श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज तंत्र त्राटक के तीन महत्त्वपूर्ण भाग पहले ही आपको बता चुके हैं।
आज स्वामी जी इसके चौथे भाग के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन कर रहे हैं। स्वामी जी आपको आज अन्तः ध्यान त्राटक का योग दर्शन ज्ञान और कापालिक त्राटक से अद्रश्य गुरु दर्शन या सिद्धकृपा सिद्धि का विज्ञानं के बारे में और इनके चमत्कार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
[भाग-4]
पहले अन्तः त्राटक के 2 प्रकारो को जाने-1-अन्तः त्राटक का योग ज्ञान यानि थ्योरी-2-त्राटक की क्रिया विधि यानि प्रक्टिकल:-
त्राटक दो प्रकार के होते है-1-बहिर त्राटक- जिसमें ऑंखें खुली रखकर किसी स्थिर लक्ष्य को निरंतर देखा जाता है।-2-अन्तः त्राटक-इसमें आँखे बंद करके अपने शरीर के किसी चक्र विशेष में स्थिर होकर मन की आँखों से देखते हुए त्राटक किया जाता है।
यहाँ आज का विषय है-अन्तः त्राटक..जिसे स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी अपने व्यक्तिगत अनुभव से आप साधकों को बता रहे है-आओ जाने:-
अन्तः त्राटक की थ्योरी:-
अन्तः त्राटक योग में संयम् विद्या के अंतर्गत आता है।संयम् एक योगिक अवस्था का नाम है।जो साधक की धारणा+ध्यान+सविकल्प समाधि का प्रारम्भिक स्तर होता है,इन तीनों को मिलाकर ही एक अवस्था कहलाती है-संयम्।यानि जब साधक अपने शरीर के किसी भी आंतरिक चक्र या शक्ति केंद्र में अपनी ऊर्जा+रूप की कल्पना के साथ अपने को वहां एकाग्र करता है।और निरन्तर कम से कम ढाई घण्टे उस अवस्था में रुक रुक कर यानि बार बार एकाग्रता बनाये रखकर बना रहता है।तब वो अवस्था धारणा कहलाती है।योग की इस धारणा अवस्था के अंतर्गत ही जितने भी प्रकार की किसी भी विषय प्रधान यानि भक्ति मार्ग हो या कर्म या ज्ञान मार्ग हो या योग मार्ग हो,वेसे ये सारे आपस में पूरी तरहां से जुड़े है-जैसे-पहले जिस किसी भी विषय को प्राप्त करना चाहते हो,उस विषय का पूरा ज्ञान प्राप्त किया जाता है की-ये कैसे किया जाता है और इसे अब मेरी प्रवर्ति के अनुसार कैसे करूँगा और इस ज्ञान प्राप्ति के बाद ही साधक उस ज्ञान के लिए कर्म करता है।यो ये कर्म यानि क्रिया करने का नाम ही कर्म योग कहलाता है और फिर इस कर्म यानि क्रिया योग को करता हुआ,उस किये क्रिया और उसके ज्ञान की निरन्तर करते रहने के प्रति अपना मन बनाये रखने का नाम ही भक्ति योग कहलाता है।भक्ति यानि बंटवारा।यानि अपने और ज्ञान और उसकी क्रिया की तीनों अवस्थाओं के बीच जो बंटवारे का सम्बंध है,उसे क्रम से एक करना ही भक्ति नामक विद्या कहलाती है।अब जब भक्ति यानि-साधक + उसका प्राप्ति का ज्ञान,+ प्राप्ति के लिए किया गया कर्म यानि क्रिया योग की तीन अवस्था एक होकर धीरे धीरे भक्ति बनकर बढ़ती है।तब उसकी नियमितता के चलते, साधक में उस सबके समझ आने, और उससे कुछ न कुछ दर्शन की प्राप्ति होते चलने से, इन सबसे लगाव यानि प्रेम हो जाता है और ये तीनों उससे छूटते नहीं है।तब भक्ति प्रगाढ़ होना कहलाती है।की अब ये पूरा भक्त है।अब साधक भक्त बन जाता है।तब ये ही तीनों अवस्था ही-धारणा बनती है और साधक अपने उस चक्र पर अपना सारी एकाग्रता लगाये रखता है यानि अभ्यास के पक जाने पर वहाँ एकाग्रता बनी ही रहती है।अब चाहे वो संसार का कोई भी कार्य कर रहा हो,तब उसे करते में उसका अपने विषय से एकाग्रता हटती नहीं है।इस अवस्था को धारणा की सिद्धि कहते है।इस अवस्था में भी साधक को अनेकों दर्शन अनुभूतियाँ होती है।और अब जब ये धारणा बने रहने पर साधक को अपने शरीर का भान नहीं रहता है।वो खोया सा रहता है।अब जब यहीं धारणा बढ़कर साधक को इसी खोये रहने के अवस्था में कम से कम डेढ़ से ढाई घण्टे बिना हिले डुले बनाये रखती है।तब ध्यान नामक अवस्था की प्राप्ति होती है।अब ध्यान में साधक को,वो जिस वस्तु-जैसे- पदार्थ यानि किसी तत्व-जैसे मूर्ति-शालिग्राम या शिवलिंग या जल,पृथ्वी आदि तत्वों पर अपना मन एकाग्र किये था और उन्हें बड़ी अच्छी तरहां देखता खोया रहता था।उसी अवस्था के बढ़ जाने पर उसे उस वस्तु को बनाने वाले तत्व-जैसे शिवलिंग और शालिग्राम या कोई भी मूर्ति का निर्माण पृथ्वी तत्व की अधिकता और जल तत्व और वायु तत्व की मात्रा कम होने से बना होता है।तब इनमें धारणा करने और इनके पीछे जो भी विराट भाव है,जिसे ईश्वरीय भाव का ज्ञान कहते है।उसके दर्शन होने प्रारम्भ होते है।यानि पहले ये शिवलिंग या शालिग्राम या कोई भी देव देवी की मूर्ति साधक की अंतर आँखों के सामने बनी ही रहती है और कभी कभी ये एकाग्रता से उसे उस वस्तु के पीछे जो और भी गहरा सूक्ष्म तत्व है,वो प्रकट होता है।जिसे प्रकाश कहते है।यानि सब साधक को वो मूर्ति आदि प्रकाशित और आभायुक्त दिखती है।यहाँ साधक स्थूल तत्वों की दुनियां से,उनके सूक्ष्म तत्वों के संसार या जगत या स्तर में प्रवेश करने लगता है।और यही सब अवस्था ध्यान नामक अवस्था कहलाती है।अब पहली दो धारणा+ध्यान,जो की एक दूसरे की ही उच्च अवस्था है यानि आप पहली कक्षा से दूसरी कक्षा में आ गए हो।तब साधक अपने शरीर का भान भूलकर यानि स्थूल शरीर से प्राण शरीर में मन शरीर में पहुँच जाता है।और ठीक इसी सूक्ष्म अवस्था यानि मन अवस्था में पहुँचने का नाम ही ध्यान कहलाता है।अब जब साधक ध्यान में बिना प्रयास के ढाई घण्टे बेठा रहता है।तब उसकी संयम् करने की अवस्था में दाखिला होता है।और अब साधक जो भी देख रहा था,वो उसे बिलकुल स्पष्ट और प्रकाशित और किस किस तत्व से ये बनी है।उस सबका बिलकुल साफ़ दर्शन और ज्ञान होना शुरू होता है और आगे चलकर जब ध्यान 3:30 घण्टे पहुँच जाता है।तब उसे समाधि नामक पूर्ण एकाग्रता की अवस्था की प्राप्ति होती है।यहां जो समाधि बताई है,वो पूर्ण एकाग्रता की पहली अवस्था है।समाधी का अर्थ है-सम आधी-यानि साधक+जो वो देख या अनुभूत कर रहा है,वो दोनों सम यानि बराबर यानि एक हो गए है,और अब ये सम अवस्था यानि समता की आधी अवस्था में साधक का प्रवेश हुआ है।ये समाधि का दूसरा नाम है-सुषम्ना यानि मन के भीतर जो उसकी शक्ति है,उसमें प्रवेश होना।और यहीं से समाधी की और भी ऊँची अवस्थाओं की शुरुवात होती है। और अब इस पहली समाधि में पूर्ण एकाग्रता के बल से, तब उसे उस वस्तु को बनाने वाले सभी त्रिगुण तत्व पर अधिकार होने लगता है। और साधक यहीं अवस्था में संकल्प सिद्धि की प्राप्ति करता है।यानि जो सोचेगा,वो उसे दिखेगी और उसके सामने अपने गुण और धर्म यानि शक्ति को प्रकट कर देगी।यहीं है संयम् के बल से साधक को इच्छित वस्तु की प्राप्ति।अब ये चाहे भक्ति मार्गी के भगवान के दर्शन होकर उनसे वरदान की प्राप्ति का विषय चमत्कार हो।या ज्ञानी का संकल्पित चमत्कार हो या कर्मी योगी की तत्व सृष्टि का चमत्कारिक विज्ञानं।यहाँ संयम् में पहुँचने पर ही योगी कहलाने की पहली डिग्री मिलती है।अब समझे की-इस संयम् अवस्था से ही योगी अपने सूक्ष्म शरीर के किसी भी चक्र में अपने मन की शक्ति से प्रवेश करके उस चक्र की शक्तियां को अपने अधिकार में कर लेता है।और यही सब का प्रारम्भ पहले बाहरी त्राटक क्रिया से और फिर अन्तः त्राटक क्रिया के करने से धीरे धीरे इसी बतायीं विधि से प्राप्त होता है।यो ये नहीं समझना की बस त्राटक करना शुरू किया और सिद्धि हासिल हो जाती है।केवल और केवल इसी धारणा+ध्यान+समाधि=संयम्-के त्राटक में पहुँचने से सिद्धि प्राप्त होती है।यो लगे रहो और जो चाहो सो पाओ।
अन्तः त्राटक का प्रक्टिकल के अंतर्गत-कापालिक त्राटक विधि:-
जिस भी भक्त साधक को अपने गुरु प्राप्ति को लेकर संदेह बना रहता हो की- मुझे मुक्त पुरुषों के दर्शन और कृपा की प्राप्ति नही होती है। उन सभी गुरु मंत्र लिए अथवा नही लिए भक्तों के लिए ये अति रहस्मय अन्तः त्राटक योग ध्यान विधि को बताया जा रहा है। जिसे कपालिक त्राटक योगक्रिया ध्यान विधि कहते है-
विधि:-
इसमें आप एकांत स्थान या अपने पूजाघर में सहजासन में बैठ जाये और सबसे पहले अपने सारे सिर को अपनी आँखे बंद करके अपने मन ही मन देखना प्रारम्भ करें। और धीरे धीरे अपने सिर के ऊपर के भाग जिसे कपाल कहते है। वहाँ एक उर्जात्मक ज्योति का काल्पनिक चित्रण की अनुभूति करते हुए ध्यान करें। ये प्रारम्भिक ध्यान अवस्था में केवल उर्जात्मक ज्योति का आपको काल्पनिक अहसास होगा।साधना करते चलते हुए, आगे चल कर यही उर्जात्मक ज्योति धुंध की यानि धुंधली आक्रति से,बदलती हुयी सच्ची ज्योति में बदलती जायेगी।इस अवस्था में अपने गुरु का आवाहन करते हुए,उनसे दर्शनों को देने की प्रार्थना करनी चाहिए और साथ ही-“”ॐ श्री गुरुवै नमः””मन्त्र का जप करते रहना चाहिए। ठीक इसी ज्योति में आपको अपने गुरु परम्परा के गुरु-महात्मा-सिद्धों के, जो मुक्त पुरुष है। उनके दर्शन की प्राप्ति होगी। यहाँ मुक्त पुरुष का अर्थ वे नहीं है, जिन्हें निर्वाण की प्राप्ति या मोक्ष की प्राप्ति हो गयी है।बल्कि यहाँ वे सिद्ध लोग है, जिनका अभी अपनी चलाई गयी धर्म पंथ परम्परा में उन्नति और सर्वोच्चता की प्राप्ति का उद्धेश्य शेष है।अतः इस त्राटक ध्यान में उन सन्तों के दर्शन होते है। वेसे ये आपके लिए अभी दर्शन देते में नए गुरु दर्शन लगेंगे,पर असल में ये आपके ही पूर्व जन्मों के वे गुरु होते है। जिनसे आपको प्रारम्भिक मंत्र दीक्षा की प्राप्ति हुयी है। और अभी शक्तिपात की शेष दीक्षा कृपा का अभी मिलनी शेष रह गया है। ये एक प्रकार से आपमें उन आपके ही पुर्जन्मों के गुरुओं की शक्तिपात दीक्षा की वर्तमान शक्ति और उसके दर्शन से अधिक कुछ नही है। तब भी सिद्ध गुरुओं और मुक्त पुरुषों से मंत्र और योग आदि के सूक्ष्म से लेकर, अति सूक्ष्म ज्ञान की सूक्ष्म प्रेरणा मिलती है। जिससे आपकी साधना जगत में तीर्व व् प्रमाणिक ज्ञान का सीधा विकास होता जाता है। यो जब ये कपालिक त्राटक ध्यान साधना करो। तब इसके साथ ही साथ जिनके पास पहले से अपने गुरु हो तो 11 माला अपने श्रीगुरु मंत्र का जाप अपने कपाल की उर्जात्मक ज्योति में ध्यान करते हुए करते रहे और जप की समाप्ति के उपरांत अब केवल शांत भाव से ध्यान में बैठे हुये, अपने कपाल की ऊर्जा ज्योति के बीच में ही चित्त को बनाये रखे। ऐसा नियमित अभ्यास साधना को कम से कम केवल 11 दिन अवश्य करें। और ज्यादा से ज्यादा सवा महीने ही करें। इसी बीच में आपको गहन ध्यान में अथवा ध्यान के उपरांत सोने के समय योगनिंद्रा में, जिसे तन्द्रा भी कहते है। उस में अवश्य गुरु की सिद्ध कृपा की प्राप्ति होगी। ओर जिन्हें पूर्वजन्म से अभी तक गुरु कृपा दीक्षा की प्राप्ति नही हुयी है। उन्हें साधना के क्षेत्र की और व् गुरु प्राप्ति की और जाने की प्रेरणा मिलेगी। और जिनके पास गुरु मंत्र नही है। वे भक्त साधक इस सिद्धासिद्ध महामंत्र का जप करें-“”सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा”” और इस अनुभूत सिद्ध प्रयोग से गुरु कृपा की महान सिद्धि पाएं।जिनके पास गुरु की दी सत्यास्मि ध्यान विधि है। उन्हें उसी के सही सही करने से ये सब कृपा हो जाती है।
इस ज्ञान और विज्ञानं को यहां मेने संछिप्त में बताया है ओर इसे साधक बार बार पढ़े और समझेगा,तो उसे त्राटक योग में कैसे तथाकथित गुरु मुर्ख बना रहे है।ये समझ आएगा की-ये इतना आसान नहीं है और यदि आसान है,तो कैसे??यहां पढ़कर निराश होने की आवश्यकता नहीं की-अरे ये क्या.,यही सब जाने बिना जो भी योग करता है,वो जल्दी उसे छोड़कर नए नए अधूरे त्राटकों की विधि करता हुआ भटकता फिरता है ओर हाथ कुछ नहीं आता ।यो इसे पहले समझना और फिर करना और अवश्य पाओगें।
शेष कभी अन्य लेख में बताऊंगा।
इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः