आज श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी माहारज पंचमुखी रुद्राक्ष के बारे में और इसके चमत्कार के बारे में आपको विस्तार से बता रहे हैं। स्वामी सत्येन्द्र जी माहारज जो ज्ञान आपको दे रहे हैं वो बहुत ही दुर्लभ है। जिस विस्तार से स्वामी जी जीवन की सच्चाइयों का वर्णन करते हैं वो कहीं देखने सुनने को नहीं मिलता है।
तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि रुद्राक्ष होता क्या है?
रुद्राक्ष का अर्थ :- रूद्र का अक्ष, यहाँ रुद्र का मतलब भगवान भोले नाथ से है, और “अक्ष” भगवान बोलेनाथ ने अश्रु माने जाते हैं। इन दोनों शब्दों को मिलाकर बनता है रुद्राक्ष। रुद्राक्ष को प्राचीन काल से आभूषण के रूप में, सुरक्षा के लिए, ग्रह शांति के लिए और आध्यात्मिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। समस्त संसार में कुल मिलाकर मुख्य रूप से सत्तरह प्रकार के रुद्राक्ष पाए जाते हैं, परन्तु ग्यारह प्रकार के रुद्राक्ष विशेष रूप से प्रयोग में आते हैं। रुद्राक्ष का लाभ अदभुत होता है और प्रभाव अचूक, परन्तु यह तभी सम्भव है जब सोच समझकर नियमों का पालन करके रुद्राक्ष धारण किया जाय।
स्वामी जी आज पंचमखी रुद्राक्ष और इसकी विशेषताओं के बारे में बता रहे हैं।
पंचमुखी रुद्राक्ष तंत्र ज्ञान का ऐसा सहज रहस्य, जिसे जान कर आप अपनी समस्त जीवन की पांचो मुख्य आवश्यकता की मनोकामनाओं को सम्पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकते है, ये ज्ञान न कभी पहले पढ़ा न जाना और न सुना होगा, इसको आज ही इसे जानें और करें। अपने जीवन में फेल दुखों के बादलो की नष्ट करके स्वर्ण प्रातः प्रभा सुख पाये:-
सभी के लिए सहज सरल और सर्व उपयोगी होता है,पंचमुखी रुद्राक्ष, इसे सभी पहन सकते है, क्योकि ये पंचतत्वों का बीज स्वरूप है–1-पृथ्वी-2-जल-3-अग्नि-4-वायु-5-आकाश-और इन्हीं से बना है हमारा शरीर और ये प्रकर्ति और इसमें रहने वाले सभी जीव जन्तु, ये प्रकर्ति का रूप होने से हमें अवश्य पाँच लाभ भी देता है-1-शिक्षा सम्बंधित-2-नोकरी और व्यवसाय सम्बंधित-3-प्रेम और विवाह सम्बन्धीत-4-सन्तान सम्बंधित-5-हमारे सभी पंचतत्वों के असन्तुलन से उपजे सभी रोगों में तथा हमारी अंतिम मृत्यु सम्बंधित कष्टों और मोक्ष के भी सम्बन्ध में, लेकिन यहां स्मरण रहे की-मोक्ष का विषय इन सब पंचतत्वी विषयों से ऊपर का विषय होने से यहां इन सभी पंचतत्वी से परे जाना पड़ता है, पर जब तक इनसे परे जाने की सामर्थ्य की प्राप्ति नहीं हो जाती है, तब तक ये पंचतत्व और इनका ये बीजस्वरूप पंचमुखी रुद्राक्ष हमारी पंचतत्वी साधना में सहयोग देता है, ये बड़ा गहरा रहस्य है, जो गुरु संगत से ही प्राप्त होता है।
पंचमुखी रुद्राक्ष सर्वगुणों से संपन्न है। यह रुद्राक्ष सभी रुद्राक्षों में सर्वाधिक शुभ तथा पुण्य प्रदान करनेवाला माना गया है। महादेव शिव और शक्ति के पांच देव रूप है यथा –
और इनके 5 मंत्र है:-
1-ॐ सद्योजातायै नमः
2-ईशान-ॐ ईशनायै नमः
3-तत्पुरुष-ॐ तत्पुरुषायै नमः
4-अघोर-ॐ अघोरायै नमः
5-वामदेव-ॐ वामदेवायै नमः
इन पांच मन्त्रों के एक एक करके कम से कम 5 बार जपते हुए अपने पंचमुखी रुद्राक्ष को पंचाम्रत-1-गंगा जल-2-दूध-3-दही-4-तुलसी या बेलपत्र-5-गाय का घी-में स्नान कराते हुए पूजा यानि इस पंचमुखी रुद्राक्ष के बीज को चैतन्य यानि जाग्रत करना पड़ता है।
क्योकि ऐसा करने से ही ये पांचो देवरूप रूद्र और उसकी शक्तियां पंचमुखी रुद्राक्ष में से चैतन्य और जागरूक होकर निवास करते हैं और साधक को फल प्रदान करते है। यही कारण है कि मातारूपी भूमि पर पंचमुखी रुद्राक्ष सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है तथा इसका प्रचार-प्रसार भी प्रायः सभी क्षेत्रों में हुआ है।
पंचमुखी रुद्राक्ष और ज्योतिष
पंचमुखी रुद्राक्ष साक्षात् रूद्र और उसकी शक्ति का रूप है। ज्योतिष में इसका अधिकारी ग्रह वृहस्पति है।यदि आपकी जन्मकुंडली में व्रहस्पति ग्रह कमजोर या दूषित हो या इसकी महादशा या अंतर्दशा चल रही हो,तो उसके शांति निवारण के लिए इस रुद्राक्ष को उपरोक्त विधि से गुरुवार को अवश्य धारण करना चाहिए। यह पुखराज रत्न से भी अधिक प्रभावशाली और लाभकारी रहेगा। इसे धारण करने से शीघ्र ही निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों का निवारण होता है। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति तथा प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। ह्रदय रोगियों के लिए तो यह रामबाण ही है। इससे आत्मविश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति श्रद्धा बढ़ती है।
“मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन वाले जातक को अवश्य ही धारण करना चाहिए।”
शुद्धिकरण और शुभलाभ की सिद्धि के लिए कैसे पहने पंचमुखी रुद्राक्ष:-
एक बड़ी सी थाली में ऊपर बताये पंचाम्रत में से एक एक पदार्थ को धीरे धीरे अपना गुरु और इष्ट मन्त्र जपते हुए डाले और जैसे-गंगा जल को थाली में थोडा थोड़ा डालते हुए कम से कम 5 बार बोले की-ॐ सद्योजातायै नमः।
फिर-दूध को धीरे धीरे डालते हुए 5 बार बोले की-ॐ ईशनायै नमः।
फिर-दही को डालते हुए 5 बार बोले की-ॐ तत्पुरुषायै नमः।
फिर-तुलसी के 5 पत्ते या बेलपत्र के 5 पत्ते एक एक करके डालते हुए 5 बार मंत्र बोले की-ॐ अघोरायै नमः।
और फिर गाय का घी धीरे धीरे डालते हुए 5 बार मंत्र बोले की-ॐ वामदेवायै नमः
अब इस पंचाम्रत में अपना पंचमुखी रुद्राक्ष को अपने गुरु मंत्र के बाद अपने इष्ट मंत्र को जपते हुए श्रद्धा पूर्वक नमन करते हुए थाली के बिलकुल बीच में रखे,क्योकि बीच में रखने से ये पंचमुखी बीज रुद्राक्ष उस पंचाम्रत में से पंचतत्वों के पँच इष्ट की शक्ति आपके मन्त्र जपते रहने से स्वयं खिंचेगा।यो अब पंचमुखी रुद्राक्ष का एक मुख यानि उसमे बनी एक उभरी लाइन को अपने सामने की और करें और उसे देखते हुए-ऊपर बताये क्रम से पहला मंत्र जपे- ॐ सद्योजतायै नमः और अब आपके ऊपर है की-आप कम से कम एक माला यानि108 बार इस मंत्र का जप तो करें ही बाकि कितना शक्तिशाली बनाना है,यो कितनी माला इस एक मन्त्र से जपते हो ये आपके समय और श्रद्धा और आवश्यकता पर निर्भर करता है।
और ध्यान रहे की आप आँख बन्द करके अपने रुद्राक्ष और उसकी उस उभरी लाइन को अपनी मन की आँख से कल्पना से देखते हुए जपे और जब आँख खोले तब केवल रुद्राक्ष पर ही नजर पड़े,इससे आपके अंदर से उस मन्त्र से उत्पन्न उस देव देवी की ऊर्जा शक्ति उस रुद्राक्ष में सीधी जाकर उसमें छिपे उस तत्व को जाग्रत करेगी।
ठीक ऐसे ही आप अब रुद्राक्ष के दूसरी उभरी लाइन को अपनी और करके इसी प्रकार से दूसरा मन्त्र कम से कम 5 बार या 108 बार जपे और ऊपर बताये आँख बन्द कर ध्यान करें।
अब ऐसे ही अन्य मन्त्र अपने रुद्राक्ष की अपने सामने की और उभरी लाइन का ध्यान करते जपने है।
यहाँ ये भी ध्यान रहे की जब आप रुद्राक्ष की एक एक उभरी लाइन रेखा को अपनी और करें,तो अपने उलटे हाथ की और से सीधे हाथ की और को घुमाते हुए करना है।
अब ऐसे पांचों मंत्रों के जप के बाद आप अपने रुद्राक्ष को नमन करें और उसे पंचाम्रत से उठाकर एक लाल रेशमी धागे या कलावे में पिरोकर बांध ले और तभी अपने गले में या सीधी बांह में पहन ले।और पंचाम्रत को मन्दिर में स्थापित शिवलिंग पर शिव मंत्र या अपने गुरु या इष्ट मंत्र से अपनी मनोकामना कहते हुए की-मेरा ये रुद्राक्ष पर आपकी कृपा सदा बनी रहे..और जो अन्य मनोकामना है वो भी कहे और वहां बने दानपात्र में अवश्य ही ईश्वर को समर्पित जो अधिक बने दक्षिणा डाले तथा अपने साथ लाये प्रसाद को वहां चढ़ाये और श्रद्धालुओं हो तो उन्हें बाँट दें और मन्दिर और इष्ट को नमन कर घर या जहाँ जाना है चले आये या जाये।
अब जब भी शिवरात्रि हो या सावन के सोमवार हो या कोई ग्रहण हो अथवा आप चाहे तो किसी भी अमावस्या या पूर्णमासी को इसी विधि से अपने रुद्राक्ष को सिद्ध करते हुए,सम्पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है।
ऐसे ही जाग्रत होता है-पंचमुखी रुद्राक्ष या अन्य रुद्राक्ष..यदि आप ऐसा नहीं करते है.,तो जाने.,की केवल बीज बने रुद्राक्ष को पहनने से या उसकी माला पर जप करने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा,बल्कि वो पहना हुआ रुद्राक्ष आपकी ऊर्जा को न्यूट्रल यानि निष्क्रिय करता या मात्र पीता रहेगा,क्योकि वो जाग्रत नहीं है.यो पहले रुद्राक्ष रूपी पंचतत्वी बीज को जाग्रत करें।तब पहने।
ऐसे ही किसी अन्य लेख में तुलसी ओर वेजन्ती की माला को जाग्रत करने की विधि बताऊंगा।
-मेरे ये या अन्य लेख को पढ कोई भक्त सोचेंगे कि:-
गुरुदेव स्वामी जी ने रुद्राक्ष में अपने गुरु या किसी भी अन्य इष्ट जैसे-विष्णु जी या देवी दुर्गा आदि के मन्त्र जपने को क्यों कहा है? तो भक्तों ये जाने की-शिव ही अन्य सभी देवों में भी उसी प्रकार समाहित है, जैसे वे देव और देवी शिव में समाहित है,यानि हरि ही हर है और हर ही हरि और इनकी देवी शक्ति ही सभी देवी शक्ति है।और गुरु तो सर्वदेवों में सर्वोच्च और प्रथम प्रत्यक्ष त्रिदेव होते है,यो जो भी अपने गुरु या इष्ट का जप ध्यान करता किसी भी रुद्राक्ष को सिद्ध करता है,वो शिव भक्तों की भांति ही प्रिय होता है।भगवान निस्वार्थ प्रेम का नाम ही है।
सावधान..स्मरण रहे कि : –
अपने गुरु के द्धारा दिए गए रुद्राक्ष को छोड़कर अन्य किसी भी बाबा या परिचित व्यक्ति से कोई भी रुद्राक्ष नहीं लेना चाहिए,क्योकि ये एक सर्वेश्वर्य आकर्षण तन्त्र होता है की-जिसमें कोई बाबा या व्यक्ति आपको दिए गए उस रुद्राक्ष में इस सर्वेश्वर्य आकर्षण तन्त्र विधि से एक प्रकार से आकर्षण की शक्ति भर देता है,जिससे जब भी आप कोई भी मंत्र जप उस रुद्राक्ष.. या ऐसी दी गयी माला में भी एक मोती या रुद्राक्ष में भी यही तन्त्र क्रिया की होती है,.. करते है,तो आपका किया सारा जप या उसका कुछ अंश उस रुद्राक्ष या कोई भी किसी भी प्रकार की मनकों से बनी जप माला से उस व्यक्ति या बाबा को प्राप्त होता रहता है,यो ही बहुत से लोगों की राह चलते बाबा या परिचित व्यक्ति ये निशुल्क रुद्राक्ष को बांटते है,यो इसे स्पष्ट चेतावनी समझे और ऐसे निशुल्क बटने वाले रुद्राक्ष या जप मालाएं बिलकुल भी नहीं ले और यदि ली है,तो उसे तुरन्त बहती गंगा या नदी में विसर्जित कर दे और यो सदा स्वयं के रूपये से खरीदा गया रत्न हो या रुद्राक्ष हो या नयी जप माला या रुद्राक्ष को ऊपर दी गयी विधि से अभीमंत्रित करके पहने।तो ही सच्ची शक्ति और चमत्कारिक फल आपको प्राप्त होगा।
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी माहारज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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