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कल है रक्षाबंधन, कब होगा शुभमहूर्त, और राखी बांधने का सही समय? रक्षाबंधन से पहले कैसे करें पूर्णिमां व्रत, क्या होंगे इसके लाभ? बता रहे हैं सब श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

रक्षाबंधन यानि भाई बहन के लिए सबसे बड़ा दिन, बहन अपने भाई की कलाई पर उसकी रक्षा के लिए रक्षाकवच के रूप में एक रेशम की डोर बांधती है जिसे हम राखी के नाम से जानते हैं। बहन भाई के अटूट रिश्ते की निशानी राखी भाई के हाथ पर बंधते ही उसे यह अहसास होने लग जाता है कि बहन का जो उसके लिए प्यार त्याग और तपस्या रही है वो कभी बेकार नहीं जाएगी। इसके अलावा भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी बहन को वचन देता है और आजीवन उसकी रक्षा करेगा और ऐसा वह प्रण भी लेता है।

बहन अपने भाई की माँ पूर्णिमाँ देवी और ईश्वर से लंबी आयु की कामना करती है।

खैर यह तो बात हुई राखी की विशेषता की। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं कि राखी के पवित्र त्यौहार को कैसे मनाएं? इसको मनाने का क्या सही समय होना चाहिए? और माँ पूर्णिमां देवी की पूजा कैसे करनी चाहिए?

इन सब सवालो के जबाव बता रहे हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज। अगर आपको जबाव जानने हैं तो स्वामी जी के द्वारा लिखी इन बातों को पढ़ें और माने जिससे कि आपका उद्धार हो सके।

रक्षा बंधन से पहले पूर्णिमां व्रत कैसे करें, क्या होंगे नियम? सब कुछ बता रहे हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज :

पूर्णमासी का व्रत आज शनिवार की यानि चौदस की शाम से प्रारम्भ रखें।
वैसे तो शाम का दैनिक भोजन नहीं करें।
और शाम से अगले दिन प्रातः तक की अखण्ड ज्योति जलाये।अपना अधिक से अधिक गुरु मंत्र और पूर्णिमां चालीसा आदि पूजापाठ जपे करें और
शाम को जब चंद्रमा उदय हो,तब जल का अर्ध्य चंद्रमा को देकर व्रत प्रारम्भ करें।
चाहे तो फलाहार करके अपने बिस्तर पर ही अधिक जप करते नींद आने पर जपते हुए ही सो जाये।यदि ज्योति बुझे तो उठकर हाथ मुख धोकर उसे फिर से जला दे।ज्योत खण्डित होने का यहां कोई दोष नहीं होता है।
और प्रातः उठकर स्नान करके खीर बनाकर पूजाघर में रखें और पूर्णिमां चालीसा और गुरु मंत्र आदि का जप पाठ आदि जो भी जिसकी पूजापाठ आदि है,उसे करते हुए सब समाप्त करके,अब अंत में उस खीर से तथा जल से,पूर्णिमाँ माता को भोग लगाये और जिन के पास पूर्णिमाँ देवी की मूर्ति या चित्र नहीं है,वे प्रातः जाते चंद्रमा को अर्ध्य देते हुए प्रणाम करें।
जिनके पास पूर्णिमाँ देवी की प्रतिमा है,वे उन्हें खीर और जल का भोग लगा कर फिर चंद्रमा को उसी खीर और जल का अर्ध्य दे,यहां ऐसा करना पूर्णिमां का झूठन चंद्रमा को देना नहीं हुआ।बल्कि चंद्रमा पूर्णिमां माता का ही प्राकृतिक रूप है,यो दोनों एक दूसरे के पूरक है।यो कोई झूठन आदि दोष नहीं होता है।
अब उसी खीर का भोग प्रसाद आप खाते हुए व्रत पूर्ण करें।और अन्य प्रातः के बाद के भोजन करें।
यही तक पूर्णमासी का सच्चा व्रत नियम पूर्ण है।
जिन को मेने कुत्ते को खीर देना बताया है,उन्हें कुत्ते को प्रातः अलग से खीर बनाकर दे।
जिन्हें रक्षा बन्धन पर भी अखण्ड ज्योति जलानी है तो अपनी प्रातः पूर्णिमां और चन्द्रमा पूजा समाप्त करके उसी दीपक में और घी डालकर शाम तक जलाये।
अब रविवार प्रातः से साय के 4 बजे तक ही रक्षा बन्धन मनाये।क्योकि 4 से 6 तक राहुकाल है।ये समय राखी बांधने का उत्तम समय नहीं है।

पूर्णिमाँ-व्रत विधि रहस्य ज्ञान:-
बहुत से भक्त चौदस को पुर्णिमां का व्रत रखते है,ये उत्तम है,पर इसमें जो रहस्य है,वे नहीं जानते है बल्कि उसका अनजाने में ही आधा ही पूरा करते है.होता यह है की-चौदस की साय के पहर से ही पूर्णिमां का दिवस प्रारम्भ होता है और पूर्णिमां से आगामी दिन की प्रातः तक बना रहता है,यो पूर्णिमां के प्रारम्भ के समय यानि चौदस की सायंकाल चन्द्र दर्शन से व्रत रखने के कारण लोग धीरे धीरे चौदस की प्रातः से ही व्रत रखने के ज्ञान से जुड़ते गए और भूल गए की-ये चन्द्रमाँ में जो सत्यनारायण भगवान और सत्यई पूर्णिमां देवी का जो एकल प्रेम का परमदिव्य शांति तथा प्रेम प्रज्ज्वलित व् उदित और महाज्ञान देने का जो प्रेम प्रकाश है,उसका दिवस है,और अब के भक्तों के अनुसार ये पूजा हो रही है-सूर्य नारायण की जो उनके जाते ही चन्द्रमाँ को अर्ध्य देकर समाप्त कर दी जाती है।यो ये चौदस की प्रातः से चौदस की सायकल तक का व्रत अपूर्ण और विशेष फलदायी व्रत नहीं होता है।अतः चौदस की रात्रि से चन्द्रमा में सत्य पूर्णिमां देवी की प्रेम ज्योत प्रकाश को जल का अर्ध्य देकर व्रत का प्रारम्भ किया जाता है और पूर्णिमां के आगामी दिन 24 घण्टे उपरांत प्रतिपदा की प्रातः भोर समय जब चन्द्रमाँ अस्त या विदा होता है तब प्रातः स्नान करके उन्हें खीर का भोग और जल का अर्ध्य दिया और व्रत का दान आदि से समापन किया जाता है।यो भक्तो इस प्रकार से पूर्णिमां का व्रत और सही विधि है।अव चूँकि सत्यास्मि मिशन के माध्यम से स्त्रीमहावतार श्रीमद् सत्य पूर्णिमाँ का जगत में दिव्य प्रतिमा के स्वरूप में अवतरण हुआ है,यो उन्हें और उनके श्री भगपीठ पर जाकर ही ये व्रत करें और जल सिंदूर का तिलक लगाकर आशीर्वाद ग्रहण करें।
वेसे भी भक्त देखेंगे की-चौदस की साय को उदित चन्द्रमाँ का रंग और प्रकाश नीलवर्ण का सुंदर होता है,ये नीलवर्ण प्रकाश श्रीमद् सत्यनारायण भगवान का होता है और जब रात्रि का महाक्षण में चन्द्रमाँ में नील और पीत यानि पीला रंग का मिश्रित प्रकाश होता है,तब सत्यनारायण भगवान और सत्यई पूर्णिमां का प्रेम मिलन का आशीर्वाद स्वरूप ये दिव्य प्रकाश होता है ओर पूर्णिमा की प्रातः को केवल पीले रंग का ही प्रकाश के दर्शन में पूर्णिमां माता के दर्शन होते है।यो ही पूर्णिमां माता की प्रतिमा पीतल धातु की बनवायी गयी है।यो मध्य रात्रि से प्रातः तक माता पूर्णिमां के दर्शन और आशीर्वाद की भक्तों को प्राप्ति होती है।
और महात्मा बुद्ध को भी अपना मोक्षीय ज्ञान सुजाता के माध्यम से पूर्णिमां माता के द्धारा ही उनके दिव्य प्रसाद खीर के ग्रहण से ही प्राप्त हुआ था।यो माता पूर्णिमां की महाकृपा स्वरूपी खीर का प्रसाद प्रचलन में है।।
और जिस दिन भक्त पूर्णिमां का व्रत रखें,उस दिन का एक समय का भोजन बनाकर किसी गरीब को दान करें।वेसे भी व्रत का अर्थ ये नहीं है की-आपने अपना एक समय का भोजन की सामग्री बचा ली और शाम को भोजन कर लिया।जबकि एक समय का भोजन ईश्वर के नाम से किसी भूखे को खिलाये।तब आपके किये व्रत का पूण्य आपको मिलेगा।इस लेख से भक्तों की पूर्णिमां व्रत विधि का रहस्य समझ आ गया होगा।
तथा पूर्णिमां को घी की अखण्ड ज्योत पूजाघर में जलाये और शाम को पूर्णिमां माता की आरती करने के बाद खीर का भोग देवी को लगा कर स्वयं खाये और अन्य भक्तों में बांटे।सामान्य भक्त सायंकाल में चन्द्रमाँ को जल का और खीर का अर्ध्य तथा भोग देकर स्वयं ग्रहण करें।
*उद्यापन:-*में भी देवी के वस्त्र किसी गरीब को भोजन और दक्षिणा के साथ दान करें।
अन्यथा सामान्य तौर पर अधिक से अधिक खीर बनाकर गरीबों या भक्तों में बांटें।।
प्रत्येक पुर्णिमां को सभी पूर्णिमां का व्रत रखने वाले भक्त ये दिव्य और सभी मनोरथ सम्पूर्ण करने वाली पूर्णिमाँ माता की आरती अवश्य करें….,

सत्यई पूर्णिमाँ आरती

ॐ जय पूर्णिमाँ माता,ॐ जय पूर्णिमाँ माता।
जो कोई तुमको ध्याता-2, मनवांछित पाता..ॐ जय पूर्णिमाँ माता।
सरस्वती लक्ष्मी काली,तेरे ही सब रूप-2-
ब्रह्मा विष्णु शिव भी-2,सत्य सत्यई स्वरूप।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
नवांग सिद्धासन तुम विराजो,श्री भगपीठ है वास-2..
इंद्रधनुष स्वर्ण आभा-2, ईं कुंडलिनी स्वास्-2।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
गुण सगुण निराकार तुम्ही हो,सब तीरथ तेरा वास-2..
सत्य पुरुष चैतन्य करा तुम-2,संग सृजित करती रास।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
अरुणी से हंसी तक तुममें,षोढ़ष कला हैं ज्ञात-2..
नवग्रह तेरी शक्ति-2,तेरी कृपा ही दिन रात।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
धन-वर-धर्म-प्रेम-जप माला,सोम ज्ञान सब बाँट-2..
धरा धान्य सब तेरे-2,तेरी उज्वल ज्योत विराट।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।
विश्व धर्म का सार ही तू है,मोक्ष कमल ले हाथ-2..
सिद्ध चिद्ध तपि युग और हंसी-2,बारह युग की नाथ।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
सत् नर तेरा जीवन साथी,व्रत चैत पुर्णिमाँ-2..
बांधें प्रेम की डोरी-2,लगा भोग सेब का।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।
अरजं पुत्र हंसी तेरी कन्या,तेरी सुख छाया में मात-2..
हम संतति तुम्हारी-2,तुझे सुख दुःख मेरे ज्ञात ।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
पूर्णमासी का व्रत जो करता,जला अखंड घी ज्योत-2..
जो चाहे वो पाता-2,इच्छित देव ले न्यौत।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
चैत्र जेठ क्वार पौष की,चार नवरात्रि ध्याय-2..
जल सिंदूर जो चढ़ाये-2-सब ऋद्धि सिद्धि पाएं।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।
जो करता है आरती नित दिन,सुख सब उसे मिले-2..
मोक्ष अंत में पाता-2,सत पूर्णिमाँ ज्ञान खिले।।ॐ जय पूर्णिमाँ माता।।

स्वामी सत्येंद्र “सत्य साहिब जी” रचित श्री मद् सत्यई पूर्णिमाँ आरती सम्पूर्ण

जय पूर्णिमाँ माता

*****

श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः

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