यूपीए सरकार में हुए कथित घोटालों की जाँच तेज़ी से चल रही है और महीने दो महीनों में कोई ना कोई घोटाला सामने आ ही जाता है। एक ऐसा ही घोटाला और सामने आया है जिससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। आपको बता दें कि यूपीए के कार्यकाल में एयर इंडिया को हज़ारों करोड़ का घोटाला पहुंचाने के मामले में सीबीआई ने 3 एफआईआर दर्ज की हैं।
केंद्रीय जांच एजेंसी ने 111 विमानों की खरीद, विमानों को लीज पर लेने और एयर इंडिया द्वारा मुनाफे वाले हवाई मार्गों को छोड़ने के फैसले में हुई कथित अनियमितता की जांच के लिए तीन एफआईआर दर्ज की हैं। इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के विलय की जांच के लिए भी पीई (प्रारंभिक जांच) दर्ज की गई है।
सीबीआई के प्रवक्ता आरके गौर ने कहा कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयर इंडिया के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई हैं। यूपीए सरकार के कार्यकाल में इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के विलय के फैसले से सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा। इसकी जांच के लिए भी पीई दर्ज की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जनवरी में सीबीआई को आदेश दिया था कि वह 2004 से 2008 के बीच विमानों की खरीद और उन्हें लीज पर लेने में हुई अनियमितताओं की जांच करे। गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जनहित याचिका दायर कर निजी विमानन कंपनियों को सरकारी खर्च पर द्विपक्षीय मार्गों के आवंटन सहित कई गंभीर आरोप लगाए थे। इस पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस जेएस खेहर की बेंच ने एजेंसी को जून 2017 तक जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा था।
सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया इस समय 30,000 करोड़ के बेलआउट पैकेज पर चल रही है। यह पैकेज उसे दस साल की अवधि के लिए मिला है। एयरलाइंस वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए दूसरे उपायों पर भी काम कर रही है। राष्ट्रीय विमान कंपनी पर इस समय 48,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। इसमें से करीब एक तिहाई कर्ज का कारण विमानों का अधिग्रहण है। 19 बैंकों के समूह ने एयर इंडिया को कर्ज दिया है।
एयर इंडिया के एमडी अश्विनी लोहानी कंपनी की इस हालत के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। उन्होंने इसी महीने 14 मई को अपने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि एयर इंडिया की खराब माली हालत के लिए पूर्व सरकार के दोनों संगठनों के विलय समेत अन्य गलत निर्णय जिम्मेदार हैं। इसके साथ कंपनी पर कर्ज इतना अधिक है जिससे पार पाना मुश्किल है। यही सारी समस्याओं का कारण है…। वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कुप्रबंधन से भी कंपनी की स्थिति बदतर हुई है।
मार्च 2007 में मिली थी विलय को मंजूरी
मार्च 2007 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय को फाइनल मंजूरी दी थी। इसके बाद नई एयरलाइन में दोनों कंपनियों के करीब 120 विमान और 30 हजार से ज्यादा कर्मचारी एक हो गए थे। हालांकि एयरलाइन के सरकारी स्वरूप में बदलाव नहीं हुआ।
यूपीए सरकार के कार्यकाल में कुल 111 विमानों की खरीद का आर्डर दिया गया था। यह सौदा 67,000 करोड़ रुपये का था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया कि एयर इंडिया का मुनाफा महज 100 करोड़ रुपये का था। उसकी क्षमता कुछ विमान खरीदने की भी नहीं थी, पर इसने 111 विमान खरीदे। इससे राष्ट्रीय विमानन कंपनी घाटे में चली गई और यह घाटा बढ़ता ही रहा।
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