‘स’ सत्य बोलता अटल बना रह
‘आ’आत्मा का करता निज शोघ।
‘ध’ धुन अनहद नाँद सदा सुन
‘उ’ उर्ध्व ब्रह्मज्ञान मुक्त बोध।।
साधु वही इन चार कर्म जी
और साधता सधाता कर कल्याण।
बाकि स्वाधु स्वांग है रचते
जो भेष से साधू में स्वाधु प्रमाण।।
साधु बनो अपने लिए बनना
किसी प्रभाव से कभी नहीं।
किसी नियत से साधू जो बनता
वो सिद्धि पाता कभी नहीं।।
पूछो ना साधू की जात
ब्राह्मण वो है पाकर ज्ञान।
क्षत्रिय वो समाज की रक्षा
वैश्य शुद्र है सेवा कल्याण।।
भिक्षा मांगे निम्न है साधु
मध्यम केवल तप को खाये।
उच्चतम साधु जीये निज बल
महापातकी खा बौराये।।
तीन बल सच्चे साधु के
ब्रह्मचर्य हो या हो ग्रहस्थ।
सेवा तप दान दे सारा
ब्रह्म ज्ञान पे रहता मस्त।।
करे क्रोध पिता सा साधु
माता सा संग करे दुलार।
कृपा करे भक्त गुरु बन
बंधु सा साधु दे प्यार।।
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स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः