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जयपुर SMS हॉस्पिटल में हादसा: लापरवाही ने ली 10 मासूमों की जान, आग से नहीं सिस्टम से मरे मरीज

जयपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह (SMS) का ट्रॉमा सेंटर रविवार देर रात मौत के मंजर में बदल गया।

रात 11:20 बजे न्यूरो आईसीयू से उठा धुआं देखते ही देखते चीखों और चीत्कारों में तब्दील हो गया।

जिस जगह पर जिंदगी बचाई जाती है, वहां जिंदगी को निगलने वाली आग ने 10 लोगों की जान ले ली। सवाल सिर्फ आग का नहीं, बल्कि उस सिस्टम का है, जिसने मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ किया।

“20 मिनट पहले बताया था…” लेकिन किसी ने सुना ही नहीं
भरतपुर के शेरू अपनी मां को बचाने की कोशिश में खुद आईसीयू में घुसे। उनका कहना है, “हमने 20 मिनट पहले ही स्टाफ को धुएं के बारे में बता दिया था।

लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे प्लास्टिक की ट्यूब पिघलने लगी और वार्ड बॉय वहां से भाग गए। हमें खुद अपनी मां को बाहर निकालना पड़ा।”
यह वही 20 मिनट थे, जिनमें जरा सी सतर्कता 10 जिंदगियां बचा सकती थी।

धुआं, जहरीली गैस और अफरातफरी का नर्क
फायरकर्मी अवधेश पांडे के मुताबिक, “जब हमारी टीम पहुंची, तब तक पूरा वार्ड जहरीले धुएं से भर चुका था। अंदर जाना नामुमकिन था। हमें बिल्डिंग की दूसरी ओर से कांच तोड़कर पानी की बौछार करनी पड़ी। आग पर काबू पाने में डेढ़ घंटे लग गए, लेकिन तब तक कई मरीज दम तोड़ चुके थे।”

आईसीयू में उस वक्त 11 मरीज थे। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि पांच को बचा लिया गया, लेकिन छह की जान नहीं बचाई जा सकी। मरने वालों में पिंटू (सीकर), दिलीप (जयपुर), श्रीनाथ (भरतपुर), रुकमणि (भरतपुर), कुषमा (भरतपुर), सर्वेश (आगरा), बहादुर (सांगानेर) और दिगंबर वर्मा शामिल हैं।

“हमने बताया, फिर भी कुछ नहीं किया” – परिजनों का आरोप
आग के बाद अस्पताल परिसर में हाहाकार मच गया। परिजन रोते-बिलखते सवाल कर रहे थे – “डॉक्टर कहां हैं? हमारे अपने जिंदा हैं या नहीं?”
गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह मौके पर पहुंचे तो गुस्से से भरी भीड़ ने उन्हें घेर लिया। लोगों ने आरोप लगाया कि अगर समय रहते अस्पताल प्रशासन हरकत में आ जाता, तो यह त्रासदी नहीं होती।

डिज़ाइन बना मौत का जाल
कई परिजनों ने दावा किया कि आईसीयू का स्ट्रक्चर ही मौत की वजह बना। ग्लासवर्क और सील्ड डिजाइन की वजह से धुआं बाहर नहीं निकल सका। जहरीली गैस अंदर भरती गई और मरीजों के लिए वह आईसीयू मौत का पिंजरा बन गया।

सरकार ने मांगी रिपोर्ट, लेकिन सवाल अब भी जिंदा हैं
ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर और एसएमएस कॉलेज प्रशासन ने जांच की बात कही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी हादसे पर दुख जताते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। लेकिन सवाल यह है कि क्या जांच रिपोर्ट उन परिवारों को सांत्वना दे पाएगी, जिनके अपने हमेशा के लिए खो गए?

सिस्टम की नाकामी से मरे मरीज
यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सरकारी अस्पतालों में फैली लापरवाही और सुस्ती की पोल खोलता है। सवाल यह नहीं कि आग कैसे लगी, बल्कि यह है कि आग लगने के बाद भी 20 मिनट तक सिस्टम सोता क्यों रहा?

आज भी आईसीयू की दीवारों पर लगे धुएं के निशान हर गुजरते शख्स को यही याद दिलाते हैं मरीज आग से नहीं, बल्कि लापरवाह सिस्टम से मरे हैं।

Bureau Report : Jagdish Teli, Rajasthan


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