माघी पूर्णिमा के दिन जन्मे महान संत रविदास जी की जयंती मनाई जाती है,संत रविदास के भक्तों को रैदासी पंथी कहते है।संत रविदास के अनुयायी संसार भर में है।ये रामानन्द के प्रेरित दीक्षित शिष्य थे और उनके गुरु मंत्र और शक्तिपात से आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त हुए।इनके साहित्य में गुरु भक्ति और निराकार राम और उसका ओंकार नांद स्वरूपी आत्मप्रकाश के दर्शन और संसार मे सद्कर्म ओर गुरु भक्ति नाम जप ही तारणहार है,बाकी सब माया भ्रम रूप है।ज्ञान ही मुक्ति का कारक है।यो सदा श्वास प्रश्वास के साथ नाम जप करते रहने पर अजपा स्थिति से साक्षी अवस्था मे रहने की शक्ति प्राप्त होती है,जिसके बल से ही इस माया संसार मे सुख दुख से परे संतुलित जीवन को जिया जा सकता है।इसी सब सच को इनके प्रचलित प्रचारकों के भ्रम को तोड़ती स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी की ज्ञान कविता इस प्रकार है कि,
रविदास रामानन्द नाम दान ले
सिद्ध से सिद्ध जली ज्योत।
संतान हुई ना करी ना जनी
स्त्री भोग्य बिन मोक्ष की मौत।।
पुरुष प्रधान पुरुष ईश नाम हैं
ॐ नांद राम के प्रेमी।
दृष्टि आज्ञा मन नांद दे टक्कर
आत्म प्रकाश युक्त राम के खेमी।।
मीरा बाई ले ज्ञान सहायता
बिन दीक्षा ना शिष्य रही।
कोई सिद्ध ना चली परम्परा
बस ज्ञान कौतूहल बात कही।।
अल्प संख्यक वर्ग बने जब नेता
जयंती पर्व मनाया ज्ञान।
साहित्य भरा शब्द रैदासी
भक्ति रस यहां भरा महान।।
रहस्य के पीछे मात्र गुरु हैं
रामानन्द का शक्ति पात।
छूकर शुद्ध बनाया ब्राह्मण
आगे शक्ति क्यों रही अज्ञात।।
गुरु कृपा शिष्य रविदास
गुरु बने आत्म पा ज्ञान।
गुरु बने पर रहे शिष्य ही
निज स्वरूपी रवि संत महान।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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