स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज आज स्त्रियों के कुण्डलिनी जागरण की पूर्ण व्याख्या कर रहे हैं।
स्वामी जी के दिये इस परम ज्ञान से आप स्त्रिय शक्ति के बारे में जान सकते हैं। तथा साथ यहां आपको जीवन के मूलाधार के बारे में जानने की इक्षा भी पूरी होगी
विश्व धर्म इतिहास में पहली बार सत्यास्मि धर्म ग्रंथ से प्रकट किया गया-स्त्री की कण्डलिनी बीज मंत्र और उनके चित्र और जागरण महाज्ञान-
स्त्री के 5 बीज मंत्र-भं-गं-सं-चं-मं..बीज मंत्रो का किस प्रकार से जप करे।जिससे स्त्री की कुण्डलिनी जाग्रत हो..
या पुरुष के 5 बीजमंत्र-लं-वं-रं-यं-हं..कैसे जप करें?
या केवल “सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा” के जप से ही स्त्री और पुरुष की कुण्डलिनी जाग्रत हो जायेगी..:-
[भाग-4]
वेसे तो ये 5 बीजमंत्र स्त्री के हो या 5 बीजमंत्र पुरुष के हो, ये केवल स्त्री के स्वरूप के अर्थ मात्र है और पुरुष के स्वरूप के अर्थ मात्र है। ये केवल सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा के जाप करने मात्र से दोनों यानि स्त्री और पुरुष की सच्ची कुण्डलिनी जाग्रत हो जायेगी।और ये 5 स्त्री के और 5 पुरुष के बीज मन्त्रों के दर्शन उसकी कुण्डलनी जागरण के बीच ईं कुंडलीनी के मार्ग में जो चक्र है,उनमें समयानुसार दर्शन होंगे।यो केवल ये सिद्धासिद्ध महामंत्र ही जप करे।
स्त्री की कुंडलीनी के बीज मंत्र और चित्र दर्शन:-
*-मूलाधार चक्र:–का चित्र-~()~ यानि मध्यम प्रकाशित पूर्णिमा जैसा चंदमा और उसके दोनों और दो श्वेत पत्तियां – बीज मंत्र है-भं- अर्थ है-भग या योनि-भूमि तत्व।
*-स्वाधिष्ठान चक्र:-हरित पृथ्वी पर बैठी हरे रंग की साड़ी पहने सांवले रंग की स्त्री-बीज मन्त्र है-गं-अर्थ है-गर्भ-भ्रूण-ग्रीष्म-अग्नि।
*-नाभि चक्र:– ये भी हरित प्रकाशित पृथ्वी पर अर्द्ध लेटी हुयी सांवले रंग की स्त्री में ही संयुक्त है-बीज मंत्र है-सं-अर्थ है-सृष्टि-सत्-जल।
*-ह्रदय चक्र-गुलाबी रंग से प्रकाशित पृथ्वी पर गुलाबी रंग की साड़ी पहने अर्द्ध तिरछी लेटी हुयी गौरवर्ण वाली स्त्री-बीज मंत्र है-चं- अर्थ है-चरम-चन्द्रमाँ-मन-वायु।
*-कंठ चक्र-ये गुलाबी रंग वाली पृथ्वी और स्त्री के ही अधीन है-बीज मंत्र है-मं- अर्थ है-मम् यानि स्वयं-ज्ञानी मैं-माँ-महः तत्व-आकाश।
*-आज्ञा चक्र-यहाँ केवल स्निग्धता लिए दुधिया रंग का प्रकाशित चन्द्र की पूर्णिमा से चारों और अनन्त में बरसता हुआ अद्धभुत प्रकाश-बीज मंत्र है-गुंजयमान ॐ –अं+उं+मं=बिंदु से अनन्त होता सिंधु जैसा चपटा चक्र।निराकार।
*-सहस्त्रार चक्र-केवल स्त्री का स्वयं आत्म स्वरूप साकार जो प्रकाशित चन्द्र का पूर्णिमा प्रकाश से दैदीप्यमान होकर अनन्त से अनन्त तक शाश्वत बनकर आलोकित है।
और पुरुषवादी ये 5 बीज मंत्र का अर्थ इस प्रकार से है,जो आज तक किसी भी धर्म ग्रंथ में नहीं दिया गया है आओ जाने:-
1-लं – पुरुष लिंग का संछिप्त अर्थ रूप।
2-वं – पुरुष वीर्य का संछिप्त अर्थ रूप।
3-रं – रमण यानि पुरुष में व्याप्त विकर्षण शक्ति(-) का संछिप्त अर्थ रूप है।यानि स्त्री में जो आकर्षण शक्ति(+) है, उससे मिलकर जो क्रिया योग को सम्पन्न होता है,वह रमण है।
4-यं – यानि पुरुष योनि यानि लिंगभेद अर्थ का संछिप्त रूप है-की ये आत्मा पुरुष योनि में जन्मी है।
5- हं – हम् यानि पुरुष की स्वरूप की उपस्तिथि का संछिप्त अर्थ रूप है।
समझ आया की ये 5 बीज मंत्र केवल पुरुष और उसकी शक्ति को ही दर्शाते और प्रकट करते है।
बाकी 7 चक्र-मूलाधार चक्र से सहत्रार चक्र तक का अर्थ दोनों के लिए लगभग समान ही है।यानि मूलाधार का अर्थ है-स्त्री हो या पुरुष इन दोनों का मुलेन्द्रिय स्थान अर्थ है।यही और भी मानो।
और अब जाने कैसे केवल सिद्धासिद्ध महामंत्र “सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा” से ही स्त्री हो या पुरुष उसकी सम्पूर्ण कुण्डलिनी जाग्रत हो जायेगी और स्त्री के अंदर के 5 बीज और पुरुष के अंदर के 5 बीज मंत्र तथा और भी अनगिनत अलौकिक दर्शन और अंत में आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होगी:-
“सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा:-
1-सत्य-सं+तं+यं में सं पुरुष बीज Y है और तं पुरुष में सहयोगी स्त्री बीज X है और मं- अर्द्ध स्त्री बीज 1/2 x है।
∆
2-ॐ में-अं+उं+मं, में- अं मूल स्त्री बीज X है और उं स्त्री बीज X2 है,जो एक प्रकार से सहयोगी पुरुष बीज है और ‘मं’ अर्द्ध पुरुष-1/2-y बीज है।
सिद्धायै:- में 7 बीज है,जो सत्य पुरुष और ॐ स्त्री के दोनों बीजों के मिलन से बने है और ये ही स्त्री हो ता पुरुष उन दोनों की कुण्डलिनी अपने अपने लिंग में यानि स्त्री के शरीर में स्त्री की और पुरुष के शरीर में पुरुष की कुण्डलिनी एक समान रूप से जाग्रत करेंगे।क्योकि सिद्धायै का अर्थ है-सम्पूर्णता..यो ये दोनों की कुण्डलिनी के 7 चक्रों के बीज है।
-1-सं-2-इं-3-दं-4-धं-5-आं-6-यं-7-ऐं…
-सं मूलाधार चक्र है और इस चक्र का पुरुष+स्त्री का संयुक्त बीज सं है।
इस मूलाधार चक्र में पुरुष के सं बीज और स्त्री के अं बीज के मिश्रण से बने सं बीज से कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है।
-इं-स्वाधिष्ठान चक्र का अधिष्ठाता बीज मंत्र है और इं के रूप में पुरुष बीज तं और स्त्री बीज उं के मिश्रित योग इं बीज से स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत होता है।
-दं-नाभि चक्र का अधिष्ठाता और अर्द्ध पुरुष यं यानि 1/2-x और अर्द्ध स्त्री के बीज मं यानि 1/2-y के मिश्रित योग से संयुक्त रूप का बीज मंत्र-दं है।यो इसके जागरण से नाभि चक्र जाग्रत होता है।
मूलाधार चक्र से नाभि चक्र तक क्रिया चक्र है और नाभि चक्र के बाद के सभी चक्र प्रतिक्रिया चक्र है।
-धं-ह्रदय चकत का अधिष्ठाता है और पुरुष और स्त्री का संयुक्त एक बीज मंत्र है।और इसके जागरण से ह्रदय चक्र जाग्रत होता है।
-आं- कंठ चक्र का अधिष्ठाता है और पुरुष और स्त्री के बीज का एक रूप बीज है,यो इसके जागरण से कंठ चक्र जाग्रत होता है।
-यं-आज्ञा चक्र का अधिष्ठाता है और ये पुरुष और स्त्री के सूक्ष्म बीज का सूक्ष्म बीज रूप है।यो ये मूलाधार चक्र के विपरीत उर्ध्व योनि चक्र है।क्योकि मूलाधार में जो पुरुष और स्त्री के दो त्रिकोण यानि पुरुष त्रिकोण ऊपर को मुख किये होता है और स्त्री का त्रिकोण नीचे को मुख किये होता है।यो ये दोनों मिलकर षट्कोण यानि छः कोने वाला कोण बनाते है।और इसी षट्कोण का प्रतिक्रिया स्वरूप आज्ञाचक्र में ये एक रूप दिव्य आँख के रूप में योनि कोण बनता है।इसी में से योगी को अनन्त ब्रह्मण्डों का प्रसव और सृष्टि और प्रलय होता दीखता है।
-ऐं-ये बीज मंत्र सहस्त्रार चक्र का अधिष्ठाता है।और इसी के जाग्रत होने से सहस्त्रार चक्र में पुरुष और स्त्री के युगल दर्शन होते है।
4-नमः-में 3 बीज मंत्र है।
1-नं-2-मं-3-हं..
ये तीन तत्वों यानि नीचे से चले आ रहे पुरुष और स्त्री और उनका एकल बीज का जो ये सिद्धायै रूप में 7 बीजों का सात चक्रों के रूप में ईं कुंडलिनी मार्ग से होता हुआ जो बंटाव था,वो अब यहां सहस्त्रार चक्र में आकर यानि ऐं बीज के रूप में अंत में फिर से अपने मूल स्वरूप में प्रकट होता है।तब फिर से पहले बीज नमः बनता है,यो इस नमः में ये तीन तत्व-नं+मं+हं यानि यहाँ-नं बीज का अर्थ है-नाओहम अर्थात मैं नहीं हूँ..ये पीछे चले आ रहे स्त्री और पुरुष के अपने अपने लिंग को भूल कर प्रेम में दो से यानि द्धैत से एक हो जाने की स्थिति यानि अद्धैत का अर्थ देने वाला अलिंग बीज है और मं स्त्री की स्वयं की उपस्थिति का की-मैं हूँ..का देता जाग्रत अवस्था का बीज अर्थ है और “हं- यानि हम् ये पुरुष की स्वयं के उपस्थिति का की-मैं हूँ…यो तीनों मिलकर नमः रूपी एक बीज है।जिसमें नाओहम यानि पहली अवस्था की स्त्री का मैं और पुरुष का मैं यानि हम नहीं है और इससे आगे की स्थिति इसी नमः बीज में बन रही है- दूसरे मं में स्त्री और हं में पुरुष की फिर से जागने की स्थिति बनती
तब ये नमः जो त्रिबीज का एक रूप है, इसमें नीचे से चली आ रही कुण्डलिनी शक्ति ऊर्जा का चरम गति होती है,यहाँ ये ऊर्जा समाप्त या विलय नहीं होती है बल्कि वो अपने चरम पर इस बीज को पुनः जाग्रत करती है।तब..नमः बीज से पुरुष और स्त्री का साकार रूप प्रकट होने की और एक प्रक्रिया में चलने लगता है।यानि दोनों अब फिर से अपने अपने रूप में प्रकट होने जा रहे है।
5- ईं-बीज, बीज मंत्र नहीं है, बल्कि पुरुष और स्त्री की संयुक्त बीज से उत्पन्न हुयी एकल शक्ति का मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र तक एक ऊर्जा शक्ति पथ यानि मार्ग है,और साथ ही ये ईं एक पुरुष और स्त्री की संयुक्त जाग्रत होती और उथित होती कुण्डलनी शक्ति का नाँद भी और घोष भी है। ई…..म्..
जिसे सुषम्ना नाड़ी या कुण्डलिनी मार्ग भी कहते है।ये ईं अक्षर रूप में सम्पूर्ण कुण्डलिनी के चित्र को अपने रूप से प्रकट करता है,जब आप इस ईं का चित्र देखेंगे।तब आपको पता चलेगा की आज तक ऐसा सम्पूर्ण चित्र जो 7 चक्रों को अपने में प्रदर्शित करता और सम्पूर्ण कुण्डलिनी की पूरी जानकारी ज्ञान देता है, पुरे विश्व के धर्म इतिहास में आज तक कहीं नहीं मिलेगा।ये पहली बार प्रकट किया जा रहा है।
ईं से ईश्वर और उसकी शक्ति का पूरा पूरा बोध होता है।
यही विश्व कुण्डलिनी है।जो अभी तक प्रकट नहीं हुयी है।
क्योकि अभी तक धर्म इतिहास में केवल पुरुष की कुण्डलिनी ही जाग्रत हुयी है और स्त्री की कुण्डलिनी जाग्रत नहीं हुयी है,यो एक सबल है और एक निर्बल है।तब कैसे इस संसार में शक्ति का सन्तुलन हो?? यो इस महामंत्र से ये ईं कुण्डलिनी का मार्ग इस संसार में प्रकट हो रहा है,यो इसका आसरा लो और सच्ची कुण्डलिनी जागर्ति की और बढ़ो और मुक्त हो जाओ।
6-फट् का वेसे अर्थ है-फटना यानि प्रस्फुटित होना।और क्या प्रस्फुटित या फटेगा?
यो ये नमः में व्याप्त तीन बीज का फिर से अपने अपने स्त्री और पुरुष और दोनों का एक युगल प्रेम बीज मूल स्वरूप में प्रकट होते है,जेसे प्रकर्ति में सभी बीज अंत में फटते हुए, जो उनमें नीचे के बीज का फल था,उसे ऊपर प्रकट करता है,यही यहां फट् अर्थ है।और फट् में भी त्रिअवस्था है-1-फ-2-ट-3-ट् यहाँ फ से पहला फटने का स्फुरण है,यानि स्त्री और पुरुष का ना ओहम् यानि मैं नहीं हूँ..की अवस्था से जागर्ति होना अर्थ है और ट दूसरा फटने की अवस्था का स्फुरण है यानि स्त्री और पुरुष अपने अपने मूल रूप में साकार बनकर प्रकट हो रहे है और ट् में हलंत लगे होने से ये फटने की अंतिम अवस्था के उपरांत भी अपने अंदर जो भी है,उसे पूरी तरहां से बाहर फेंकने की अवस्था का नाम और अर्थ है।यानि यहाँ स्त्री और पुरुष और उनका संयुक्त एक प्रेम बीज फिर से साकार रूप में बाहर प्रकट हो गया है।
यानि यही फट् नामक वो अवस्था है,जो वेदों में शून्य में शब्द होकर विस्फोट हुआ लिखा है।यो फट् के समय ही वो ब्रह्म शब्द हुआ की-एकोहम् बहुस्याम..यानि हम एक से अनेक हो जाये।
“स्त्रियों का कुण्डलिनी जागरण (भाग 3), सत्यास्मि धर्मग्रन्थ में सम्पूर्ण जीवन की व्याख्या : श्री सत्यसहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज”
लेख को ध्यान से पढ़े,तो सारा ज्ञान समझ आएगा।
7-स्वाहा– का सामान्य अर्थ है-विस्तार होना यानि जेसे-एक सूखी मिर्च को खा लो,तो वो एक व्यक्ति को मिर्ची की धसक देगी और जब उसे आग में डाल दो, तो वो दूर तक अपना गुण फेला देती है।
यो स्वाहा में 5 अवस्था है-1-स-2-व्-3-आ-4-ह-5-आ..
ये नीचे से चले आ रहे सत्य पुरुष के त्रिगुण बीज और ॐ स्त्री के त्रिगुण बीज के सिद्धायै के 7 बीजों में रूपांतरित होकर कुण्डलिनी जागरण पथ ईं जो अंत तक रहता है।उसके माध्यम से फिर से नमः में तीनों तत्व अपने मूल बीज में आते हुए प्रकट होते है और फट् से तीनों तत्व अपने साकार रूप ने प्रत्यक्ष होते है और स्वाहा से वे तीनों तत्व अपना विश्वव्यापी विस्तार करते है,जिसे हम विश्व की समस्त जीवों जन्तुओं और जड़ से चैतन्य सृष्टि कहते है।
यो इस सिद्धासिद्ध महामंत्र के इस रूप की व्याख्या सेआपको समझ आ गया होगा की-कैसे पुरुष और स्त्री और बीज एक बनते हुए शक्ति बनते है और शक्ति से फिर से प्रकट होते है और फिर से संसार बनाते और बनते है।यो सृष्टि-प्रलय और फिर से सृष्टि..यही शाश्वत विश्व है और सनातन धर्म है।
कुण्डलिनी जागरण (भाग 2) क्या है “रेहि क्रिया योग”? इसको जानें और ईश्वरत्त्व को प्राप्त करें : श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज
स्त्रियों का कुण्डलिनी जागरण (भाग-1) और बीज मंत्र, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी माहारज द्वारा स्त्रियों के लिए “सत्यास्मि धर्म ग्रंथ” एक अपूर्व भेंट
“सत्य ॐ सिद्धायै नमःईं फट् स्वाहा” से पुरुष और स्त्री दोनों की सच्ची कुण्डलिनी जाग्रत होगी।
-शेष ज्ञान आगामी लेख भाग 5 में बताया जायेगा।
“श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज
“जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः”