श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज आज आपको ऐसी विधि के बारे में बता रहे हैं जिसके करने या अपनाने से अनेकोनेक लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं और ऐसे लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं जिनसे जीवन बदल सकता है।
***त्रिकाल त्राटक (भाग-2) योग विधि से कैसे मिल सकता जीवन को बदल देने वाला चमत्कारिक ज्ञान, बता रहे हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज
तो आइए स्वामी जी से जानते हैं अग्नि त्राटक के बारे में
[त्राटक भाग-3]
अग्नि त्राटक यानि दीपक की लौ पर त्राटक करने की सबसे गुप्त विधि-जो आज तक आपने न पढ़ी और न सुनी होगी-और त्राटक के समय जो साधक को अनेक अनुभव होते है,उस विषय पर भी स्वामी जी विस्तार से उन अनुभवों की सत्यता को बता रहे है –
आओ पहले जाने की अधिकतर त्राटक करने वाले साधकों को जो अनुभव होते है,वे कितने और कहाँ तक सत्य है?उससे आगे की सत्यता क्या और कैसे पाये?:-
त्राटक करते में साधक को जो अनुभव होते है-वे कितने सत्य है या वे भ्रम है? आओ स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी से जाने:-
त्राटक चाहे-बिंदु पर या दीपक की जलती लो पर या दर्पण आदि पर किया जा रहा हो,उस सबका एक ही अर्थ होता है की-अपने द्रष्टि को एकाग्र करना और उस द्रष्टि के पीछे जो है-यानि मन-उसे एकाग्र कारण ही त्राटक कहलाता है।त्राटक का अर्थ है-त्रि-अटक,यानि तीन स्थियियों का निर्माण होना।कौन कौन सी तीन स्थितियां है-दो दृष्टि और एक लक्ष्य।हमारे मस्तिष्क को सुचना देती दो दृष्टि और जिस स्थान की सुचना दे रही है-वो स्थिर वस्तु।
यो यहां किसी स्थिर वस्तु बिंदु या जलती लो या अपने सामने रखा दर्पण।इस दर्पण में अपनी ही दोनों आँखों में आमने सामने देखा जाता है।
तब साधक को क्या अनुभव होता है-जैसे बिंदु हिल रहा है या छोटा होता जा रहा है या बड़ा होता जा रहा है।पर इस बड़े या छोटे होने की स्थिति होती है,वहाँ जाकर वो बिंदु का छोटा या बड़ा होना रुक जाता है और ऐसे बिंदु ने प्रकाश या ज्योति का प्रकाश भी घटता बढ़ता है और एक समय सब स्थिर हो जाता है।और साधक को अपने साँस छोटे होते अनुभव होते है या अपने अंदर कुछ हिल रहा है या कुछ कम्पन ऊपर को चढ़ रहे हैं।अपने को बड़ा होते अनुभव या अपने को डूबता हुआ अनुभव होना और फिर ये अवस्था कुछ घबरा कर टूट जाती है।यही इन सब अनुभूतियों का समापन हो जाता है।
तब ये क्या है?:-
जब हम त्राटक करते है,तब हम अपने नेत्रों को किसी भी बिंदु हो या लो या तारे आदि स्थिर वस्तु लक्ष्य पर स्थिर करते है।तो हमारा मस्तिष्क, जो देख और दिख रही वस्तु आदि की सुचना प्राप्त करके उस पर अपना निष्कर्ष निकलता है,यो चलायमान रहता है। अब उसे भी स्थिर होना पड़ता है। और वो उस निरन्तर देखती और प्राप्त होती चित्रण चित्र की सुचना को कैसे भूले या रोके? यो उसके चित्रण को ग्रहण करने के भाग में हलचल होती रहती है। और यही कभी हलचल और तो कभी स्थिरता ही हमें अपने आँखों के आगे के बिंदु या लौ आदि की ऊपर नीचे आगे पीछे बढ़ते या छोटा या बड़ा होकर प्रकाशित होने के द्रश्य के रूप में देखती और दिखती है।मस्तिष्क गतिमान होना चाहता है और उसका कर्म हमने रोक दिया, और साथ ही इस मष्तिष्क के पीछे जो मन यानि इच्छाओं का समूह है यानि अनेक चलायमान इच्छाएं,जिनमे नवीन द्रश्य और प्राप्ति और स्वाद आदि का विषय जुड़ा है, और उस मन इच्छाओ से जुडी इन्द्रियां-जीभ और द्रष्टि और शरीर की मांसपेशिया भी स्थिर होने का आपका आदेश और उनकी चंचलता में विवाद होता रहता है।इस सबसे जो हमारे स्नायुमण्डल में उद्धिगन्ता यानि एक्साइटमेंट उत्पन्न होती है,वहीं अनेक ऐसी द्रश्य को पैदा करने में साहयक होती है।मष्तिष्क बार बार स्थिर सा या शून्य सा होकर,द्रश्य को निर्मित करने वाले रंगों या स्पंदनों को ही अनेक रूप में भेजता है।क्योकि हम त्राटक करते में शून्य होते हुये भी क्रियाशील है,यो मस्तिष्क के लिए बड़ी विचित्र स्थिति बन जाती है-की उसे उस देखते लक्ष्य वस्तु को देखना भी है और उसका परिणाम भी नही ग्रहण करना आदि आदि बातें।तब ये ही मष्तिष्क की अस्थिर स्थिति और उसके पीछे का मन मिलकर अनेक रंगों के बने द्रश्य विहीन यानि बिना द्रश्य के और साथ ही दिख रहे द्रश्य के ऊपर ही,एक द्रश्य बनाता है। और यही द्रश्य हीन अवस्था रंगों का एक प्रकाश क्षेत्र बना देती है।जिसे हम श्वेत या रंगीन या सूर्य जेसी आभा वाला तेज ज्योतिर्मय प्रकाश देखना आदि कहते है।ऐसे ही करणो से अन्य दीखते अनुभवों को समझे।
और बहुत समय या मस्तिष्क के द्रश्य तन्त्र वाले स्नायुमण्डल के साथ साथ उसका सुचना और उसके पीछे के मन यानि इच्छाओं में शून्यता आने और उसे शून्यता लाने के संसारी विषयों में अपनी लिप्तता कम करने के अभ्यास आदि की मिलने से,तब सच्ची विषय और उसके द्रश्य की शून्यता की स्थिति साधक को प्राप्त होती है।ठीक तब अपने विचार अपनी पकड़ में आते है। और उन्हें अपने अनुसार चलाकर या उत्पन्न करके किसी दूसरे के मष्तिष्क को भी ऐसी ही स्थिर दृष्टि से देख कर शून्य किया जाता है। और तब अपना नवीन या जो विचार- विचारित करके, उसके मष्तिष्क में डाला और उसे द्रश्य बनाकर देखा और दिखाया जाता है।यही भ्रम या माया उत्पन्न करने का त्राटक विज्ञानं है। समझे..इस ज्ञान को ठीक से समझे तब, सब त्राटक और उसका भ्रम या सच्चा चित्रण देखने और पैदा करने का द्रश्य विज्ञानं का रहस्य समझ आ जायेगा।
ज्योति त्राटक के विषय की प्राप्ति में योगी और मेरे स्व.दादा जी की एक अनुभव कथा:-
इस त्राटक के विषय में एक बार मेरे दादा श्री महेंद्र सिंह जी ने मुझे त्राटक करते देख बताया था की-उनके युवा अवस्था के समय ग्वालियर में उन्होंने एक योगी को एक योग के असाधारण सामर्थ्य के खेल दिखाते में एक वाकया हुआ की- उनके साथ एक पहलवान लड़का था,उसने उस योगी को चुनोती दी की-अरे-ये सब तो दिखावा है,नजरों का भ्रम होता है।तब योगी ने कहा की-ठीक है भई-यदि तू मुझे इस बैठी अवस्था से अपनी पकड़ के बल से इस स्थान से उठा दे,तो ये भ्रम है।और तब ये चेलेंज को स्वीकार करके उस पहलवान लड़के ने उस योगी को पकड़ कर खूब उठाने हिलाने का पुरे जोरों से प्रयास किया पर,वो टस से मस तक नहीं हुआ।हार थक कर उसने अपनी हार स्वीकार कर ली और तब योगी ने एक और संकल्पित योग बल दिखाया की-लड़के को कहा- तू अब मेरे और पूरा बल जोर लगाकर बढ़ना,पर मेरे तुझे दीखते रहने पर तू आगे बढ़ नहीं पायेगा।और यही हुआ,वो लड़का अपना पूरा बल लगाने पर भी जरा भी आगे नहीं बढ़ पाया और तो और योगी ने ज्यों ही उसकी और अपने नेत्रों से देखते बल लगाया वो लड़का वहीं नीचे को जमीन पर बैठता और गिरता सा चला गया।तब योगी ने अपना बल हटाया और उससे कहा की-मैं चाहता तो तुझे यहीं ऐसे ही देखते देखते मार देता।जा आज से अपने बल पर घमंड नही करना और दूसरों की इज्जत भी करना सीखना।सभी एक से नहीं होते है।तब वो लड़का इन्हीं के साथ के और लड़कों के साथ वापस चला आया और मेरे दादा जी ने उस योगी से उस विद्या के विषय में बड़े श्रद्धाभाव और आग्रह से पूछा,तब उस योगी ने ये त्राटक विद्या बताई और कहा तो ये था की-तुम्हारे दीपक का तेल जब खत्म हो जाये और उतनी अवधि तक का तुम्हारा त्राटक हो जायेगा,तब ये मेरे जेसी मानसिक संकल्पित शक्ति की प्राप्ति हो जायेगी।उससे ये पूछने पर की फिर भी कितना समय लगता है? तो योगी बोले की-प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत सामर्थ्य अलग अलग होती है,फिर भी इसमें लगभग 3 साल तो लग ही जायेंगे।।तब लौटकर उन्होंने इस त्राटक को किया।पर खेती और गांव के और परिवारिक कारणों से इस विषय पर विशेष आगे नहीं बढ़ पाये।और फिर मैने ऐसा किया,पर अन्य विषयों को लेकर मैं भी इतना समय नहीं निकाल पाया।पर बहुत से गहरे अनुभव इस सम्बन्ध में प्रमाणिक अनुभव किये।
और अब बताता हूँ,दीपक की लौ पर एक अद्धभुत त्राटक की सच्ची विधि:-
दीपक त्राटक विधि:-
सहज आसन में सीधे बेथ जाएँ और एक बड़ा सा मट्टी के दीपक में सरसों के तेल का दीपक जलाये और उसे अपने सामने इस प्रकार से थोड़ी सी ही ऊंचाई यानि एक सपाट ईंट या पटरे पर रख ले की-उसकी लौ की छाया आपके सामने रखे पानी से भरी एक मध्यम आकर की घरेलू उपयोग में आने वाली थाली में दिखें और अब उस थाली के पानी में पड़ रही प्रतिबिंम्ब लौ यानि दीपक की जलती लौ की छाया लौ पर खुली आँख से देखते हुए त्राटक करें।यहाँ लौ की नोक पर नहीं बल्कि सारी लौ को ही देखना है।
ये त्राटक इस लिए है की- इससे कभी भी आपकी आँखों में अग्नि तत्व की अधिकता नहीं बढ़ती है।और न ही इससे आँखे खराब होती है।और अग्नि तत्व का जल तत्व में में मिश्रण होने से किया गया त्राटक सबसे उच्चतर सफलता देता है।
त्राटक के बाद आँखे पानी से धो लेनी चाहिए।इससे आँखों का गर्मी से आया तनाव समाप्त होता है।
यहाँ इस त्राटक के विषय में कुछ विशिष्ठ प्रयोग नहीं कहे है।उन्हें फिर किसी त्राटक लेख में कहूँगा।इतने इसे सही से समझ कर करें और अपना मानसिक और आत्मिक बल बढ़ाएं।
इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः