इस आसन का नाम भक्तराज बालक ध्रुव के नाम पर रखा गया है।जिन्होंने इसी कठिन मुद्रा में खड़े होकर कठोर तपस्या की थी। इस ध्रुवासन में योगाभ्यासी को उन्ही की तरह मुद्रा बनानी पड़ती है।
ध्रुवासन की प्रचलित विधि:-
अपने योग मेट पर या समतल जमीन पर सीधे खड़े होकर योगासन करते समय अपने चल रहे स्वर की जांच कर ले और और अपने शरीर का संतुलन बनाये रखें ओर अपने पैरों के बीच थोड़ी दूरी बना लें ओर साथ ही जिस स्वर से सांस अधिक चल रही है,उसी चल रहे स्वर वाली साइड के पैर को सीधा रखें और उसके दूसरी साइड के पैर को घुटने से मोड़कर अपनी जांघ के मध्य भाग पर या घुटने से जरा सा ऊपर की ओर पंजे को बाहर की ओर मोड़ते हुए टिका ले ।अब साँस को खींच कर अपने दोनों हाथों को सिर से ऊपर ले जाते हुए नमस्कार की अवस्था में मिला लें,यहां ये नमस्कार मुद्रा दो प्रकार से होती है-1-सिर से ऊपर नमस्कार करनी-2-अपने सीने के सामने नमस्कार करनी।
ओर अपनी नजर को सामान्य सामने रखे और विशिष्टता के लिए अपनी नांक के दोनों नथुनों के अग्र भाग पर दृष्टि एकाग्र अपने गुरु मंत्र को 5 या 10 बार जपते हुए रखें।एक गहरा सांस लेकर ओर धीरे से छोड़ते हुए इसी अवस्था मे संतुलन बनाने का अभ्यास करें,फिर आगे चलकर अपनी सांसों को सरलता से रोकने का प्रयास कर, जितना हो सके कुम्भक करते हुए रोके रहें। इसके बाद टांग को नीचे रखते हुए साँस को धीरे धीरे छोड़ दें। इस विधि को अपना दूसरा पर बदलकर एक बार ही दोहराये।
अधिकतर योगाचार्य हर आसन को 5 से 10 बार तक दोहराने को कहते हैं।जबकि प्रत्येक आसन की केवल दोनों ओर से मिलाकर एक एक बार यानी केवल दो बार ही करना चाहिए,क्योकि आसन का अर्थ ही स्थिरता की बढ़ोतरी करनी है,नाकि शरीर को बार बार तोड़ना।अन्यथा उच्चतर सामर्थ्य का अक्ट्राऑर्डनरी स्ट्रेंथ ओर स्टेमिना नही बनेगा।तो इस ध्रुवासन को भी केवल दोनों मुद्रा में दो बार करें बस,नमस्कार मुद्रा की एक ही आसन में बदल दें।
ध्रुवासन के लाभ:-
1-इस ध्रुवासन के अभ्यास से शरीर के संतुलन को विशेष अवस्था तक बनाये रखा जा सकता है और शरीर से जड़ता ओर आलस्य को दूर किया जा सकता है।
2-ध्रुवासन से सभी मष्तिष्क सम्बन्धित मानसिक रोग व मन की चंचलता की स्थिति में लाभ लिया जा सकता है।
3-ध्रुवासन में दोनों टांगो को बहुत अच्छी मजबूती मिलती है और घुटने के मिलने की समस्या से मुक्ति मिलती है,जैसा कि मिल्ट्री व पुलिस या फोर्स में जाने वालों के लिए बहुत आवश्यक होता है और पैर के कम्पन्न आसक्ति आदि रोगों में भी आराम प्राप्त किया जा सकता है।
4-मन और तन कि सभी उदासीनता,झुंझलाहट की समस्या से बचा जा सकता है।
5- पैरों ओर पिंडलियों की सामर्थ्य बढ़ने से दौड़ने के अभ्यास में शरीर को फुर्तीला बनाया जा सकता है साथ ही श्वास क्रिया भी नियंत्रित की सामर्थ्य बढ़ती है।
6- हिप्स के रोग और जांघों की नसों के पॉइंटों के दबने से मूत्र और वीर्य सम्बन्धी रोगों को दूर करने में सफलता मिलती है।
7-ध्रुवासन के द्वारा शरीर को साधने की शक्ति मिलती है।
8-ध्रुवासन का नियमित अभ्यास करने से मन के नियंत्रण से तन का नियंत्रण होने से अतिरिक्त काम वासना को नियंत्रित कर सकते है।
9- गुर्दे ओर मसाने की गर्मी और अंडकोषों का ढीलापन असंतुलन की कमजोरी मिटती है और पेशाब की जलन को भी शांति है।
!!यो करें-ध्रुवासन!!
!!रहे निरोग कर रोग नाशन!!
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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