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राजस्थान में इस बार हुई बम्पर बोटिंग, युवाओं में दिखा वोटिंग का जबरदस्त उत्साह

 

 

 

 

राजस्थान में विधानसभा की 199 सीटों के लिए वोटिंग संपन्न हो गई है। वोटिंग प्रक्रिया सुबह 8 बजे से शुरू हुई जो 5 बजे तक चली। राजस्थान में शाम 5 बजे तक 72.7 फीसदी मतदान हुआ। राजस्थान में इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच है। दोबारा सत्ता में वापसी के लिए जहां बीजेपी के रणनीतिकारों ने पूरी ताकत झोंक दी, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जमकर चुनाव प्रचार किया। दूसरी ओर कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में भुनाने के लिए इस बार काफी आक्रामक चुनावी अभियान चलाया। चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे।

बता दें कि राजस्थान की 200 सीटों में 199 सीटों पर मतदान हुआ। कई जगह ईवीएम खराब होने की शिकायतें भी आईं।

डूंगरपुर जिले के गांव पिंडावल में तो बूथ पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने भाजपा का झंडा लगाया हुआ था। लेकिन हमारे राजस्थान संवाददाता जगदीश जी तेली को पुलिस में देख लिया और झंडा उतरवा दिया।

वहीं पिंडावल पोलिंग बूथ पर लोगों ने निकाली पर्ची फिर किया मतदान बीएलओ की लापरवाही से मतदाताओं को मतदान पर्ची नहीं मिलने पर लोगों को इधर-उधर बूथ पर भागना पड़ा ग्रामीण से पूछने पर पता चला कि उनको पर्ची मिली नहीं है अपनी पहचान पत्र के जरिए से नाम निकाल कर लोगों ने किया मतदान।

डूंगरपुर जीके के आसपुर विधानसभा संख्या 194 के बूथ संख्या 92 महिलाओं की लंबी कतार महिलाओं मतदान के प्रति उत्साह 1 घंटे से खड़ी हुई है महिलाएं।

बारां-अंता-मांगरोल विधानसभा क्षेत्र की
मांगरोल तहसील क्षेत्र के मतदान केंद्र उदपुरिया में भाग संख्या 17 के बीएलओ मनीष मीणा को शराब के नशे में दत्त होने ओर मतदान में व्यवधान डालने पर सहायक निर्वाचन अधिकारी ने किया सीसवाली पुलिस के हवाले।

आसपुर विधानसभा क्षेत्र में मतदान को लेकर महिलाओ में उत्साह, आसपुर में 2 बजे तक 49 प्रतिशत मतदान, दिन चढ़ने के साथ बूथों पर बढ़ रही है कतारे।

वैसे तो इस बार चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से निपट गए लेकिन ईवीएम ने भी खूब नचाया, कहीं से ईवीएम हैक होने की खबर आती रही तो कहीं से खराबी की।

राजस्थान विधानसभा में 200 सीटे हैं। यहां सरकार बनाने के लिए 101 सीटों की दरकार होती है।

 

1952 से अब तक राजस्थान विधानसभा के 14 चुनाव हो चुके हैं। 9 बार कांग्रेस की सरकारें बनी तो 4 बार भाजपा सत्ता में रही। एक बार जनता पार्टी की सरकार रही थी। 1972 तक प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का एकतरफा दबदबा रहा। 1977 में पहला मौका आया जब कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई। तब जनता पार्टी ने 200 में से 151 सीटें जीत कर सरकार बनाई और भैरोंसिंह शेखावत पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि अगले दो चुनावों (1980 और 1985) में फिर कांग्रेस सत्ता में रही। 1980 से चुनाव मैदान में उतरी भाजपा को पहली कामयाबी 1990 में मिली। तब पार्टी को 85 सीटें मिली थीं। शेखावत फिर सीएम बने।

1993 में प्रदेश की दसवीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए और 95 सीटों के साथ भाजपा फिर सत्ता में लौटी। राजस्थान के इतिहास में यह पहला और एक मात्र मौका रहा जब भाजपा लगातार दो बार सत्ता में रही। इसके बाद से भाजपा और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला-बदली चल रही है। 1998 में कांग्रेस ने धमाकेदार प्रदर्शन किया और 200 में से 153 सीटों जीत दर्ज की। यह पहला मौका था, जब कांग्रेस ने 150+ सीटें हासिल की। अशोक गहलोत सीएम बने।

2003 विधानसभा चुनाव में गहलोत दूसरी पारी नहीं खेल पाए और उनके नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। 120 सीटें जीतकर भाजपा सत्ता में लौटी, वसुंधरा राजे सीएम बनीं। 2008 में वसुंधरा भी लगातार दूसरी पारी नहीं खेल पाईं। 96 सीटें पाकर कांग्रेस सत्ता में लौटी, गहलोत फिर सीएम बने। 2013 में अदला-बदली का क्रम जारी रहा और भाजपा ने राजस्थान विधानसभा के इतिहास में अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। 163 सीटों के साथ वसुंधरा राजे फिर सीएम बनीं।

बता दें कि राजस्थान के इन विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला सत्तारुढ़ बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के बीच है। खास बात यह कि इन चुनाव में गभग 50 सीटों पर दोनों प्रमुख दलों के विद्रोही उम्मीदवार मैदान में हैं, जो दोनों दलों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। राज्य में 830 निर्दलीय उम्मीदवार भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। बीजेपी राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि कांग्रेस ने अपने सहयोगियों के लिए पांच सीटें छोड़ी हैं। बीएसपी ने 190 उम्मीदवार, सीपीआई (एम) ने 28 और सीपीआई ने अपने 16 उम्मीदवार खड़े किए हैं।

वर्तमान में राज्य विधानसभा में बीजेपी के पास 160 सीटें हैं, वहीं कांग्रेस के 25 विधायकों के साथ अब तक प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में काम कर रही है। एग्जिट पोल के नतीजे भले ही कांग्रेस पार्टी के नेताओं के लिए सुखद हैं लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या 20 साल पुरानी परंपरा टूटेगी या इतिहास एक बार फिर अपने आप को दोहराएगा? क्या मेवाड़ का किला फतह करने वाली पार्टी ही फिर सत्ता की सीढ़ी पर चढ़ेगी।

 

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Report : Jagdish Ji Teli

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Rajasthan

 

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