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किन वजहों से नवग्रह होते हैं नाराज? किन वजहों से नवग्रह अप्रसन्न हो डालते हैं कुदृष्टि? बता रहे हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

 

 

 

हम अक्सर अपनी बहुत सी परेशानियों को लेकर ज्योतिषियों के पास जाते हैं और वहाँ जाकर हम जब अपनी समस्या को उनके समक्ष रखते हैं तो लगभग 75% ज्योतिषी कालसर्प, शनिदोष या नवग्रह दोष बताते हैं। लेकिन ये सब दोष किन कारणों से लगते हैं शायद ही कोई बताता हो?

 

 

ज्योतिषी उपाय बताने या उनसे निजात दिलाने का वायदा भले करते हों लेकिन कारणों पर चुप्पी साध लेते हैं जो असल में हम खुद वजह होते हैं।
आज श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज उन्हीं वजहों को बता रहे हैं जिन कारणों से हमारे ऊपर नवग्रह क्रोधित होते हैं या उनके दोष हमें लगते हैं। अगर हम स्वामी जी के द्वारा कही इन बातों को मानेंगे तो यकीन मानिए आपके समस्त दोष दूर हो जाएंगे।

 

 

आपके किस प्रकार के कार्यों से क्रोधित हो कर अशुभ फल देते हैं,9 ग्रह:-

 

सूर्य:-सूर्य ग्रह का संबंध आत्मा से होता है। यदि आपकी आत्मा पवित्र है और आप किसी का अहित करके उसे किसी भी प्रकार कि पीड़ा वाला कार्य नहीं करते हैं। तो सूर्यदेव आपसे सदा प्रसन्न रहेंगे।क्योकि आपकी आत्मा प्रसन्न तो सब इच्छाएं और कर्म प्रसन्न और शुभ लाभ मिलेगा लेकिन किसी को पीड़ा देकर दिल दुखाने, किसी भी प्रकार का सरकारी टैक्स चोरी करने,या ठगी से दूसरे को धन तन दुःख देना एवं किसी भी जीव,पेड़ पौधों की हानि करने से उनमें बसी आत्मा को ठेस पहुंचाने पर सूर्य अशुभ फल देता है। कुंडली में सूर्य चाहे जितनी मजबूत स्थिति में हो, यदि ऐसा कोई भी कार्य किया है, तो वह अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाता। सूर्य की विपरीतता के कारण व्यक्ति की पद,परिवार और मान-प्रतिष्ठा में कमी आती है,सरकार से दंड और समाज में अपमान के साथ,उसे पिता की संपत्ति से बेदखल होना पड़ता है।पुत्र और मित्र सदा धोखा देते है या उनसे कष्ट मिलता है।

चंद्र:- परिवार की स्त्री मां,बुआ,मोसी, नानी, दादी, सास एवं इनके समान पद वाली स्त्रियों को कष्ट देने से चंद्र का बुरा प्रभाव प्राप्त होता है। किसी भी प्रकार के द्वेषपूर्वक प्रयास से ली गई वस्तु के कारण चंद्रमा अशुभ फल देता है। चंद्रमा अशुभ हो तो, व्यक्ति सदा किसी भी कारण से उत्पन्न मानसिक रूप से परेशान रहता है। उसके कार्यों में रुकावट आने लगती है और तरक्की रूक जाती है। जलघात और फुड़पोइजन,दवाई रिएक्शन करने की आशंका बढ़ जाती है। यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रोगी होकर आत्महत्या भी कर सकता है।पुत्री की अधिकता और उसकी और से सदा दुखद समाचार मिलते है।

मंगल:- मंगल का संबंध अपने पराक्रम और भाई-बंधुओं और राजकाज तथा वाहन और युद्ध में विजय आदि स्थिति से होता है। भाई से झगड़ा करने, भाई के साथ द्धेष करते हुए उसे प्रत्यक्ष या गुप्त धोखा करने से मंगल अशुभ फल देता है। अपनी पत्नी के भाई यानि साले का अनावश्यक अपमान करने पर भी मंगल अशुभ फल देता है। मंगल की विपरीतता के कारण व्यक्ति जीवन में कभी स्वयं की भूमि, भवन, संपत्ति नहीं बना पाता।किराये पर ही अनेको मकान बदलता हुआ जीवन काटता है और जो संपत्ति संचय की होती है, वह भी धीरे-धीरे उसके हाथ से खर्च होकर निकलने लगती है।जरा सी बात बतंगड़ बनकर मुकदमे में बदल जेल तक करा देती है।झगड़े में अपने ही चोट ज्यादा लगती है।अग्नि कांड घटित होते है।सावधानी से चलने ओर चलाने पर भी वाहन से गम्भीर चोट लगती है।और जरा सा रोग ऑपरेशन तक दे देता है।ये मंगल का शाप।

बुध:-अपनी विपरीत लिंगी मित्र और बहन, बेटी और बुआ को अनावश्यक बात पर प्रताड़न और गन्दी अपशब्द कमेंट भाषा बोलकर कष्ट देने, साली एवं मौसी को दुखी करने से बुध अशुभ फल देता है।विशेषकर किसी किन्नर को उसकी जायज मांग होने पर भी उसे सताने से भी बुध नाराज हो जाता है।क्योकि बुध नपुंसक ग्रह यानि ब्रह्मचारी ग्रह है,यो इसके काल में आपका प्रेम भंग होगा और जिससे प्रेम करते है,उससे कभी विवाह नहीं होगा,यो अशुभ फल मिलने लगता है। बुध की अशुभता के कारण व्यक्ति का बौद्धिक,वैचारिक,भाषा का विकास रूक जाता है। शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए अशुभ बुध उनकी शैक्षिक कार्य अध्यापन में मुकदमें,अध्यापकों से विवाद और पढ़ाई में विध्न,नम्बर कम,परीक्षा का छूट जाना,गन्दी संगत के मित्र मिलने से विद्यालय नहीं जाना और ब्रह्मचर्य का बार बार खण्डित होना आदि विकट स्थितियां पैदा कर सकता है।बुध गुप्त सम्बन्ध बनाता और उसमें सफलता देता है और खराब बुध ये सभी सम्बंधों से बदनामी भी देता है।

गुरु:-अपने पितरो, पिता,ताऊ, दादा, नाना को कष्ट देने अथवा इनके समान ही अपने खानदान के सम्मानित व्यक्ति को कष्ट देने एवं साधु संतों या ज्योतिषियों,पण्डित को अनावश्यक कुतर्क करके उनकी उपयुक्त दक्षिणा न देने आदि के कर्मों को करके सताने से गुरु अशुभ फल देने लगता है।यो व्यक्ति के जीवन में उसे सरकारी सर्विस नहीं मिलना या उसमें मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा की व्रद्धि नहीं होना,प्राइवेट जॉब में संघर्ष ही करते रहने का कारक ग्रह बृहस्पति के रुष्ट जाने से जीवन अंधकारमय होकर दुखद होने लगता है। व्यक्ति को लिवर,या लिवर के केंसर,पीलिया,डायबटीज आदि गंभीर बीमारियां घेरने लगती है और उसका सुखद जीवन पल-प्रतिपल कष्टकारी होने लगता है।किये गए कार्य या दिए गए धन में,निरन्तर धोखे से धन हानि होने लगती है और उसका अधिकांश पैसा रोग में या किसी को देकर उससे नहीं मिलने या फसने में लगने लगता है।धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान और उसमें पूर्णता और सिद्धि नहीं मिलती है।नीच कर्मो की विद्या में समय बरबाद होता है।

शुक्र:- अपने जीवनसाथी को और प्रेम में रहते हुए भी और किसी से प्रेम करते रहने से उसे पता चलने के कष्ट देने,और माफ़ी मांग कर भी और क्षमा करने पर भी वही गलती करने से प्रेम भंग योग मिलता है और किसी भी प्रकार के आलस्य के चलते अधिक समय तक गंदे वस्त्र पहने रहने से, घर में गंदे एवं फटे पुराने वस्त्र रखने और उसका दान नहीं करने से शुक्र अशुभ फल देता है। चूंकि शुक्र भोग-विलास का कारक ग्रह है। अतः शुक्र के अशुभ फलों के परिणामस्वरूप व्यक्ति लगातार विश्वासी लोगो के द्धारा ही ठगे जाने और घर में जीवनसाथी के बचत नहीं करने आदि करणों से गरीबी का सामना करता है। जीवन के समस्त भोग-विलास,एश्वर्य के साधन,ऐसे करणो से बिकते हुए, उससे दूर होने लगते हैं।स्त्री पक्ष यानि लक्ष्मी रूठ जाती है। वैवाहिक जीवन में स्थिति विवाह विच्छेद यानि तलाक तक पहुंच जाती है। शुक्र की अशुभता के कारण व्यक्ति अपने से निम्न कुल या स्तर की स्त्रियों या स्त्री ऐसे स्तरहीन पुरुषों के साथ गुप्त संबंध बनाकर धन और समय नष्ट करता परिजनों और समाज में अपमानित होता है।गुप्त रोग बढ़ते है।काम शक्ति समाप्त हो जाती है।

शनि:-वृद्ध परिजन,ताऊ एवं चाचा से अनावश्यक झगड़ा करने एवं किसी भी महनत करके कार्य करने वाले अपने नोकर या अपने यहाँ कार्य को आये मजदूर व्यक्ति को उसका सही पैसा या लाभ आदि नहीं देने के कष्ट देने,उन्हें जरा जरा सी बातों में अपशब्द कहने एवं इसी के साथ नीच लोगों के साथ पवित्र पर्व या घर में धार्मिक समारोह होने पर भी शराब,भांग पीने, मांस खाने से शनि देव तुरंत अशुभ फल देते हैं। कुछ लोग मकान एवं दुकान किराये से लेने के बाद उसे मकानमालिक के अनुरोध पर भी खाली नहीं करते अथवा उसके बदले पैसा मांगते हैं और उससे अनावश्यक विवाद करते है, तो शनि अशुभ फल देने लगता है।राजनीती में अपने विकास को लोगो की हत्या करना,झूठे मुकदमें करना,अपने से नीचे पदस्थ लोगों के प्रमोशन को रोकना आदि करने से, शनि के अशुभ फल के कारण व्यक्ति दीर्घकालीन मुकदमों से,जेल जाकर जमानत,और असाध्य और लम्बे चलने वाले रोगों से घिर जाता है। उसकी पैत्रक हो या अपनी कमाई संपत्ति अनेक धोखों से छिन जाती है। और वह अन्य वाहन या किसी जीव के वाहन के आगे से गुजर जाने आदि के कारण लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने लगता है।राजा से रंक बन जाता है।

राहु:-अनावश्यक ही सर्प की हत्या या उसे या कुत्तों को सताने,मारने से और बड़े भाई का अपमान करने से,विशेषकर अपने पितरों का अपमान करने से,ऐसी ही सम्मानीय समाधि की या पीर की मजार आदि की और थूकने या उधर पेशाब करने,श्मशान में जलती चिता की गलत साधना या वहाँ बैठकर चुगली करने और वहां के देवता देवी पर बिन गुरु के बताये,खून चढ़ाना आदि कर्मों से राहु अशुभ फल देता है। किसी मूढ़ या मंदबुद्धि व्यक्ति या मूक प्राणी, जानवर, पंछियों की हत्या करने से राहु का अशुभ परिणाम प्राप्त होता है। इससे व्यक्ति पर कोई ऐसा और अचानक कलंकित दोष लगता है की- उसे बिना मुकदमें के चले लम्बे कारावास की सजा तक भोगना पड़ती है। ऐसा व्यक्ति जीवन में सदा परिवर्तनशील और घुमकडू बनकर इधर से उधर स्थान और कार्य बदलता और घाटा खाता हुआ, कभी स्थायी और सुखद नहीं हो पाता।मंत्रों को तोड़मरोड़ कर पढ़ना और उन्हें किसी पुस्तक से लेकर,गुरु होते हुए भी, बिना गुरु आज्ञा लिए जपना,ग्रहण में या राहुकाल में गलत कार्य या नवीन घर आदि में प्रवेश करना,खुले में यज्ञ और श्मशान क्रिया और उसके मंत्रों को या तांत्रिक अनुष्ठानों को घर में करने आदि के दोषों से व्यक्ति को सभी अचानक होने वाली दुर्घटनाओं का और प्रेत स्वप्न आदि का सामना करना पड़ता है।

केतु:-ननसाल के बड़े लोग और भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका अधिकार छीनने पर केतु अशुभ फल देना है।लाल कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोड़ने और उसके पीछे जाकर पेशाब करना या पवित्र स्थान की ध्वजा और पोस्टर को नष्ट करने पर, इसी के साथ उसके उचित फल देने में भी ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी जाने हो या विशेषकर अनजाने और विदेशी व्यक्ति से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं।

विशेष:– इन में से जो ग्रह अनुसार आपको समस्या हो,तो इसके सम्बन्ध में रत्न पहना भी लाभ नहीं देता है,जबतक की अपना व्यवहार नहीं सुधार लो,पहले अपने किये कर्म की माफ़ी ईश्वर और उस व्यक्ति से मांगो और तब पण्डित या ज्ञानी या गुरु से इसका सही निदान पूछकर उनके अनुसार ही पूजापाठ या कर्मकांड करके ही उस ग्रह का सही और शुभ लाभ पाया जा सकता है।

नियमित करो सेवा
और नियमित करो दान।
सदा गुरु मंत्र अन्तः जपो
तब शुभ कर्म बढ़ हो कल्याण।।

 

 

इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”

अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611

ज्ञान लाभ के लिए श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के यूटीयूब

https://www.youtube.com/channel/UCOKliI3Eh_7RF1LPpzg7ghA से तुरंत जुड़े

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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः

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