क्या किसी फर्जी बाबा के कुकर्मों को उजागर करना सनातन धर्म के खिलाफ हो गया?
बड़ा सवाल
कोई भी फर्जी बाबा पकड़ा जाए या उसका पाखण्ड उजागर हो तो वो और उसके चेले सबसे पहले इसे सनातन धर्म के खिलाफ बता देते हैं, हिन्दू धर्म के खिलाफ साजिश बता देते हैं। लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि फर्जी बाबाओं के चेले क्या अपना दिमाग बंद कर लेते हैं, क्या अपनी सोच समझ को गिरवीं रख देते हैं।
बता दे कि जब आसाराम पकड़ा गया तो उसके भक्तों ने इसे सनातन के खिलाफ साजिश करार दिया, डेरा सच्चा सौदा वाला बाबा जब पकड़ा गया तो इसे भी धर्म से जोड़ दिया गया, रामपाल पकड़ा गया तो इसे भी धर्म से जोड़ दिया गया ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे। और अभी का ताजा उदाहरण आपके सामने है अपने आपको भगवान हनुमान का भक्त बताने वाला कथित बागेश्वर धाम सरकार उर्फ पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपने आपको भगवान से कम नहीं मानता है। और आज इसकी चर्चा भी हो रही है। इस पर हम काफी बात कर चुके हैं और इसके बारे में बता भी चुके हैं। अब इस बाबा के निशाने पर पत्रकार और वे सभी हैं जो बाबा पर सवाल उठा रहे हैं। यह फर्जी बाबा भी इसे सनातन धर्म के खिलाफ साजिश बता रहा है।
अब आप खुद सोचिए लोग इन्हें संत कहते हैं… क्या ऐसे लोग संत हो सकते हैं? या संत कहलाने के लायक होते हैं?
ऐसा नहीं है कि केवल हिंदू धर्म में ही ऐसे अधर्मी मिलते हैं। मुस्लिम व ईसाई धर्म के कुछ धर्म गुरु भी पाखण्डी होते हैं। उनके पाखंड के वीडियो भी हम आपको दिखा रहे हैं।
बता दें कि भारत की धरती महान साधु, संतों से सराबोर रही है। भारत की धरती पर ऐसे-ऐसे संत पैदा हुए हैं जो वाकई चमत्कारिक रहे हैं। उनके चमत्कार को किसी प्रमाण की जरूरत नहीं और न ही उन पर कभी सवाल उठे। उन संतों ने अपने चमत्कार को कभी नहीं बेचा.. किसी से दान दक्षिणा नहीं ली..। उन संतों ने धर्म का प्रचार प्रसार भी बड़ी ही शालीनता से किया और हमने भी उन महान संतों को भगवान की उपाधि दी लेकिन उन संतों को यह भी मंजूर नहीं था। वे अपने आपको भगवान का केवल दूत भर कहते थे, खुद को सेवक बताते थे। वे लोगों से कहते थे कि उन्हें भगवान न बोला जाए। ऐसे कितने संत मिल जाएंगे। संत का अर्थ ही सांसारिक सुखों से दूर हो जाना है। अपने जीवन को अध्यात्म के लिए समर्पित कर देना। त्याग और समर्पण असली संत का अर्थ है। ऐसे महान संतों की झलक पाने, उनका आशीर्वाद पाने के लिए विश्वभर से प्रसिद्ध लोग भारत आये और संतों में अपनी आस्था दिखाई।
आज हम ऐसे ही महान संतों की बात करेंगे जिन्होंने भारत, भारतीय संस्कृति और सनातन का नाम दुनिया में किया। सबसे पहले हम बात करते हैं स्वामी विवेकानंद की
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ। उनका असली नाम नरेंद्र दत्त था। स्वामी विवेकानंद बचपन में ही रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गए थे। उन्होंने 25 वर्ष की अवस्था में गेरुआ वस्त्र पहन लिए। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन् 1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानंदजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे। योरप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए। और अमेरिका में उनका जबरदस्त स्वागत हुआ। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। 4 जुलाई सन् 1902 को उन्होंने देह त्याग किया।
महर्षि अरविंद
5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। 21 वर्ष की उम्र के बाद वे स्वदेश लौटे तो आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी विचारधारा के कारण जेल भेज दिए गए। वहां उन्हें कष्णानुभूति हुई जिसने उनके जीवन को बदल डाला और वे ‘अतिमान’ होने की बात करने लगे। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के ‘विकासवादी सिद्धांत’ की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी। 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में उनका जन्म हुआ और 5 दिसंबर 1950 को पांडिचेरी में देह त्याग दी।
परमहंस योगानंद
परमहंस योगानंद ऊर्फ मुकुंद घोष का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में हुआ। 7 मार्च 1952 को योगानंद का लॉस एंजिल्स में निधन हो गया। उनकी ख्यात पुस्तक है ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी,’ यह कृति हिंदी में ‘योगी कथामृत’ के नाम से उपलब्ध है।
नीम करौली बाबा
उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में नीम करौली बाबा का जन्म 1900 के आसपास हुआ। 11 सितंबर 1973 को आपने वृंदावन में देह त्याग दी। बाबा की समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है। नीम करौली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जुलिया रॉबर्ट्स का नाम भी लिया जाता है।
नीम करोली बाबा से जुड़ी कैंची धाम मंदिर एक ऐसी खास जगह है, जहां लोग अपने दुख दर्द लेकर अक्सर यहां आते रहते हैं। न केवल आम आदमी बल्कि कैंची धाम मंदिर का इतिहास मशहूर विदेश हस्तियों से भी जुड़ा हुआ है। नीम करौली बाबा ने हनुमान जी के सैंकड़ों मंदिरों का निर्माण करवाया। वे जहां जाते थे वहां भंडारा करते थे, गरीबों को भोजन करवाते थे। लोगों के दुख दर्द दूर करने का काम करते थे।
श्रीराम शर्मा आचार्य
शांति कुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने हिंदुओं में जात-पात को मिटाने के लिए गायत्री आंदोलन की शुरुआत की। जहां गायत्री के उपासक विश्वामित्र ने कठोर तप किया था उसी जगह उन्होंने अखंड दीपक जलाकर हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। गायत्री मंत्र के महत्व को पूरी दुनिया में प्रचारित किया। आपने वेद और उपनिषदों का सरलतम हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद किया। 20 सितम्बर, 1911 आगरा जिले के आंवलखेड़ा गांव में जन्म हुआ और अस्सी वर्ष की उम्र में उन्होंने शांतिकुंज में ही देह छोड़ दी।
दादा लेखराज (प्रजापति ब्रह्मा)
दादा लेखराज मूलत: हीरों के व्यापारी थे। इनका जन्म पाकिस्तान के हैदराबाद में हुआ था। दादा लेखराज ने सन 1936 में एक ऐसे आंदोलन का सूत्रपात्र किया जिसे आज ‘प्रज्ञापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय’ के नाम से जाना जाता है। सन् 1937 में आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा के माध्यम से इस संस्था ने एक आंदोलन का रूप धारण किया।
जब दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया तो जो उनके सिद्धांतों पर चलते थे उनमें पुरुषों को ब्रह्मा कुमार और स्त्रीयों को ब्रह्मा कुमारी कहा जाने लगा। यह आंदोलन भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखता है। विश्वभर में इस आंदोलन के कई मुख्य केंद्र हैं तथा उनकी अनेकों शाखाएं हैं। इस संस्था का मुख्यालय भारत के गुजरात में माऊंट आबू में स्थित है। इस आंदोलन को बाद में दादी प्रकाशमणी ने आगे बढ़ाया। यह आंदोलन बीच में विवादों के घेरे में भी रहा। इन पर हिन्दू धर्म की गलत व्याख्या का आरोप लगाया जाता रहा है, जिससे समाज में भ्रम का विस्तार हुआ है।
खैर और भी ऐसे साधु संत हैं जिनकी वजह से पूरे विश्व ने सनातन का लोहा माना और हिन्दू धर्म में अपनी आस्था दिखाई। सनातन से भारत की धरती पवित्र हुई है। इन महान संतों को बारम्बार नमन।
आप सबसे भी आग्रह है आप ऐसे इंसान को संत मानने की भूल न करें जो भोगी हो या पैसे के पीछे पागल हो। संतों को मोहमाया से कोई मतलब नहीं होता है।
इसी के साथ मैं मनीष कुमार अंकुर आपसे विदा लेता हूं फिर किसी टॉपिक पर आपसे रूबरू होऊंगा तब तक के लिए मुझे दीजिए इजाजत। धन्यवाद।
🚩प्रश्न – #साधू-#संतो के पास करोड़ो की संपत्ति है। साधू-संतो को इतनी संपत्ति की क्या जरुरत है? साधू को तो अपरिग्रही होना चाहिए।
💥उत्तर : रोमन केथोलिक #चर्च का एक छोटा राज्य है जिसे “वेटिकन सिटी” बोलते है। अपने धर्म (#ईसाई) के प्रचार के लिए वे हर साल 171,600,000,000
डॉलर खर्च करते है । तो उनके पास कुल कितनी #संपत्ति होगी??
💥वेटिकन सिटी के किसी भी व्यक्ति को पता नहीं है कि उनके कितने व्यापार चलते है??
💥रोम शहर में 33% इलेक्टोनिक, #प्लास्टिक, #एर लाइन, #केमिकल और #इंजीनियरिंग बिजनेस वेटिकन के हाथ में है।
💥दुनिया में सबसे बड़े shares वेटिकन के पास है।
💥#इटालियन #बैंकिंग में उनकी बड़ी संपत्ति है और #अमेरिका एवं स्विस बेंको में उनकी बड़ी भारी deposits है।
💥ज्यादा जानकारी के लिए पुस्तक पढाना जिसका नाम है #VATICAN EMPIRE
💥उनकी संपत्ति के आगे आपके भारत के साधुओं के करोड रुपये कोई मायना नहीं रखते।
💥वे लोग खर्च करते है विश्व में धर्मान्तरण करके लोगों को अपनी #संस्कृति, और #धर्म से भ्रष्ट करने में और भारत के संत खर्च करते है लोगों को शान्ति देने में, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं में, #आदिवासियों और गरीबों की सेवा में, #प्राकृतिक आपदा के समय पीडितों की सेवा में और अन्य लोकसेवा के कार्यों में।
💥#प्राचीन काल में #ऋषियों के पास इतनी संपत्ति होती थी, कि बड़े बड़े राजा जब आर्थिक संकट में आ जाते थे, तब उनसे लोन लेकर अपने राज्य की अर्थ व्यवस्था ठीक करते थे।
💥कौत्स ब्राह्मण ने अपने गुरु वर्तन्तु को 14 करोड स्वर्ण मुद्रा गुरु दक्षिणा में दी थी।
💥साधू संतो के पास संपत्ति नहीं होगी तो वे धर्म प्रचार का कार्य कैसे करेंगे❓
💥प्राचीन काल में राज्य से धर्म प्रचार के लिए धन दिया जाता था । भगवान बुद्ध के प्रचार के लिए सम्राट अशोक जैसे राजाओं ने अपनी सारी संपत्ति लगा दी और आज के समय में सरकार मंदिरों व #आश्रमो की संपत्ति और आय को हड़प कर लेती है और उसे #चर्च एवं #मस्जिदों में खर्च करती है लेकिन #हिंदू धर्म के प्रचार के लिए पैसा खर्च नहीं करती।
💥आम हिंदू समाज भी अपने परिवार के लिए ही सब धन खर्च करना जानता है, धर्म की सेवा के लिए 10% आय भी लगाता नहीं और लोगों के अपवित्र जीवन और उदासीनता के कारण भिक्षा वृत्ति भी अब संभव नहीं है।
💥इसलिए #आश्रमवासियों के लिए भोजन बनाने के लिए भी संतों को व्यवस्था करनी पड़ती है । उनको व्यापारी मुफ्त में तो दाल, चावल, शक्कर, आदि नहीं देंगे।
💥अपरिग्रह की बात सिर्फ हिंदू साधुओं के लिए ही क्यों सिखाई जाती है??
💥#बिकाऊ #मीडिया वाले हिंदू साधुओं की संपत्ति पर ही बार-बार स्टोरी बनाकर दिखाते है, ईसाई पादरिओ की अखूट दौलत पर नही। जबकि उनके पास दुनिया में सबसे ज्यादा संपत्ति है और उसमें से 17 हजार करोड़ डॉलर हर साल #ईसाई #धर्मांतरण पर खर्च किया जाता है।
जिसके बारे में आम लोगों को पता भी नहीं चलता।
💥इस पर मीडिया चुप क्यों??
💥क्यों की मीडिया की #चैनले 90% ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित होती है इसलिए वो हमेशा हिन्दू संग़ठन और साधू-संतो को ही बदनाम करते रहते है। जागो हिन्दू
-डॉ.प्रेमजी
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