतिक रूप से उन्नति और सफलता के लिये अति शुभ है।

कन्या लग्न और माणिक रत्न:-

कन्या राशी छटी राशि है, जो बुध के स्वामित्व की दूसरी राशि है। कन्या लग्न में सूर्य बारहवें भाव के स्वामी होते हैं।(कन्या प्रथम या लग्न, फिर तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)यो तो लग्नेश बुध सूर्य के मित्र ग्रह हैं पर कन्या लग्न के लिये माणिक रत्न धारण शुभ नहीं रहता है,क्योकि लग्न से बारहवां भाव लग्न के लिए मृत्यु भाव है,फिर भी यदि सूर्य बारहवें भाव में ही स्थित हो तो, माणिक धारण किया जा सकता है। सूर्य कन्या लग्न की कुडंली में किसी शुभ भाव में हो तो सूर्य की महा दशा में भी माणिक पहन सकते हैं।साथ ही उसे दुसरे हाथ में एक पन्ना भी अवश्य पहनना चाहिए।

तुला लग्न और माणिक्य रत्न:-

तुला राशि जो राशि चक्र की सातवीं राशि है और तुला शुक्र के स्वामित्व की दूसरी भी राशि है। तुला लग्न में सूर्य लाभेश होते हैं यानी ग्यारहवें भाव, लाभ भाव के स्वामी (तुला प्रथम भाव या लग्न फिर आगे वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह यानी ग्यारहवां भाव है)
यहाँ सूर्य लग्नेश शुक्र के शत्रु ग्रह हैं,तब भी माणिक रत्न तुला लग्न के लिए बहुत अच्छा माना गया है।असल में ग्यारहवें भाव में हर ग्रह अच्छा फल देता है, दशम भाव से हम जो कर्म करते हैं उसका फल और जीवन में किसी भी तरह का लाभ या बिना मेहनत की कमाई, लाभ भाव से ही मिलती है। और यदि सूर्य ग्यारहवें भाव में ही स्थित हो तो माणिक बहुत ही बढ़िया फल देगा। ऐसी कुंडली में माणिक रत्न धारण करने से जातक को पद प्रतिष्ठा,समय समय पर सम्मान,अधिकारीयों से लाभ,प्रेम में सफलता,उत्तम स्वस्थ और प्रसिद्धि मिलती है।
यो तो ज्योतिष में द्वितीय और सप्तम भाव शुभ भाव तो माने गए हैं, पर साथ ही ये मारक भाव यानि अचानक होने वाली घटना से हानि या मृत्यु भी देते हैं,विशेष तौर पर इन भावों के स्वामी की महादशा या अंतर दशा में ऐसा होता है,यदि इन भावों के स्वामी लग्नेश में मित्र हों या किसी और तरह से शुभ हों (जैसे पूर्ण योगकारक आदि) तो इनका मारकत्व कम हो जाता है।
यो रत्न पहना जा सकता है।

वृश्चिक लग्न और माणिक रत्न:-

वृश्चिक राशिमंडल की आठवीं राशी है।तथा वृश्चिक मंगल के स्वामित्व की दूसरी राशि है। वृश्चिक लग्न में सूर्य कुडंली के सबसे सक्रिय भाव यानि कर्म भाव यानी दशम भाव के स्वामी बनते हैं। (वृश्चिक प्रथम भाव या लग्न, फिर आगे धनु, मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह है)
अतः सूर्य महत्वपूर्ण भाव दशम भाव के स्वामी हैं और लग्नेश के मित्र, अर्थात बहुत शुभ योग बनता है,यो वृश्चिक लग्न में माणिक धारण व्यक्ति को उत्तम नोकरी, अच्छा व्यवसाय, सरकारी नौकरी,प्रसिद्धि, व्यावसायिक उन्नति और पद प्रतिष्ठा के अधिकार देने में सक्षम होता है। और यदि सूर्य दशम भाव में ही हों तो यहाँ सूर्य बहुत ही शक्तिशाली माने गए हैं,क्योकि सूर्य को दशम भाव में पूर्ण दिग्बल मिलता है,इसलिए इन्हें माणिक पहनने से राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में बहुत सफलता दे सकता है।

धनु लग्न और माणिक्य रत्न:-

धनु राशि जो राशिचक्र की नौवीं राशी है। धनु ब्रहस्पति के स्वामित्व की पहली राशी है। धनु लग्न में सूर्य भाग्येश यानी नौवें भाव, भाग्य भाव के स्वामी बनते हैं।(लग्न भाव धनु है,आगे मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह है), वेसे भी
ब्रहस्पति ज्योतिष में सबसे शुभ ग्रह हैं जो जीवन में हर तरह की उन्नति, धन,सम्मान, यश, ज्ञान और सौभाग्य आदि के दाता हैं और लग्नेश होते हुए सूर्य के मित्र हैं।इसलिए इन्हें माणिक धारण अति शुभ है और यदि सूर्य इसी भाव में स्थित हो तो और भी शुभ, यो भाग्य पूरा साथ देगा।
माणिक्य अवश्य पहने।

मकर लग्न और माणिक्य रत्न:-

मकर राशि शनि के स्वामित्व के पहली राशी और राशी चक्र की दशम राशी है। मकर लग्न में सूर्य अष्टम भाव के स्वामी बनते हैं। (मकर लग्न भाव, फिर आगे कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)और
अष्टम भाव को ज्योतिष में बहुत अशुभ भाव माना गया है। ये एक दुषस्थान यानि ब्लैक हॉल यानि अचानक होने वाली घटनाये और रोगों से मनुष्य को कष्ट और म्रत्यु का घर है।वेसे भी अष्टम या अष्टमेश से सम्बंधित हर चीज़ अशुभ फल देती है। मकर लग्न के स्वामी शनि ग्रह सूर्य के शत्रु ग्रह हैं और दुषस्थान होने के कारण इस विषय में माणिक रत्न धारण अशुभ फल ही देगा।यो मकर लग्न वाले को माणिक धारण नहीं करना चाहिए।
ये भी तभी सम्भव है,जब की सूर्य यदि अष्टम भाव में ही स्थित हों, तब सूर्य के महादशा या अंतर दशा में माणिक धारण किया जा सकता है। सूर्य को एकाधिपति होने की वजह से अष्टम भाव का दोष नहीं नहीं लगता है।

कुम्भ लग्न और माणिक्य रत्न:-

शनि के स्वामित्व की अगली राशी है कुम्भ राशि, जो राशि चक्र की ग्यारहवीं राशि है। कुम्भ लग्न में सूर्य सप्तम भाव के स्वामी बनते हैं।अर्थात (लग्न भाव कुम्भ,आगे मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह है)
यो सूर्य के स्वामित्व का भाव तो शुभ है, पर शनि चूंकि लग्नेश हैं और सूर्य के शत्रु हैं, इसलिए माणिक पहनना अशुभ फल देगा। सप्तम भाव विवाह और सभी पार्टनरशिप से सम्बंधित घर है और सूर्य इस इस घर में अलगाववादी और विध्वंसक माने गए हैं।सूर्य यदि सप्तम में हैं तो सूर्य की महादशा में माणिक रत्न धारण जातक को पदोन्नति, नाम यश आदि तो दे सकता है पर साथ ही विवाह में समस्या भी दे सकता है,यो इस कुडंली के गहन अध्ययन के बाद ही माणिक धारण करना चाहिए।

मीन लग्न और माणिक रत्न:-

राशि चक्र की अंतिम राशि यानी बारहवां भाव है मीन राशि का, जो ब्रहस्पति के स्वामित्व की दूसरी राशि है।मीन लग्न में सूर्य छठे भाव के स्वामी होते हैं।(मीन लग्न भाव, और आगे मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह है)। वेसे तो लग्नेश ब्रहस्पति सूर्य के मित्र ग्रह तो हैं पर यहाँ सूर्य के स्वामित्व का भाव मारक है। ज्योतिष में छठे भाव को रोग, ऋण और गुप्त शत्रु का भाव कहा गया है,तब ऐसे भाव का स्वामी अशुभ फल ही देता है। इसलिए मीन लग्न के जातक को माणिक रत्न नहीं धारण करना चाहिए।केवल तभी पहने जब सूर्य यदि छठे भाव में ही स्थित हो तो सूर्य के महादशा या अंतर दशा में माणिक रत्न धारण कर सकते हैं,क्योकि सूर्य यहाँ व्यक्ति को पूरा शुभ सहयोग देता है।
माणिक्य के अन्य नाम ये है:- पदम्राज, लोहित, शोण रत्न, रवि रत्न, कुरूविन्द, सौगन्धिक शोणोपल, वसु रत्न, याकूत और रूबी आदि नाम है।

माणिक्य के प्राप्ति स्थान:-
बढ़िया किस्म का माणिक्य वर्मा में पाया जाता है। इसका रंग गुलाब की पत्ती के रंग से लेकर गहरे लाल रंग का होता है। श्रीलंका के माणिक्य में वर्मा के माणिक्य की अपेक्षा पानी अधिक और लोच कम होता है। यह पीले और चितकबरे रंग का होता है। काबूल के माणिक्य में पानी ;मोटाद्ध और चुरचुरापन अधिक होता है। अफ्रीका का माणिक्य बहुत चुरचुरापन लिए होता है। इसमें लाल रंग के साथ-साथ श्यामल रंग की चमक भी होती है।सबसे उत्तम कोटि का माणिक्य रत्न हमारे देश की हिमालय पर्वत की चट्टानों और दक्षिण भारत में भी पाया जाता है।
बढ़िया माणिक्य के गुण ये होते जय:-
1-माणिक्य को यदि प्रातःकाल सूर्य के सामने रखें तो उसके चारों ओर लाल रंग की किरणें बिखरने लगती है।
2-बढ़िया कोटि का माणिक्य अॅधेरे में भी रखने पर भी वह सूर्य की चमक के समान प्रकाशित होता है।
3-पत्थर पर माणिक्य को घिसने से अगर माणिक्य न घिसे और साथ में उसका वनज भी न घटे तो जानो माणिक्य बहुत अच्छे स्तर का है।
4-माणिक्य बिलकुल पारदर्शी होना चाहिए।
5-प्रातःकाल सूर्य के सामने दपर्ण पर माणिक्य को रखें। यदि दर्पण के नीचे छाया भाग में किरणें दिखाई दे,तो जानो की माणिक्य उच्चकोटि दर्जे का है।
6- माणिक्य को गुलाब की पंखुण्यिों में रखने पर यदि वह चमकने लगे तो ये एक अच्छे स्तर के माणिक्य की पहचान है।
7-सौ ग्राम दूध में माणिक्य को डालने से दूध का रंग गुलाबी हो जाये तो जानो की ये बढ़िया स्तर का माणिक्य है।
8-वेसे गोल या लम्बे माणिक्य को बढ़िया माना जाता है।
असली माणिक्य की पहचान:-
1-अच्छे माणिक्य को आॅखों पर रखने से ठंडक का अहसास होता है जबकि नकली माणिक्य के रखने से गरमाहट लगती है।
3-सच्चा माणिक्य चमकदार, स्निग्ध, कान्तियुक्त, अच्छे पानी का और चमकीला होता है।
दोषयुक्त माणिक्य हानिकारक होेते है:-
1-ऐसा माणिक्य जिसमें दो रंग दिखाई दे उसे नहीं पहनना चाहिए क्योंकि उसे पहनने से जीवन में अनेको समस्यायें आती है।
2-जिस माणिक्य में आड़ी-तिरछी रेखायें हो, मकड़ी के जाल की तरह रेखायें हो। ऐसे माणिक्य को कभी भी नही पहने अन्यथा गृहस्थ जीवन में सदा संकट बने रहते है।
3-जिस माणिक्य का रंग दूध के समान हो या दूध के जैसे छींटे पड़े हो। ऐसा माणिक्य पहनने से धन और आर्थिक समस्यायें बनी ही रहती है और अचानक अनजानी विपत्तियाॅ आती है।
4-धूयें के रंग के जैसे माणिक्य पहनान बहुत ही हानिकारक होता है।
5-ऐसा माणिक्य जिसमें चमक न हो उसे सुन्न माणिक्य कहते है। इसे पहनना भी बहुत अशुभ होता है।

विशेष ज्ञान तत्व क्रिया योग विधि से अपने रत्न से कैसे विशेष लाभ उठाये:-

कोई भी रत्न हो,यदि अनेक रत्न पहने है तो बारी बारी से एक एक रत्न को इस ध्यान विधि से ध्यान करें। जब भी आप पूजाघर में पूजकरने के बाद ध्यान करें ,उस समय उस रत्न को अपनी ऊँगली से बाहर की और से अपनी अंदर हथेली की और करके रखें और अपने हाथ अपनी गोद में रखे और उस रत्न को थोड़ी देर खुली आँख से ध्यान से देखे और अब आँखे बन्द कर ले और अब अपने गुरु या इष्ट मंत्र का जप करते हुए उस रत्न का मन ही मन ध्यान करते रहे।तभ रत्न के माध्यम से विश्व ऊर्जा में से उस रत्न की सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित यानि खींचकर आपकी उस रत्न की ऊँगली से होती हुई आपके सारे शरीर में फैलती जायेगी।और तब आपको रत्न का अति शीघ्र ही सम्पूर्ण शुभ लाभ मिलेगा।और आपका कल्याण होगा।इसे कहते है-रत्न चिकित्सा या तत्व ध्यान क्रिया योग।जो ऐसा करके रत्न के माध्यम से नित्य ध्यान करता है,उसे ही रत्न का सच्चा लाभ मिलेगा,बाकि वेसे ही पहनने से कोई विशेष लाभ नहीं मिलेगा।
यो आज ही इस तत्व ध्यान क्रिया योग विधि को करें जो बड़ी गोपनीय है और मैं यहां सहज में ही आपके कल्याण को बता रहा हूँ।

 

 

 

 

“इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”

अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं? घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी। 
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611

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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः


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