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नीतीश कुमार के मन में कुछ तो ऐसा चल रहा है जो गठबंधन की गांठ को खोलने का काम कर रहा है

 

 

मनीष कुमार की कलम से…

सीबीआई छापों और केंद्र की नज़र की वजह से आजकल आरजेडी और जेडीयू में ठनी हुई है। इसके अलावा नीतीश कुमार का राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन करना कुछ आरजेडी और कांग्रेस के नेताओं को नहीं जमा जिसके बाद दोनों पार्टियों के नेताओं ने नीतीश कुमार पर जमकर निशाना भी साधा।
और अब जब लालू के परिवार के पीछे केंद्र सरकार का तोता लगा है तब से जेडीयू के नेता चोरी छिपे लालू परिवार को अपने निशाने पर ले रहे हैं।

नीतीश कुमार के मन में कुछ तो ऐसा चल रहा है जिसकी वजह से गठबंधन खतरे में पड़ सकता है। भाजपा से लड़ने और मोदी लहर को रोकने के लिए बना महागठबंधन कहीं न कहीं अब हिचकोले खा रहा है। आज जनता दल यूनाइटेड की बैठक में भी खुलकर सामने आया। नीतीश कुमार ने प्रेस वार्ता में साफ तौर पर कहा कि “वो घोटाले नहीं करते, जो घोटाले करते हैं उनको सोचना पड़ता है और डरना पड़ता है।”
नीतीश कुमार की ये बात लालू परिवार की तरफ साफ इशारा थी कि लालू को इस पर मंथन करना होगा और तेजस्वी पर लगे आरोपों का जबाव देना होगा।
नीतीश ने जबाव देने के लिए वक़्त भी तय कर दिया है। लालू को 4 दिन का वक़्त दिया गया है जिसमें उन्हें तेजस्वी यादव पर अपना रुख साफ़ करने के लिए कहा गया है।

नीतीश का लालू परिवार के पक्ष में न बोलना भी कहीं न कहीं दर्शाता है कि वो इस गठबंधन से मोह भंग कर चुके हैं। वरना एक दोस्त की तरह वो लालू की इस मुसीबत की घड़ी में कम से कम साथ तो खड़े नजर आते। इतना ही नहीं राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश का एनडीए के उम्मीदवार को गठबंधन से हटकर समर्थन करना भी कुछ न कुछ इशारा करता है।

तो क्या इसको जबर्दस्ती का गठबंधन कहा जाए?
अगर इसको जबर्दस्ती का गठबंधन कहा जाए तो गलत न होगा। एक तरफ तो नीतीश कुमार अलग दिशा में चल रहे हैं और दूसरी ओर लालू इसको बचाने की हर मुमकिन कोशिश करते दिख रहे हैं।

दरअसल लालू हर बार कांग्रेस के साथ हर मोर्चे पर खड़े नजर आए हैं। लालू को राजनीति की नींव मजबूत करने वाला नेता भी बताया जाता है।
लालू को जोड़तोड़ करने और अपने दुश्मन को कमजोर करने के लिए हर तरीके को अपनाने में माहिर माना जाता है।
यही कारण है कि मोदी लहर बिहार में अपना रंग न दिखा सकी और वोटरों को अपनी बाढ़ में ना बहा सकी।

केंद्र में मोदी सरकार विपक्ष को हर तरीके से ख़त्म करने की चाल चल रही है। अगर विपक्ष ही ख़त्म हो जाएगा तो ना सवाल होंगे ना जबाव और ना रहेगी अड़चन। वैसे ये काफी हद तक संभव होता भी दिख रहा है विपक्ष सिमटता जा रहा है और पक्ष बढ़ता जा रहा है।
लालू, ममता, कांग्रेस और केजरीवाल केंद्र सरकार की नाक में दम करते जा रहे हैं। जिस कारण बंगाल इस वक़्त पूरी तरह से आग में झुलस रहा है। जरा सी बात पर दंगों की आग बंगाल को झुलसा रही है।
लालू और केजरीवाल सबीआई की मार झेल रहे हैं।

नीतीश का भाजपा प्रेम भी इसी ओर इशारा करता है। चूंकि कांग्रेस लगभग सभी राज्यों में ठंडी पड़ चुकी है लेकिन क्षेत्रीय दलों का अभी भी बोलबाला है। बहुत सारे क्षेत्रीय दल एनडीए के हिस्सा बन चुके हैं या परोक्ष रूप से एनडीए के समर्थन कर रहे हैं। लेकिन बिहार, बंगाल और दिल्ली अपनी-अपनी जगह अडिग नज़र आ रहे हैं।
बिहार में अगर नीतीश हिलते हैं तो सरकार का कोई मतलब नही रह जाता है इस सूरत में या तो चुनाव होंगे या जोड़तोड़ की राजनीति से भाजपा समर्थित नीतीश की सरकार चलेगी।

इसी वजह से बिहार में महागठबंधन ख़तरे में नज़र आ रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज पार्टी के विधायकों, सांसदों, जिला पदाधिकारियों की बैठक बुलाई। सरकार की सहयोगी पार्टी आरजेडी के प्रमुख लालू यादव और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के सीबीआई छापों के बाद यह अहम बैठक थी। जिसमें गठबंधन को लेकर फैसला होना था। और नीतीश कुमार ने किया भी वही। गेंद लालू के पाले में डालते हुए तेजस्वी यादव पर फैसला लेने के लिए दबाव बनाया है।

इस अनिश्चितता पर बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यांद राय ने बडा बयान दिया है। नित्यानंद ने कहा है कि बीजेपी नीतीश कुमार को बाहर से समर्थन दे सकती है। इसका मतलब यह है कि बीजेपी चाहती है नीतीश लालू के समर्थन की परवाह न करें। नीतीश तेजस्वी को बर्खास्त करें इसके बाद अगर सरकार पर संकट आएगा तो बीजेपी बचा लेगी। भाजपा अच्छी तरह से जानती है कि अगर नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर एक्शन लिया तो उधर रिएक्शन होना लाजमी होगा और वो इस मौके को भुनाने में पूरी तरह तैयार नज़र आ रही है।

आपको बता दें कि इससे पहले सोमवार को आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने आरजेडी विधायकों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में निर्णय लिया कि तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे। बैठक में राष्ट्रपति चुनावों को लेकर भी चर्चा की गई। देश में मौजूदा हालात पर चर्चा की गई।

 

खैर देखना यह दिलचस्प रहेगा कि केंद्र सरकार के तोते से परेशान लालू अपने परिवार के साथ-साथ इस गठबधंन को बचाने में कितने कामयाब रहते हैं। क्या अटूट रहेगा गठबंधन, या टूट जाएगा महागठबंधन?
या लालू अरुणाचल प्रदेश की कांग्रेस की सरकार की तरह मोदी शाह के मास्टरस्ट्रोक में फंसकर चलते बनते हैं।

***

 

मनीष कुमार

manish@khabar24.co.in

+91 9654969006


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