अपने सम्बोधन में भागवत ने कहा कि “हिन्दू हजारों साल से प्रताड़ित होते रहे हैं, उन्हें अब एकजुट होने की जरुरत है । अन्यथा, हजारों जंगली कुत्ते मिल कर जंगल के राजा शेर को भी परास्त कर देते हैैं!”
उनके सम्बोधन से ये तो साफ था कि शेर से उनका आशय हिन्दू से था। अब सवाल ये कि जंगली कुत्तों से उनका आशय क्या था? क्या उन्होँने ‘जंगली कुत्ता ‘ सम्बोधन विपक्ष के लिए किया?या फिर,अल्पसंख्यक समुदाय के लिए?आपत्तिजनक दोनों ही अवस्था है।कांग्रेस ने तो तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए साफ- साफ कह दिया कि भागवत ने “कुत्ता “शब्द का प्रयोग विपक्षी दलों के लिए किया है ।
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अगर ये सही है तो घोर आपत्तिजनक है। मोहन भागवत जैसे शिष्ट-सभ्य व्यक्ति के मुख से “कुत्ता “शब्द का निकलना उनके घोर समर्थकों के लिए भी विस्मयकारी है ।देश में चुनावी माहौल के बीच भागवत का ये बयान दुर्भाग्यपूर्ण है ।राजनीति का स्तर दिनों- दिन पतन की ओर बढ़ रहा है,ये तो देश देख रहा है,लेकिन “कुत्ते “तक?वह भी ब-रास्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ?भारतीय संस्कृति के रक्षार्थ संकल्पित संघ?संस्कृति-शुचिता के प्रतीक मोहन भागवत? दु:खद,अत्यंत ही दु:खद !
चूंकि,संघ-प्रमुख कोई भी शब्द निरर्थक नहीं बोलते, कयास लगाये जा रहे हैं कि कहीं भागवत ने किसी विशेष ‘अभीष्ट ‘को साधने हेतु ,जानबूझकर तो इसका इस्तेमाल नहीं किया?इस पार्श्व में राजनीतिक समीक्षक 2015में बिहार विधान सभा चुनाव के समय भागवत के उस बयान की याद कर रहे हैं जिसमें उन्होंने पिछ्ड़ों के आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी और जिसका विपक्ष ने अपने पक्ष में सफल इस्तेमाल किया था।भाजपा को तब बिहार में मुँह की खानी पड़ी थी।मालूम हो कि तब प्रधानमंत्री मोदी ने भागवत के बयान के विपरीत आरक्षण की समीक्षा से इनकार कर दिया था ।
हाल के दिनॉ में मिल रहे संकेत भाजपा-गृह में “अशांति-मतभेद ” की चुगली कर रहे हैं। ऐसे में मोहन भागवत के मुंह से निकला “कुत्ता” तो भौंकेगा ही!!
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वरिष्ठ पत्रकार श्री एस.एन विनोद की फेसबुक वॉल से