माँ को देख शिशु मुस्काये
बच्चा देख माँ की मुस्कान।
कल्पना नहीं उस सुख कर सकता
जैसे मिले हो मनवांछित भगवान।।
बारिश के बाद खुली धुप
उसमें बनता इंद्रधनुष।
उसे देख मुस्कराती दुनियां
कल्पना नहीं परिभाषित खुश।।
लिया संकल्प जब पूरा होता
तब थके चहरे पर आती मुस्कान।
कल्पनातीत परम् सुख देती
नहीं शब्द कर सकते उसका संज्ञान।।
प्रतिद्धंदी जब किया पराजित
और चारों और सन्नाटा छाया।
बजी इस निःशब्दता तोड़ तालियां
इस गुंजित आती सुख मुस्कान अथाया।।
खोया जब कोई प्यार कल्पना
और वही आ रखता आँखों पे हाथ।
पहचान उस प्रेम तरंगित हथेली
हटा देख उस मुस्कान की प्रभात।।
अंतर बहिर एक द्रष्टि हो जाये
दिखे वही सोहम् स्वरूप।
कल्पना नहीं जगत कर सकता
इस अद्धभुत मुस्कान मुख स्वभूप।।
यो और नहीं ढूंढो कहीं सुख को
वो छिपा तुम्हारे अंदर सज्ञात।
करो उसे अनुभूत इस जीवन
तब पाओ और दो मुस्कान अजात।।
उठो प्रातः देखो नव सूरज
तुम्हें देता नित नव मुस्कान।
खिले पुष्प देखो निज बगियाँ
चन्द्र स्वागत करे रात बन मुस्कान।।
भूलो कटुता वैर भाव की
ये नहीं किसी के आती काम।
स्मरण करो मित्र-प्रेम के क्षण को
लो आई तुम्हारे मुख शुभ मुस्कान।।
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स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः