हर साल 01 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व भर में वृद्ध एवं प्रौढ़ स्त्री व पुरुषों के साथ होने वाले अन्याय, उपेक्षा और उन्हें प्रयोजनहीन समझने के दुर्व्यवहार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से हर साल इंटरनेशनल डे ऑफ ओल्डर पर्सन (International Day Of Older Persons) मनाया जाता है।
इस दिवस पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी अपनी कविता के माध्यम से जनसंदेश देते हुए कहते है कि,,,,
जो जन्मा है अवश्य मरेगा
यही जगत प्रकृति नियम है।
सद्कर्म संतुलित जीवन ही
कर्म फल जीवन संयम है।।
यो जन्म मृत्यु मध्य है जीवन
जन्म मृत्यु दो नवजीवन द्धार।
पुनः पुनः जन्म मिलता है
जैसा कर्म वैसा फल सार।।
बदले का बदला ही जीवन
कर्ज फर्ज कर्मफल बन उधार।
यो सदा स्मरण यही है रखना
जैसा करोगे वैसा भरोगे लिया उधार।।
यो तुम युवा हो कल वर्द्ध बनोगे
तब कैसा होगा तुम व्यवहार।
यही स्मरण रख रिश्ते हर देखो
जीवन बने आनन्द सुखसार।।
जिनसे हम जन्में है
उनका करो सदा सत्कार।
उनके हर ज्ञान पहलू का
अपनाकर करो सदा आभार।।
उन्हें समझों ओर समझाओ भी
विरोध उपेक्षा बिन अपनाएं।
उनकी गिरती उम्र और शक्ति से
नहीं बनाओ उन्हें निसहाय।।
वर्द्धाश्रम कभी न भेजो
न भिन्न उन्हें समझना।
शामिल करो उन्हें खुशियों में
उन संग प्यार सबंध कर रचना।।
बहुत बात सम्भव नहीं होती
न बदलाव बहुत उन सम्भव।
तब भी सम्भवना सदा बनाना
संभावना बना देती सभी असम्भव।।
सोचो यही तुम संग होगा
मिलता बदले का सबको बदला।
फिर मौका नहीं मिलेगा तुमको
अभी वक्त बदले अब से ही अगला।।
यो इसी जीवन के ज्ञान को
वर्द्ध दिवस के रूप मनाये।
जो हुआ सो हुआ छोड़कर
नई जीवन सम्भवना अपनाएं।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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