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आज 20 जून को है माँ धूमावती की जयंती, कौन हैं माँ धूमावती? कैसे होती है इनकी पूजा? विश्व विधवा दिवस का क्या है इनसे संबंध? बता रहे हैं स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

 

 

 

 

मां धूमावती जयंती के विशेष:-

 

 

“20 जून यानि माँ धूमावती की जयंती। आपमें से बहुत से लोग माँ धूमावती के बारे में शायद जानते भी ना हों, आज स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज इस दिवस के बारे में सब कुछ बता रहे हैं और साथ ही बता रहे हैं कि इस दिन को विधवा दिवस से क्यों जोड़ा जाता है?”

 

 

विश्व विधवा दिवस 23 जून को मनाया जाता है लेकिन हमारे देश में 20 जून को माँ धूमावती की जयंती के रूप में इस दिवस को मनाया जाता है।

स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज बताते हैं कि 20 जून एक बड़ी ही महत्त्वपूर्ण तिथि है इस दिन माँ धूमावती की जयंती भारत के कई हिस्सों में मनाई जाती है।

स्वामी जी के मुताबिक 23 जून को विश्व विधवा दिवस मनाया जाता है, जो की हमारे भारत की प्राचीन संस्कर्ति में “माँ धूमावती की जयंती” के रूप में विधवा दिवस को पूज्य करके मनाया जाता है।

 

माँ धूमावती जन्मोउत्सव जे पवन अवसर पर दस महाविद्या का पूजन किया जाता है।जो तिथि के अनुसार 20 जून 2018, को धूमावती जयंती के रूप में मनाई जाएगी। धूमावती जयंती समारोह में धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है और काले वस्त्र में काले तिल बांधकर मां को भेंट करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। परंपरा है कि- सुहागिनें मां धूमावती का पूजन नहीं करती हैं और केवल दूर से ही मां के दर्शन करती हैं। मां धूमावती के दर्शन से पुत्र और पति की रक्षा होती है।

पुराण कथा है की-एक बार देवी पार्वती को बड़ी भूख लगी और उन्होंने भूख की शांति को प्रकर्ति को ही खाना प्रारम्भ कर दिया,तब भगवान शिव ने उन्हें स्वयं को उनका भोजन बनाने का निमन्त्रण दिया की संसार को मत खाओ,उसके स्थान पर मुझे खा कर अपनी क्षुदा शांत कर लो,तब पार्वती में उन्हें ही खा लिया,यो उनके द्धारा अपने पति को खा लेने से वे विधवा कहलायी और इस दोष को समझने पर उन्होंने भगवान शिव को फिर से अपने पेट से बाहर निकाला और तब शिव जी ने कहा की-तुम इस क्षुदा यानि भूखे स्वरूप में जिसमें एक सूखे बालों वाली,गन्दे वस्त्र पहने,सूखे तन की स्त्री बनी हो,यो अब ये ही रूप तुम्हारा जगत में जो भी जीव और मनुष्य में क्षुदा यानि अतृप्ति और भूख है,जिसके कारण सभी और सभी प्रकार की कलह और अशांति और दरिद्रता होती है,उसका तुम प्रतीक हो,यो जो तुम्हारे इस रूप की पूजा करेगा,उसे सभी प्रकार की अतृप्ति और कलह और भूख से मुक्ति मिलेगी।यो तब से विधवा देवी के रूप में माँ धूमावती की पूजा है।
पर यहाँ देखने की बात ये है की-जो पार्वती सृष्टि की जननी है,उनकी भूख को क्या भोजन नहीं मिल सकता है??
असल में ये एक विधवा के विषय में जो समाज में जो भयंकर आलोचना है की- अरे इसने तो अपना पति ही खा लिया..और ये तो कुलक्षिणी है,हमारे कुल के लिए शाप है..आदि आदि। यो विधवा स्त्री के लिए जो भी इस तरहां के शाप दिए जाते है,वे कौवे की कांय कांय के समान है और व्यर्थ की अज्ञान की बातें है,यो इन्हीं का प्रतीक माँ धूमावती और उनका रूप और उनके रथ पर कौवे का चिन्ह आदि है।यो इसी विषय में और भी ज्ञान है-

हें न विचित्र बात..कैसे आओ सुतर्क से जाने:-

असल में देवी धूमावती की पूजा का सच्चा अर्थ है की-जब कोई स्त्री विधवा हो जाती है,तो समाज में उसे सभी धार्मिक कार्यों से हेय समझ कर तृष्कृत यानि उसी के पुत्र के विवाह में उसे हल्दी नहीं लगाने देते और भी अनेकों शुभ कार्यों से दूर की करते है और ये उस स्त्री का दुर्भाग्य देखे की-वेसे वो माता है,उसकी सभी सम्पत्ति में पुत्र का हक है,पर उसके मंगल कार्यों में नहीं।और स्त्री के मर जाने पर विधुर पुरुष को सभी स्थानों पर सम्मान मिलता है।क्योकि उसके अधीन पैत्रक सम्पत्ति है,उसका सम्मान नहीं करेंगे तो-वो पैत्रक सम्पत्ति से बेदखल कर सकता है और चूँकि स्त्री के हाथ में कुछ नहीं है,यो उसे मुख्यतया सम्मान से विधवा होने के दोष से प्रताड़ित किया जाता है,जो की भगवान की और ज्ञान की दृष्टि से अन्याय ही है।

ऐसी ही अनेको सामाजिक कुप्रथाओं को देखते हुए,भगवान के सच्चे उपासक तथा ऋषियों और महर्षियों और अनेकों सिद्ध तांत्रिकों ने- श्री वेदव्यास ने अपनी विधवा माता सत्यवती की सभी आज्ञा मानकर और उनकी इस दिन पूजाकरके और भगवान परशुराम और तारापीठ के वामाक्षेपा और श्री रामकृष्ण परमहंस ने भी दसमहाविद्या की उपासना और सिद्धि के अंतर्गत ही माँ धूमावती देवी के इस रूप की पूजा का प्रचलन किया की-अपनी विधवा माँ,या विधवा बहिन हो या भाभी आदि,उसे भी सभी धार्मिक और सामाजिक कार्यों में सुहागन की भांति ही सम्मानीय और पूज्य माना जाये।
इसमें उस स्त्री का विधवा होने का कोई दोष नहीं है,बल्कि उसमें उस मृत व्यक्ति के पुत्र का भी दोष है की-उसे अपने पिता का सुख नहीं मिलेगा आदि आदि।
यो शिव पार्वती के कथा के माध्यम से इस विधवा दोष का धर्म में निवारण किया गया है।की आप अपनी विधवा माता की इस दिन पूजा करें यदि अधिक पूजा नहीं करनी हो तो-
अपनी माता में माँ धूमावती की मान्यता करने पर सच्च में ही माँ धूमावती-जो समस्त कलह और दरिद्रता के निवारण की देवी है,उनका तेज आता है,यो-

“”जय धूमावती माता की जय””

कहते हुए केवल उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद ले तथा उन्हें नई साड़ी चप्पल आदि भेंट करें और उसका आशीर्वाद ले।अवश्य ही आपका मनवांछित मनोरथ पूर्ण होने के साथ आपके कुल का सभी और से सम्पूर्ण कल्याण होगा।और जो चोथे भाव का शंखपाल कालसर्प दोष है।वो भी नष्ट होगा।जिसके कारण आपके घर में अनावश्यक विवाद और कलह बनी ही रहती है,उसमें अवश्य ही शांति हो जायेगी।
धूमावती के रथ को खींचते कौवे और उनके रथ की ध्वजा पर कोवे का चिन्ह भी हमारे जीवन में जितनी भी कलह होती है,उसका प्रतीक कौवे और उस की कांय कांय की कर्कश आवाज का प्रतीक होने से है-की आपके जीवन माँ धूमावती के रथ की भांति ही कौवे यानि कलह का निवारण हो जायेगा।
आज के दिन कौवे को मातृ पितृदोष के निवारण को को उबले चावल में थोड़ा घी मिलाकर पिंड बनाकर खाने को दे।और यदि आज के दिन यानि 20-6-2018 को ऐसा नहीं कर पाये तो आने वाली पूर्णिमा को ऐसी पूजा यानि अपनी माता की पूजा और कौवे को चावल पिंड दे सकते है।

 

” श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज”

“जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः”

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