
मायावती घमंडी हैं…. मायावती दलितों की अनदेखी करती हैं… मायावती दलित होकर दलितों के हितों की बात स्पष्ट रूप से नही कर पाती हैं… मायावती कार्यकर्ताओं को अपने नज़दीक फटकने नहीं देती हैं… पदाधिकारियों को कुछ नही समझती हैं…।
ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के आरोप हैं।
और इसका खामियाजा मायावती को 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा। मायावती का फिक्स वोटबैंक भी इतनी तेज़ी से नीचे गया जिसकी कल्पना खुद मायावती ने नहीं की थी।

यूपी में कहीं भी दलित अत्याचार का मामला हो लेकिन दलित नेता की छवि होने के बाबजूद मायावती की प्रतिक्रिया का न आना। उनकी अनदेखी करना पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने वाले था।
लेकिन मायावती अब इन सबसे अपने को अलग कर फिर वही जमीनी नेता की छवि को वापस पाने की जुगत में लगी हैं जहां काशीराम ने पार्टी को छोड़ा था।
और इसके लिए मायावती को बहाना भी बहुत अच्छा मिला। राज्यसभा में ना बोलने दिए जाने के कारण मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता से अपना इस्तीफ़ा देकर ये साबित करने की कोशिश की कि वो ये सब दलितों के हितों के लिए कर रही हैं।

राज्यसभा से इस्तीफे के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने आगे की रणनीति बनाने का काम शुरू कर दिया है। इसके लिए मायावती ने रविवार को दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक बुलाई। इसके साथ ही उन्होंने अपने आगे की रणनीति के बारे में भी बताया। मायावती अब हर महीने की 18 तारीख को दो मंडलों में एक रैली करेंगी। इसी दिन उस इलाके के अहम नेता व कार्यकर्ताओं से अलग से मुलाकात करेंगी। तय कार्यक्रम के मुताबिक उनकी पहली रैली मेरठ-सहारनपुर में होगी। हर विधानसभा के हिसाब से मायावती का कार्यक्रम बनेगा।
मायावती ने स्पष्ट संकेत दिया कि बसपा की बेस वोट को बनाए रखने के लिए वो अब राजनीति में आक्रामकता लाएगी। उन्होंने कहा, 18 सितम्बर से वह यूपी में अभियान शुरू करेंगी। मायावती ने कहा कि मैं यूपी में भाजपा की फांसीवादी राजनीति को कामयाब नहीं होने दूंगी। साथ ही लोगों के बीच जाकर बीजेपी की नीतियों का पर्दाफाश करूंगी। रैली के लिए 18 तारीख चुनने के सवाल पर मायावती ने बताया कि 18 तारीख इसलिए चुनी क्योंकि 18 जुलाई को ही मैंने राज्यसभा से इस्तीफा दिया था।

गौरतलब है कि लोकसभा की एक भी सीट न जीत पाने और उत्तर प्रदेश विधानसभा में महज 19 सीटें जीत पाने के बाद मायावती को समझ में आ गया है कि उनकी राजनीति में गिरावट अब एक स्थाई रूप धारण कर चुकी है। शायद इसीलिए राज्यसभा से इस्तीफा देकर उन्होने अपने राजनीतिक केरियर का मास्टर स्ट्रॉक खेला है।
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