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आने वाली है पूर्णिमासी, होंगे सारे कार्य सिद्ध, सत्यास्मि धर्म ग्रंथ का पाठ और माँ पूर्णिमा देवी की पूजा, खुशियों से भर देंगीं आपके घर जाने कैसे ? बता रहे हैं स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

 

 

 

पूर्णिमासी यानि माता पूर्णिमा देवी का दिन। पूर्णिमासी के दिन सत्यास्मि धर्म ग्रंथ का पाठ और माता पूर्णिमा की पूजा लाभ ही नहीं देती बल्कि सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं।

 

 

श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के मुताबिक पूर्णिमासी का दिन बेहद खास होता है। स्वामी जी के मुताबिक अगर कोई भी भक्त माँ पूर्णिमा की आराधना करता है और सत्यास्मि धर्म ग्रंथ का पाठ करता है। ऐसे इंसान का जीवन खुशहाल बन जाता है और उसकी सारी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।
माँ पूर्णिमा देवी के चमत्कारों की एक लंबी लिस्ट है। हर भक्त के अपने-अपने अनुभव हैं।

श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के मुताबिक पुराणों में भी माता पूर्णिमा देवी की पूजा के साक्ष्य मिलते हैं। स्वामी जी के अनुसार महाभारत में श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी पूर्णिमासी के दिन माँ पूर्णिमा देवी की उपासना की थी जिससे खुश होकर माँ पूर्णिमा ने अर्जुन को वरदान दिए थे।

 

 

“पूर्णिमासी के दिन पूजापाठ और गंगा स्नान का विशेष महत्त्व है। इस दिन माँ पूर्णिमा देवी की पूजा का विशेष फल प्रदान होता है।”

 

 

 

 

पूर्णिमासी पर पूजा का विशेष महत्त्व : –

 

“आने वाली है पूर्णिमासी हो जाओ तैयार.. सिद्ध होंगी मनोकामना होगा मनचाहा चमत्कार..”

!! जिस घर में हो बीसा !!
!! वहाँ कारज सिद्ध करें जगदीशा !!

ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे बीसा यन्त्र नहीं सिद्ध कर सकता।यानि जब आपको लगे की-अब सब उपाय विफल हो गए और निराशा घर कर जाये,तब ये बीसा की शरण ले और चमत्कार देखें की-अरे कैसे हो गया-मेरा मनवांछित काम..
आओ भारत की सबसे प्राचीन यन्त्र विद्या-“बीसा विद्या”- के विषय में आज आपको कुछ संछिप्त ज्ञान देता हूँ-जो अपने न सुना होगा न पढ़ा होगा और न किया और जाना होगा…

जब भारत में अंक विद्या का अविष्कार हुआ, तब ये अंक विद्या के यन्त्र का बीस प्रकार से अविष्कार हुआ,यो ये अंक यंत्र विद्या या बीसा यन्त्र विद्या भी कही जाती है।
तब प्रत्येक एक से लेकर 31 अंकों को शून्य से लेकर चारों कोनो और उनके त्रिगुण योग 12 खानों में,जैसा की-अपने जन्मकुंडली में 12 खाने देखे होंगें,जो की मनुष्य यानि-1- स्त्री-2-पुरुष-3-प्रेम बीज और उनके 4 फल-1-अर्थ-2-काम-3-धर्म-4-मोक्ष=12 जीवन के शुभ फलों की प्राप्ति की जा सके।तब इस योग के पहनने से मनुष्य के शरीर में जो चक्र है,वे सन्तुलित होकर विश्व ऊर्जा यानि बाहर जो ऊर्जा है और अंतर यानि आत्मा की ऊर्जा है,उसके योग से जो मनुष्य चाहता है,उसे प्राप्त कराने में पूरी साहयता देते है।तब मनुष्य जो भोग और योग की साधना करता है,उसमें उसकी बाहरी और आंतरिक रक्षा कवच का काम सुरक्षा दूत बनकर करते है।ये विद्या शुक्राचार्य ने अपनी आत्म ज्ञान से प्रकट की थी।उसका यहाँ कुछ अंश मैं प्रकट कर रहा हूँ।

बीसा का अर्थ क्या है:-

हमारे शरीर में पंचतत्व है-1-पृथ्वी-2-जल-3-अग्नि-4-वायु-5-आकाश..
और ये हमारे शरीर में पाँच मुख्य चक्रों के माध्यम से प्रकट होकर कार्य करते है-1-पृथ्वी तत्व-मूलाधार चक्र में,-2-जल तत्व-स्वाधिष्ठान चक्र में,-3-अग्नि तत्व-नाभि चक्र में,-4-वायु तत्व-ह्रदय चक्र में,-5-आकाश तत्व-कंठ चक्र के माध्यम से कार्य करता है,और ये पांचों तत्व हमें संतुलित होने पर लाभ और असंतुलित होने पर हानि देता है।
यो प्रत्येक तत्व अपने चार कर्म और फलों को प्रकट करता है-1-अर्थ-2-काम-3-धर्म-4-मोक्ष..
यो 5 तत्व और 4 कर्म मिलकर बनते है-20..लाभ या हानि।
यो इस बीस कर्म और फलों को नियंत्रित करके अपने अनुकूल बनाने के लिए हमारे योगियों ने सबसे पहले बीसा यन्त्र का निर्माण किया।
इस विद्या का निर्माण शुक्राचार्य ने संजीवनि विद्या के अंतर्गत किया था,उन्होंने सबसे पहले शुक्र जो संसार में भौतिक एश्वर्य का अधिपति ग्रह है,जिसकी महादशा 20 साल चलती है,जो सभी ग्रहों की महादशा से सबसे अधिक समय अपना प्रभाव देती है,यो उसके नियंत्रण और शुभ लाभ देने को निर्माण किया-ये बीसा यन्त्र और संजीवनी विधा मंत्र,यो इसका मेल ही बीसा यन्त्र है।और ये शुक्र का अंक-6 का मध्य अंक 15 और अंतिम अंक 24 के बीच के अंक यानि 15 से निर्मित किया,यो इसे पन्द्रह बीसा यन्त्र कहते है।क्योकि पँद्रहवीं कला ही पूर्णिमासी और अमावस की सम्पूर्ण भौतिक शक्ति को इस जगत में प्रकट करती और अपना सम्पूर्ण फल देती है।क्योकि सोलहवीं कला तो आत्मसाक्षात्कारी कला है।वो ब्रह्म तत्व कला है,यो उसका उपयोग केवल साक्षी और मोक्ष दाता है।यो सर्वाधिक उपयोगी है-15 वीं कला।

बीस साल तक आपकी पांचों तत्व या मुख्य ग्रह-1-सूर्य यानि आत्मा-2-चंद्र यानि मन-3-मंगल यानि कर्म शक्ति-4-बुध यानि समस्त बुद्धि बल-5-गुरु यानि समस्त आध्यात्मिक ज्ञान और इनका चार फल-1-अर्थ-2-काम-3-धर्म-4-मोक्ष का सम्मलित फल है-भाग्य यानि शनि यो ये पांच ग्रह और छठा फल भाग्य यानि शनि मिलकर शुक्र..यो ये सातवां ग्रह या मनुष्य की सर्वसामर्थाय है-शुक्र और उसकी पाँच पांच करके चारों फलों को देती बीस साल की शुक्र की महादशा।यो ये पंद्रह संख्या से बना बीसा यन्त्र महायंत्र कहलाता है।

ये सर्व मनोकामना सिद्ध करने वाला शुक्र यन्त्र को बीसा कहते है।

 


इसे शुक्राचार्य के संजीवनी मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रां क्रीं चंडिका देव्यै शाप नाशानुग्रह कुरु कुरु स्वाहा।
यहाँ ध्यान रहे की-यहां ये चण्डिका देवी जो है-वे चार मुखों वाली ब्रह्मा के सामान चार वेदों का यानि 1-अर्थ-2-काम-3-धर्म-4-मोक्ष को देने वाली ब्रह्मयी शक्ति का नाम है।इन्हें गांव में चामण माता के नाम से अज्ञान वश जानते और पूजते है।

ये ब्रह्मा ने चार वेद प्रकट किये थे और इन चामुंडा देवी ने चार वेदों के तीन ज्ञान अर्थ को और शक्ति फल को और ज्ञान फल अर्थ को प्रकट किया था।अर्थात ये चामुंडा देवी ही महादेवी महावतार पूर्णिमाँ देवी है। शुक्राचार्य की शुक्र विद्या यानि स्त्री विद्या के विलुप्त होने से ही ये महादेवी भी पुरुषवाद के चलते देवताओं के समर्थकों ने हटा दी थी।जो आज सत्यास्मि धर्म ग्रंथ के माध्यम से पुरावतरित हुयी है। ये बीसा का मात्र एक यन्त्र दुर्गा यंत्र ही दुर्गासप्तशती में प्रकट है।जिसे निर्वाण यंत्र कहते है।
यो बीसा यन्त्र बहुत ही रहस्यमयी विद्या का यंत्र है।और उसमे सर्वाधिक रहस्यमयी और सर्वफलदाता है-पन्द्रह बीसा यंत्र।

15 का चमत्कारिक यंत्र:-

यह सर्व सामर्थ्य वरदायी और सर्वशक्तिमान यन्त्र है, जिसके और भी अनेकों उपयोग हैं,वो गुरु से ही प्राप्त किये जाते है । इसे 15 का यन्त्र इस लिए भी कहा जाता है क्योंकि इसकी हर लाइन का जोड़ 15 ही आता है । यह नवग्रह यन्त्र के रूप में सर्वत्र मान्यता रखता है, जैसे एक नम्बर सूर्य का है, दो नम्बर चन्द्र का है, तीन नम्बर गुरु का है,और चार नम्बर प्लूटो का, पांच नम्बर बुध का है,छ: नम्बर शुक्र का है, सात नम्बर राहु का है, आठ नम्बर शनि का है और नौ नम्बर मंगल का माना जाता है।इन सब ग्रहों को शुक्र के नम्बर छ: में ही स्तम्भित यानि बांध कर रखा गया है,जो योगफ़ल पन्दर का आता है, उसे अगर जोडा जाये तो एक और पांच को मिलाकर केवल छ: ही आता है, किसी भी ग्रह को शुक्र यानि समस्त एक
एश्वर्य देने का काम यह यन्त्र करता है,और केवल शुक्र ही भौतिक सुख का प्रदाता है, किसी भी संसार की वस्तु को उपलब्ध करवाने के लिये शुक्र की ही जरूरत पडती है, यो प्रेम की देवी पूर्णिमां देवी के रूप में भी इसे माना जाता है, और भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र ही लक्ष्मी का साक्षात् रूप माना जाता है।

कैसे बनाये शुक्र यानि पन्द्रह बीसा यंत्र यो उसके लिए आवश्यक सामग्री ये है :-

1) अनार के पेड़ की एक डंडी (टहनी) जिसके एक सिरे को छीलकर के कलम का आकार दे दिया जाए।
2) अष्टगंध- जो की आठ चीज़ों, लाल चन्दन, कस्तूरी, केसर,गोरोचन,सफेद चन्दन,कपूर,अगर+तगर और लाल कुमकुम का अष्ट मिश्रण है।यह अष्ट स्याही आसानी से पंसारी की दुकान में मिल जाती है।
3) भोजपत्र: ये भी आसानी से पंसारी की दूकान से मिल जाता है ।
4) गंगा जल।
5) ताम्बे या चांदी या सोने का बना हुआ ताबीज़ का खोल। ताबीज़ अनेकों आकार में आते हैं ।यो आप कोई भी आकार का अपनी पसंद का ताबीज का खोल ले सकते हैं ।

आपको यन्त्र बनाने के लिए इन सब सामग्रियों की आवश्यकता है ।

यंत्र निर्माण विधि:-

1-चुटकी भर अष्टगंध लें और इसमें गंगा जल मिला लें । इससे आपकी स्याही तैयार हो जायेगी जिससे आप यहाँ दिया हुआ यन्त्र बनायेंगे।

स्याही बनाने के बाद अनार की डंडी लीजिये और इसे स्याही में भिगोकर ऊपर दिया हुआ यन्त्र एक भोजपत्र के टुकड़े पर बनाइये । पूरा यन्त्र बना लेने के बाद इसे सूखने के लिए रख दीजिये । सूखने के बाद भोजपत्र को मोड़ कर इतना छोटा बना लीजिये की यह ताबीज़ के खोल के अन्दर पूरा आ जाए । इसे खोल के अन्दर डाल कर खोल को बंद कर दीजिये । अब यह ताबीज़ डालने के लिए तैयार है । इसे काले रंग के धागे में डालकर अपने गले में डाल लीजिये । इस यन्त्र को किसी शुभ मुहुर्त यानि पूर्णिमां के दिन ही बनाना चाहिए।और वेसे ग्रहण या होली या दीपावली पर या किसी पुष्य नक्षत्र में भी बना सकते है
2- आप अपने परिचित सुनार से जाकर किसी भी पुष्य नक्षत्र के समयकाल में जाकर या उन्हें पहले ही जाकर अपने इस यन्त्र के बनवाने के विषय में बता कर उनसे उनका कीमती समय ले ले तब ये यन्त्र की अंगूठी ताम्बे या चांदी या सामर्थ्य अनुसार सोने में बनवा ले,ये यंत्र इन धातुओं में अपनी शुभता बढ़ाता है,यो ये नहीं विचार करें की-कौन सी धातु में पहने,बस सामर्थ्य हो तो सोने में पहने अन्यथा ताम्बे और चांदी या पीतल में भी पहन सकते है और बाजार में बनी ये यन्त्र की अंगूठी उतनी प्रभावी नहीं होती है, बनवाकर ही पहने तो अतिउत्तम होगी और पूर्णिमा के दिन इसे इस विधि से सिद्ध करें:-

उसे इस अष्टगंध स्याही में एक प्लेट में डुबोकर रखें और पारद की माला से अपना शापविमोचन मंत्र का जप कम से कम 2 माला और उसके बाद अपने गुरु और इष्ट मंत्र की 20 माला जप करें या सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा। की 20 माला जप करें और उसी माला में इस यन्त्र को गले या अंगूठी को पुरुष अपने सीधे हाथ की अनामिका ऊँगली में और स्त्री उलटे हाथ की अनामिका ऊँगली में पहने।और पारद की माला को गले में पहन ले।

विशेष:-यन्त्र बनाने के समय ऊपर दिया गुरु शुक्राचार्य का शापविमोचन और सञ्जीवनी मन्त्र का जप करते रहे और जब यंत्र निर्माण पूरा हो जाये तो उस यन्त्र के सूखने तक अपनी ऑंखें बंद करते हुए यन्त्र को ध्यान में देखते हुए अब अपना इष्ट या गुरु मंत्र के जप की 20 माला जाप करें या सत्य ॐ सिद्धायै नम् ईं फट् स्वाहा की 20 माला का जाप जपते रहे।

माला कैसी हो:-

अष्ट संस्कारो से शुद्ध कि गयी पारद यानि पारे से बनी हुयी माला होनी चाहिए और उसी माला में इसे डालकर अपने गले में पहने से मनवांछित चमत्कारिक परिणाम आपको तुरन्त ही मिलने लगेंगे।

और ये अधिक से अधिक अपने मित्रों को शेयर करके पूण्य लाभ कमाए।

और आगामी लेख में आपको बताऊंगा- विश्व भर में पहली बार प्रस्तुत एक मात्र सत्यास्मि धर्म ग्रंथ से प्रकट किया गया- मनुष्य की कुण्डलिनी की जागर्ति के लिए “ईं” बीज मंत्र को षोढ़ष बीजमंत्रों से घिरे सुरक्षा चक्र यानि अद्धभुत लॉकेट के विषय में..

 

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“श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज”

“जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः”

 

 

 

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