श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के अनुसार इस साल 24 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। शरद पूर्णिमा से ही शरद ऋतु यानि सर्दियों की शुरुआत मानी जाती है। माना जाता है इस दिन चंद्रमा सोलह संपूर्ण कलाओं से युक्त होकर अमृत बरसाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए पूजा करके व्रत रखा जाता है।
इस विषय पर भगवान सत्यनारायण और भगवती सत्यई पूर्णिमां से उनके पुत्र अरजं और हंसी ने शारदीय पूर्णिमा के महत्त्व के विषय में पूछा-तब भगवती सत्यई पूर्णिमां बोली की-
इस शारदीय पूर्णिमां के दिन की मेरी इस दिन की पूर्णिमा को चन्द्रमा जो की प्रत्येक मनुष्य स्त्री हो या पुरुष में, अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर सम्पूर्ण संसार को अपनी दिव्य शक्ति प्रदान करता है। यही सोलह कला चन्द्रमा की पुरुष प्रधान युग में बदलकर पत्निया भी कही जाती है। जिनका नाम इस प्रकार से है-अमृता, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शशनी, चन्द्रिका, कांति, ज्योत्स्ना, श्री, प्रीति, अंगदा, पुर्णी, पूर्णामृत।।
इसीको प्रतिपदा, दूज, एकादशी और पूर्णिमा भी कहते है। और योग में मनुष्य शरीर में ये नाम इस प्रकार से है-अन्नमया, प्राणमया, मनोमया, विज्ञानमया, आनन्दमया, अतिशयिनी, विप्रितनाभिमी, संक्रमिनी, प्रभावि, कुंथनी, विकासिनी, मर्यदिनी, सन्हालादिनी, आह्रादिनी, परिपूर्ण और सोलहवी कला स्वरूपवस्थित है। यो इस दिन चन्द्रमा अपनी सोलह पत्नियो के साथ महारास करता है। उसके इस महारास का प्रताप से सारे संसार में दिव्य प्रेम का प्रसार होता है। और इसी दिन लक्ष्मी जी का भी जन्म दिवस माना और मनाया जाता है। यो जो साधक इस दिन चन्द्रमा और लक्ष्मी का संयुक्त उपासना करते है उनका कल्याण होता है। वेसे चन्द्रमा को ज्योतिषशास्त्र में स्त्री शक्ति का प्रतीक माना है। और अंकज्योतिष में 2 अंक का प्रतिनिधि माना है। यो चन्द्रमा ही आज के शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है। यो जो केवल चन्द्रमा की साधना करते है। उन्हें स्वयं ही चन्द्रमा के साथ लक्ष्मी जी की शक्ति का वरदान प्राप्त होता है।
साधना विधि:-
यो इस दिन सफेद वस्त्र पहने और सफेद वस्त्र के आसन पर बैठकर माला चाहे रुद्राक्ष या तुलसी या सफेद अकीक की हो उस पर जप करे, तो अधिक अच्छा है। एक भोजपत्र पर चन्द्रमा का मंत्र के साथ अपनी मनोकामना लिखकर चन्द्रमा के प्रकाश में एक घी का दीपक जलाकर उसके पास रखे और अगर खुले स्थान पर यज्ञ या पूजा नही कर सकता है। तो चन्द्रमा का दर्शन करता हुआ अपने बरामदे में इस प्रकार बेठे की चन्द्रमा उसे दिखाई देता रहे। और चन्द्रमा के महामंत्र का जो पूरी रात्रि करता हुआ यज्ञ करें। और साथ में दिव्य औषधियुक्त खीर बनाकर छलनी से उसे चन्द्रमा के प्रकाश में रखे और प्रातः 4 बजे जब चन्द्रमा छिपने को हो तब उन्हें कुछ भोग एक चन्द्रमा और 16 बार उनकी करणे रूपी स्त्री शक्ति पत्नियों को अर्पित करे। और तब स्वयं या परिजनों को प्रसाद रूप दे, तो चन्द्रमा से होने वाले सभी ग्रह दोष नष्ट होकर समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।और उस भोजपत्र पर अपने किये यज्ञ के शांत हो जाने पर उसकी यज्ञभूति यानि भभूति की एक चुटकी लेकर रखे और उसे मोड़कर चांदी के ताबीज में भरकर अपने गले में पहन ले,और बची यज्ञहुति को बहते पानी नहर नदी में डाल आये, तो उस भक्त को ये चन्द्र ताबीज अनेक आत्मिक व् भौतिक लाभ देगा।जिन पर गुरु मंत्र है, तो वो वही इस समस्त विधि से पूर्ण करें। और ध्यान में विस्वास करते है, तब तो इस रात्रि अधिक से अधिक जप के साथ ध्यान करें तो उन्हें ध्यान और दिव्य दर्शन की प्राप्ति होगी। क्योकि इस दिन चन्द्रमा के प्रभाव के कारण उनकी चन्द्र नाड़ी में विशेष शोधन होने से शरीर में चन्द्र तत्व की व्रद्धि विशेष होगी। इस चन्द्र शक्ति की व्रद्धि से मनुष्य साधक को अपने सूक्ष्म शरीर के इस शरीर से बाहर निकालने में विशेष साहयता मिलती है। चन्द्र मन का प्रतिनिधित्त्व करता है और आत्मा की समस्त भौतिक और आध्यात्मिक इच्छाओं के समूह का नाम मन यानि चन्द्रमा कहलाता है। और आज मंगलवार को या बुधवार को चन्द्र का प्रभाव मनुष्य के पूर्व जन्म के भाग्य के फल को सुद्रढ़ कर्म बनाकर करने में बड़ा साहयक है। क्योकि मंगल कर्म से भाग्य का प्रतिनिधि है।और बुध बुद्धि और ज्ञान का, यो ये अतिउत्तम योग है विशेषकर मंत्र सिद्धि की प्राप्ति करने वालों के लिए अतिशुभ है। इस दिन के मंगलवार और बुधवार को विशेषकर चन्द्र उदय के बाद किसी भी मन्दिर में जाकर खीर के प्रसाद को अधिक से अधिक बाटना चाहिए और सफेद वस्त्रों का दान करना चाहिए। मन्दिर में स्थित चन्द्रमा ग्रह की मूर्ति के सामने घी का दीपक अवश्य जलाये और उनके दर्शन करें और चावल का दान करें, सफेद तिल भी चढ़ाये तो सर्वकल्याण होगा। और जो मनोरोग से परेशान है रोगी ही बने रहते है।सदा दवाइयां खाते ही रहते है, उन्हें इस दिन जप पूजा यज्ञ स्वयं तो करें ही साथ ही किसी पण्डित या गुरु भाई बहिन सहयोगी से भी कराये। और ब्रह्म महूर्त में सफेद वस्त्रों का और सफेद मिठाई या कुछ न बने तो अधिक खीर बनाकर कुत्तों या भिखरियों को खाने को दे अत्यधिक लाभ होगा। और जिनके विवाहित जीवन में बाँधा आती है, विवाह दोष है, विवाह नही हो पा रहा है,उन्हें भी यही उपाय करने चाहिए। और जिनके गर्भ में सन्तान है उन्हें जप ध्यान करना चाहिए उससे सन्तान का मन उच्चारुढ़ होगा।जो मोती रत्न पहनते है या उनके पास उच्चकोटि का मोती रत्न पहनने की सामर्थ्य नही है, तो वे इस दिन एक शुद्ध चांदी का कड़ा अपने गुरुमंत्र या इष्ट मंत्र लिखा सीधे हाथ में पहने या चांदी का एक छल्ला लाये और उसे कच्चे दूध और गंगाजल में रात्रिभर चन्द्रमा की रौशनी में रख रहने दे। प्रातः स्नान कर अपनी सीधे हाथ की अनामिका या कंग की ऊँगली में धारण गुरु या चन्द्र मन्त्र से कर ले दूध मिश्रित जल को पोधे में चढ़ा दे। इससे चन्द्रमा के दोष समाप्त या कम होंगे और मन की चञ्चलता कम होगी शिक्षा व् कार्य में मन लगेगा क्रोध कम होगा।। इसी दिन श्री कृष्ण ने महारास रचाया था। ये महारास का अर्थ भी साधना जगत से ही है, नाकि किसी शारारिक आनन्द से है इस दिन कृष्ण जी की सौलह कला की सम्पूर्णता प्रकट अत्यधिक होती है। उनकी आत्मशक्ति का अधिक विस्तार होता है। यो जो कृष्ण भक्त उनका इस रात्रि भर जप ध्यान करता है। उसकी भी आत्मशक्ति भक्ति विशेष बढ़ती है।इस दिन सबसे उत्तम है गुरु मंत्र और ध्यान की जप साधना करना और गुरु का ध्यान करना सर्वसिद्धिदायक होता है।।यहाँ जो गुरु मंत्र लिए भक्त है उनके लिए मंत्र दिया जा रहा है–
लक्ष्मी जी और चंद्रमा का संयुक्त महामंत्र है:-
श्रीं चं चन्द्रमायै श्रीं।।
यहाँ श्रीं बीज मंत्र श्रीविद्या और महालक्ष्मी जी का है और यही चन्द्रमा का सोलह कला शक्तियों का भी महाबीजमंत्र है।।
यज्ञ के लिए-श्रीं चं चन्द्रमायै श्रीं फट् स्वाहा।।
पूर्णिमां देवी की साधना:-
और जो महावतार श्रीमद् सत्यई पूर्णिमाँ के भक्त है और सत्यास्मि दर्शन के भक्त साधक है।
उन्हें प्रेम पुर्णिमाँ देवी के सामने अखण्ड ज्योत करके सम्पूर्ण सिद्धासिद्ध महामंत्र सत्य ॐ सिद्धायै नमः की सोलह कलाएं युक्त बीजाक्षरों का जप करना चाहिए। जो इस प्रकार से है-
“सं तं यं अं उं मं सं ईं दं धं आं यं ऐं नं मं हं सत्य ॐ सिद्धायै नमः।।
और यज्ञ के लिए इन सोलह बीजाक्षरों के साथ जपे-सं तं यं अं उं मं सं ईं दं धं आं यं ऐं नं मं हं सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा।।
और पूर्णिमा महामंत्र की सौलह मंत्र देवी शक्तियों के नाम भी जपने चाहिए जो इस प्रकार से है-ॐ अरुणी यज्ञई तरुणी उरूवा मनिषा सिद्धा इतीमा दानेशी धरणी आज्ञेयी यशेषी ऐकली नवेषी मद्यई हंसी सत्यई पूर्णिमायै नमः स्वाहा।।
यो इन मंत्र शक्तियों के जपने से मंत्र में छिपी मन्त्रशक्तियां अपने स्वरूप में साधक में सोलह कलाओं के रूप में विकसित होकर प्रकट और दर्शन देती है। और साधक की आत्मा का मन्त्र स्वरूप प्रकट होता आत्मसिद्धि प्रदान करता है।।
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Ji guru ji.satyam om sidhaye nmah gueu ji.
Jay satya om siddhaye namah