श्रीमद् भागवत में श्री कृष्ण कहते है की-“अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्,मुलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे,अग्रतः शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नमः”
अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूँ और पीपल के मूल में ब्रह्मा जी,मध्य में विष्णु जी, तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी का साक्षात् रूप विराजित है।
अधिकतर स्त्री भक्त पीपल पर अपने शनिदेव या अन्य देवों के तेल या घी के दीपक जलाती है पर इन्हें केवल इतना पता है की प्रातः और साय दीपक जलाना चाहिए,पर ये नहीं पता की और समय क्यों नही जलाना चाहिए? या पीपल पर सर्वदेवों और ग्रहों का वास क्यों होता है?
पीपल हमें लगभग सर्वकालीन ऑक्सीजन देता है यो पुराने पिपलों के नीचे से गुजरते समय अनेक बार हमें पानी की फुहारों का अपने शरीर पर गिरने का अनुभव होता है,जिस कारण अनेक भक्त उसे भुत प्रेत का प्रभाव भी मानते है और डरते है। तो कुछ देवों का आशीर्वाद मानते है। जबकि ये पीपल ने जल और ऑक्सीजन की स्वभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
हमारा पूरा दिन और रात्रि का चक्र 24 घण्टे के रूप में बंटा हुआ है जो लगभग 3 घण्टे कुछ मिनट के अंतराल से सातों ग्रहों के एक एक क्रम से प्रारम्भ होकर अंत तक बना हुआ है जैसे-रविवार की प्रातः 4 बजे से 7 बजकर कुछ मिनट तक ही रविवार के दिन और रविवार के देव या देवी के पूजा का समय होता है। उसी ही समय रविवार के देव सूर्य या गायत्री देवी को अर्पित दीपक और जल का पूजन स्वीकार होता है,इसके बाद अगला दिन सोमवार का समय चक्र प्रारम्भ होता है उस समय रविवार को जलाया दीपक इर् जल सोमवार के देव या देवी को मिलेगा। यो आपको रविवार के देवता या देवी का आशीर्वाद की प्राप्ति नहीं होगी,कोई कोई भक्त कहेंगे क्या फर्क पड़ता है किसी भी देवी देव को जाये,हमें तो आशीर्वाद ही मिलेगा.पर स्मरण रहे ये उस भाँती हुआ की-आपको अपनी मनोकामना की अर्जी देनी थी विधुत विभाग में और अपने वो पहुँचा दी शिक्षा विभाग में तब वो रद्द हो जायेगी या आपके लिखे पते पर वापस आ जायेगी की आपने अपनी आवश्यकता गलत विभाग में भेज दी है।यहां अनावश्यक तार्किक लोग कुछ भी ये तर्क दे की ये क्या भगवान कोई भी हो सब समान है,तो इस भगवान वादी मान्यताओं के मानने वालो को ये स्मरण रखना चाहिए की-जैसे पृथ्वी पर सभी मनुष्य ही है। परन्तु वही समानतावादी मनुष्य ही एक अपने गुणों से चपरासी बनता है और एक राष्टपति।तब क्या कहेंगे? यो देव और देवी भी एक पदवी ही है,वहाँ शास्त्रो के अनुसार जो मनुष्य स्त्री या पुरुष सदगुणों का उच्चतम विकास करता अपने पुण्यबलों का संचय करता है। वही स्त्री देवी और वही पुरुष देवता के पद पर बैठ उसी प्रकार से विभागीय कार्यवाही करता है जैसे धरती पर विभागीय कार्यवाही एक मनुष्य अन्य सभी मनुष्यों के विषय में करता है,यही देवी देवतावाद की धार्मिक विचारधारा है।अब इस पर भी वेदान्तिक खंडन सम्भव है,परन्तु यहां विषय है प्रचलित मान्यताओं की उपासना पद्धति के सही रूप के पालन करने से लाभ की प्राप्ति से।यो समझ आया की रविवार की प्रातः 4 से 6:15 तक और रविवार की ही शाम को 4 बजे से 6:15 तक के समय में की गयी पूजा,दीपक,जल आदि का पीपल पर चढ़ाने का भक्त को फल र्विवे के देव या देवी से प्राप्त होगा।यो सोमवार से लेकर शनिवार तक भी ठीक यही प्रातः 4 से 6:15 तक का समय ही इन दिनों के देवो या देवियों को प्राप्त होता है।क्योकि प्राचीनकाल में मूर्तियों का सामान्य गाँवो या शहरों में प्रचलन नहीं था यो सभी अपने देव,देवी और पितरों के पूजा स्थान पीपल के नीचे ही बनाते थे या वहाँ पीपल लगाते थे,जिससे वहां छाँव से लेकर ऊपर बताई देवो को दिनों के अनुसार पूजा पहुँचती थी और आशीर्वाद मिलता था।यो भक्तों जिस दिन और देव व् देवी की पूजा करते हो उसी दिन के देव को ठीक उसी दिन 4 से 6;15 बजे के मध्य ही अपनी पूजापाठ दे और कल्याण पाये।
और जो भक्त शनिदेव के 41 दिन के दीपक पीपल पर जलाते या जलाती है उन्हें शनिवार की प्रातः और साय 4 बजे से 6:15 बजे के बाद अन्य रविवार से शुक्रवार तक के
दिनों में निम्न समय अपने दीपक जलाने चाहिए:-
*रविवार को:- प्रातः और साय-6 से 8 के मध्य जलाये।
*सोमवार को:- प्रातः और साय-8 से 10 के मध्य जलाये।
*मंगलवार को:- केवल प्रातः 10 से 12 के मध्य जलाये।
*बुद्धवार को:- केवल दोपहर को 1 बजे से 3 बजे के मध्य जलाये।
*गुरूवार को;-केवल दोपहर बाद 3 से 5 बजे तक जलाये।
*शुक्रवार को:- केवल साय के 5 बजे से 7 बजे के मध्य ही जलाये।
ऐसे ही अन्य देवी देवों के समय निकाल कर एक कलेंडर में लिख ले और उसी अनुसार दीपक आदि पूजा करें।
और जो घर में भी करती है उन्हें भी यही स्मरण रखना चाहिए की जब मन आया ज्योति बाती पूजा नहीं करनी चाहये।सामान्य उपासना की यहां बात नहीं की जा रही है बल्कि हो नियम से किसी देवी या देव की क्रमबद्ध उपासना करते है उन्हें अवश्य ये ही नियम अपनाने होंगे अपने मनवांछित लाभ की प्राप्ति के लिए।।
ये नहीं जाने की एक ही पूजाघर रूपी ऑफिस में सारे अधिकारी बुलाकर रख लिए और जब मन आया उससे अपना काम निकलवाने के लिए घर बैठे ही अपनी चलाई,ये ना तो मनुष्य समाज में सम्भव है तो देवो और देवियों में कैसे सम्भव होगा? क्योकि मनुष्य में मानो आपके पिता या माता या परिजन कोई विशिष्ट अधिकारी हैं भी तो केवल आप उनसे अपनी मनोकामना की पूर्ति को कह सकते है,वे उसे अपने पी.ए. से कह देंगे परन्तु वो कार्य जिस विभाग का है उसी विभाग में जाकर उसी के नियमों से पूरा होगा समझें।यो ही अनेक देवी देवताओं का विभागीय उपासना अर्थ विज्ञानं है।
(पर जो अपनी ही आत्मा का ध्यान करते है वे सर्वसामर्थ्यशाली होकर सर्व इच्छापूर्ति सम्पन्न हो जाते है।)
और आजकल तो सभी शहरों कस्बों में शनिदेव के मन्दिर है या अन्य देवो के मन्दिर है, उन्हें वही जाकर किसी भी समय विशेषकर प्रातः और साय को अपनी पूजापाठ करनी चाहिये,क्योकि वो मन्दिर तो उस देवी देव यानि शनिदेव का विभाग कक्ष् है वे अवश्य वहां मिलेंगें।।
यो स्मरण रहे की या तो पूजा करो ठीक सही नियमों से अन्यथा अनावश्यक और मनमानी करने पर लाभ के स्थान पर दंड ही प्राप्त होता है।।ये सार्वजनिक प्रकृति और मनुष्य तथा जीवों में भी सर्वकालीन नियम है।।
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स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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