ध्यान के सदा तीन सूत्र जानो
सेवा तप और दान।
सबसे बड़ा सेवा कर्म
दूजे तप और तीजे दान।।
सेवा से समर्पण बढ़े
सेवा तन दे जोड़।
सेवा बढ़ती जाती जितनी
उतना मन दे अंदर मोड़।।
स्वप्न बदले सेवा करते
देखोगे सेवा कर इष्ट।
सेवा स्वप्न बढ बढ़ दिखे
स्वप्न सफल वर मिले अभीष्ट।।
घर की सेवा संसारी फल दे
जन सेवा प्रसिद्धि दे।
मन्दिर सेवा धर्म व्रद्धि
इष्ट सेवा चित्त भक्ति दे।।
सबसे उत्तम गुरु की सेवा
जीवित सेवा गुरु की कर।
गुरु साक्षात ब्रह्म अवतरित
गुरु सेवा हर वर दे तर।।
गुरु सेवा से तन मिलती ऊर्जा
जगे कुंडलिनी गुरु शक्ति।
गुरु भक्ति से मन प्रकाशित
धर्म संसार भरा गुरु भक्ति।।
यो ध्यान बढ़े सेवा के बल
सेवा मिटाती मन सब छल।
सेवा से बढ़ता नित भाग्य
सेवा बनाती ध्यान निश्छल।।
यो यदि चाहते ध्यान बढ़े
ओर बढ़े तुम ज्ञान।
सबसे पहले सेवा करो
गुरु इष्ट सेवा जुड़ जान।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org
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