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सीबीआई के बाद अब आरबीआई : केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच क्या सबकुछ ठीक चल रहा है?

 

 

 

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी और बड़ी संवैधानिक संस्था सीबीआई का मामला थमा नहीं था कि अब आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच तनातनी की खबरें सामने आ रही हैं।

 

 

 

पहले सीबीआई और सरकार के बीच कुछ गलत होने की बात सामने आयी थी उसके बाद सीबीआई में आपसी कलह, आरोप प्रत्यारोप का दौर, फिर एफआईआर और जाँच सीबीआई और सीबीआई के बीच ही चोर पुलिस का खेल।

अब सुनने में आ रहा है कि आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। पीएम मोदी की पसंद कहे जाने वाले आरबीआई के गवर्नर “अर्जित पटेल” और केंद्र सरकार के बीच तनातनी की खबरें आ रही हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच इस तरह की खबरें मीडिया में आना दुखद ही नहीं बल्कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के बीच तनातनी देखने को मिल रही है। दोनों के बीच नीतिगत मुद्दों को लेकर पर्याप्त मतभेद हैं। एक बड़े मीडिया हाउस टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के शुरुआती महीनों में सरकार और आरबीआई के बीच दूरियां बढ़ी हैं। यहां तक कि सरकार और आरबीआई के बीच संवादहीनता की स्थिति तक बनती जा रही है। और अगर यह तनातनी नहीं रुकी तो इससे खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है।

 

 

सीबीआई का मुद्दा मीडिया में अभी तक छाया हुआ है। और अब ये एक और नया मुद्दा। सरकार ने सीबीआई के नए चीफ को भले चुन लिया हो लेकिन जिनको अभी चुना है उनका दामन भी पाक साफ नहीं है।

 

 

सूत्रों के मुताबिक आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल अचार्य ने शुक्रवार को सरकार के हस्तक्षेप की ओर इशारा किया था। विरल अचार्य ने आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर चिंता जाहिर की थी। विरल ने कहा था कि आरबीआई की स्वायत्तता पर चोट किसी के हक में नहीं होगी।

विरल ने कहा था कि सरकार के केंद्रीय बैंक के कामकाज में ज्यादा दखल देने से उसकी स्वायत्ता प्रभावित हो रही है। केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार से थोड़ा दूरी बनाकर रखना चाहती है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। सरकार की तरफ से बैंक के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप किया जा रहा है, जो कि घातक हो सकता है।

कहा जा रहा है कि वर्तमान हालात का असर उर्जित पटेल के भविष्य पर भी पड़ सकता है। रिपोर्ट का कहना है अगले साल सितंबर में उर्जित पटेल के तीन साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। पटेल के सेवा विस्तार की बात तो दूर की है उनके बाकी के कार्यकाल पर भी सवाल उठ रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल नोटबन्दी को लेकर उठा था जिसे मोदी सरकार ने बड़ी ही चतुरता से आरबीआई के पाले में डाल दिया यह भी एक वजह है कि आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच दूरियां बढ़ी। कुछ दूरियां बैंक फ्रॉड वाले केस के बाद भी बढ़ी।

 

खैर जो भी हो लेकिन रिपोर्ट का कहना है कि केवल 2018 में ही कम से कम आधे दर्जन नीतिगत मसलों पर मतभेद उभरकर सामने आए। सरकार की नाराजगी ब्याज दरों में कटौती नहीं किए जाने को लेकर भी रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नीरव मोदी की धोखाधड़ी सामने आने के बाद भी सरकार और केंद्रीय बैंक में तनाव की स्थिति पैदा हुई थी। पटेल चाहते हैं कि सरकारी बैंकों पर नजर रखने के लिए आरबीआई के पास और शक्तियां होनी चाहिए।

सरकार के अंदर मौजूद कुछ लोगों का इस मामले पर कहना है कि रघुराम राजन इससे (उर्जित) बेहतर थे। अकेले 2018 में आधे दर्जन से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें केंद्र और गवर्नर का स्टैंड एक-दूसरे से अलग रहा। इस मनमुटाव की शुरुआत तब हुई जब आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती की बजाए उसमें बढ़ोतरी की गई, इससे सरकार नाराज हो गई। इसने दोनों के बीच तनातनी की शुरुआत की। केंद्रीय बैंक का मानना था कि यह पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र में आता है।

 

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मनीष कुमार
ख़बर24 एक्सप्रेस

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