श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज जी के मुताबिक कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का त्योहार होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। इसलिए इसे धनतेरस के त्योहार के रुप में मनाया जाता है। धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।
स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के अनुसार धनतेरस की कथा : –
एक बार भगवान सत्यनारायण व् सत्यई पूर्णिमां से उनके पुत्र अरजं (अमोघ) व् पुत्री हंसी ने पूछा की- की ये संसार में प्रचलित धनतेरस की कथा क्या है,तब माँ पूर्णिमाँ बोली की-
बच्चों-बहुत समय पहले देव दैत्यों के द्धारा किये गए समुंद्र मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे,तब समुंद्र मंथन का यहीं तेरहवां दिन था और उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था,तब विश्व में तेरहवें दिन को पहली बार अमृत प्रकट हुआ था।यूँ ज्योतिष और समाज में तेरहवां दिन या तेरहवीं संख्या को बड़ा ही शक्तिशाली माना गया है।यूँ किसी स्थान पर 13 की संख्या का उपयोग नहीं करते है,बल्कि 12 A आदि लिखा जाता है।क्योकि 13 संख्या या तारीख या तिथि का उपयोग मनुष्य की मृत्यु समय उसके मोक्ष संस्कारों के लिए किया जाता है,और 13 संख्या तिथि को जन्मा या उपयोग करने वाला व्यक्ति या तो उससे प्राप्त शक्ति को सही से अपना गया तो,अपार शक्तिशाली बन देवता बन जाता है,अन्यथा वो इस शक्ति के असन्तुलन से दैत्य बन जाता है।क्योकि जब भगवान धन्वन्तरि अमृत के कलश को लेकर प्रकट हुए थे,तब देवताओ और दैत्यों में इसके बंटवारे को लेकर बड़ा युद्ध स्थिति बनी।तब विष्णु भगवान ने मोहनी रूप धरकर युक्ति से अमृत को देवताओं को दिया और ठीक उसी समय एक दैत्य ने छल से देवता रूप धारण कर अमृत का पान किया,जिसे उसका भगवान विष्णु ने सुर्दशन से सर धड़ अलग किया,परिणाम संसार को राहु और केतु दो देव और दैत्य गुण लिए दो ग्रह देवो की प्राप्ति भी हुयी।यो उसी दिन से देवताओं और दैत्यों में भयंकर विवाद होता चला गया और साथ ही सूर्य (स्वर्ण धातु) व् चन्द्र(रजत या चांदी धातु)पर ग्रहण भी लगने लगा।और चारों कुम्भ के पर्व आदि का प्रारम्भ हुआ।तो ऐसे अनेक और भी कारणों से ये तेरहवीं या तेरस का दिन बड़ा शक्तिशाली दिन है।
भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।यो इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं।चांदी चूकिं चन्द्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है, वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात को लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
दीपक जलाने की प्रथा:-
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे। उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की- हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है? जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले- हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है। इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात को,जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है। उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
काली माँ की यात्रा निकालना:-
क्योकि काल और अंधकार और दुष्टता को नष्ट करने की देवी काली ने इसी दिन राक्षसों का विनाश किया था।यो जितने भी प्रकार के दुष्टता के भाव से किये गए तंत्र मंत्र यंत्रों से रक्षा को लोग माँ काली की शोभा यात्रा अपने अपने क्षेत्रों व् मन्दिरों में व् घर पर उन्हें बैठते और सत्कार करते है।और रक्षा का आशीर्वाद लेते है।
जैन धर्म की धनतेरस की कथा:-
जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यो भक्तों इस दिन अपने गुरु मंत्र का अत्यधिक जप और यज्ञ करते हुए,उसके बाद मेवा डली खीर का प्रसाद गुरु व् देव देवी को भोग लगाकर परिवार आदि में बाँटना चाहिए।
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः