धर्म का सच्चा अर्थ क्या है और वो अधर्म किनके कारण बन गया और उस अधर्म कैसे फैला ओर से अपना कर समाज केवल दास बन जी रहा है, ये बता रहें है स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,
1-धर्म का अर्थ जाने:-
धर्म तीन अक्षर बना
ध धारण करो सच्च ज्ञान।
र रमित हो उसे जानकर
म मर्मज्ञ बनो जान सत्य भान।।
2-धर्म का ज्ञान किन्होंने दिया:-
धर्म को धारण रमण कर
मर्मज्ञ बन ऋषि कहलाये।
त्याग तपस्या समाधि लाभ कर
लिख वही सत्य फैलाये।।
किन्होंने धर्म का अनर्थ किया:-
कुछ शिष्य हुए प्रयोगवादी नहीं
वे बन गए पण्डित धर्म।
अपनी रोजी रोटी धर्म बना
किया उलट फेर अनर्थ कर्म।।
ऋषि परम्परा हुई लोप जगत
ओर रह गया पण्डित ढोंग।
वही चला अज्ञान बन धर्म
अर्थ के अनर्थ बन जग ढोंग।।
क्या अधर्म संसार मे चल रहा है:-
किसी से पूछो की ये क्या करो
बता नहीं कोई है पाता।
बस कहता है शास्त्र लिखा
कथित शास्त्र नहीं दिखा पाता।।
फिर कहता ये बता बुजुर्ग गए
जो उसके से थे अज्ञानी।
बस शेष ज्ञान के दमन को
रह गए कुछ पण्डित अभिमानी।।
धर्म शिक्षा का भाग नहीं
यो समझ ज्ञान नहीं आता।
जो प्रचलन बढ़ चल रहा आज
वही ढ़ोते चले समाज है जाता।।
जो करता ज्ञान के तर्क को
उसे ये पण्डित नास्तिक कहते।
उसे ईश्वर का विरोधी बता
असल ज्ञान धर्म दबा देते।।
वेद कह गए आत्मनिर्भरता को
ओर कह गए निज आत्मा जान।
ज्यों बीज पौधा वृक्ष फल बीज
यो तेरी आत्मा ही परमात्मा मान।।
आज दशहरे पर लोग है
खाट पर रख कर धर्म ग्रँथ।
गन्ने गुड़ जयों रख पूजते
परिक्रमा खाट कर बन धर्म अंध।।
जोर जोर से बाज स्पीकर
सुख बदले देते पड़ोसी दुख।
नाम जागरण देव्य कर
केवल पाते बढा शाप का दुख।।
रावण का पुतला बनाकर-मूर्ख
उसमें हर वर्ष लगाते आग।
बुराई जल गई हर्ष से चिल्लाते
बिन अपनी कोई बुराई त्याग।।
व्रत रखते भूखे रह नो दिन
व्यर्थ व्रत नहीं मिटे अज्ञान अंधकार।
संकल्प नाम व्रत है सच्च अर्थ
कोई शुभ संकल्प करें नहीं स्वीकार।।
क्या करें सच्चे धर्म को अपनाने के लिए:-
अरे,,मूर्ख सच्चे ज्ञान को जनों
यो कर अपनी आत्मा ध्यान।
मंथ दे अपने नव ग्रह अज्ञान अंध
उजिता कर प्रकाश दीप से ज्ञान।।
यो रेहि क्रियायोग कर
ओर जगा अपनी कुंडलिनी शक्ति।
सच्चे धर्म सत्यास्मि को जान कर
मनुष्यता की कर तू ज्ञानी भक्ति।।
अज्ञान पर ज्ञान की कर विजय
अपने हर दस दुखदाई पाप।
धर्म को जान अधर्म त्याग दे
यही दशहरा दीपावली अपना ले आप।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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