नई दिल्ली। लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान आज का दिन राजनीतिक हलकों में सबसे चर्चित बन गया, जब समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग और सत्तारूढ़ भाजपा पर ऐसा तीखा प्रहार किया कि कुछ देर के लिए सदन का माहौल ठहर-सा गया। चुनाव सुधारों पर शुरू हुई चर्चा अचानक एक बड़े राजनीतिक टकराव में बदल गई।
अखिलेश यादव का सीधा निशाना: “चुनाव आयोग निष्पक्ष हो जाए… तो भाजपा का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाएगा”
चर्चा के दौरान अखिलेश यादव ने बिना किसी लाग-लपेट के चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अगर आयोग पूर्णत: निष्पक्ष तरीके से काम करे, तो भाजपा का चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदल जाएगा। यह बयान विपक्षी बेंचों की तालियों के बीच आया और सदन में हलचल बढ़ गई।
रामपुर उपचुनाव का उदाहरण: प्रशासनिक दखल का आरोप
अखिलेश यादव ने रामपुर उपचुनाव का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां प्रशासन की भूमिका बेहद संदिग्ध रही। उनका दावा था कि मतदाताओं को घरों से बाहर निकलने ही नहीं दिया गया और शिकायतों के बावजूद चुनाव आयोग ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
उन्होंने सवाल उठाया “अगर कार्रवाई हुई हो, तो सदन को बताया जाए!”
EVM बनाम बैलेट पेपर बहस फिर तेज
अखिलेश ने जापान, जर्मनी जैसे देशों का उदाहरण देते हुए पूछा कि जब विकसित राष्ट्र बैलेट पेपर से चुनाव करा सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं? उनकी इस टिप्पणी ने एक बार फिर EVM पर उठ रहे राजनीतिक सवालों की गर्मी बढ़ा दी।
मीडिया स्पेस, सोशल मीडिया खर्च और इलेक्टोरल बॉन्ड पर बड़ा तंज
अखिलेश ने चुनावी पारदर्शिता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मीडिया कवरेज से लेकर सोशल मीडिया प्रचार, और इलेक्टोरल बॉन्ड की फंडिंग—ये सभी तत्व भाजपा को स्पष्ट लाभ पहुंचाते हैं। उन्होंने कांग्रेस पर भी निशाना साधते हुए कहा कि विपक्ष की बड़ी पार्टियाँ भी अपने बॉन्ड की जानकारी उजागर नहीं करतीं।
SIR सिस्टम, मतदाता रोक और पहचान व्यवस्था पर गंभीर आरोप
यूपी में SIR (Sensitive Information Report) को लेकर अखिलेश ने कहा कि इससे 10 मौतें हो चुकी हैं।
उन्होंने वोट चोरी, एक व्यक्ति द्वारा कई वोट डालने, और मतदाता दमन जैसे मामलों को भी चुनाव आयोग की “कार्य संस्कृति पर सवाल” बताते हुए उठाया।
पहचान व्यवस्था पर उन्होंने आरोप लगाया कि यूपी में अंदरखाने में “NRC जैसा सिस्टम” चल रहा है, जो लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा प्रहार है।
भाजपा सांसदों की टोकाटाकी पर तीखी प्रतिक्रिया
जब कुछ भाजपा सांसदों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो अखिलेश ने पलट कर कहा—
“आप किस मुंह से बोलते हैं? कभी इधर, कभी उधर हो जाते हैं।”
इसके बाद सदन में कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा छा गया और विपक्षी बेंचों पर तालियों की गूंज सुनाई देने लगी।
क्या संसद का ये टकराव अब सड़कों तक पहुंचेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बहस के बाद आने वाले महीनों में चुनावी पारदर्शिता, EVM, बैलेट पेपर, और इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे मुद्दे फिर से राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में आ सकते हैं।
सवाल यह भी है कि क्या क्षेत्रीय पार्टियों के लिए यह संघर्ष अब और आक्रामक रूप लेगा?
जनता की नजर अब किस पर?
अखिलेश यादव के इस आक्रामक भाषण ने दो बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं—
- क्या चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल और गहरे होंगे?
- क्या भारत दोबारा बैलेट पेपर की दिशा में लौटने की तैयारी करेगा?
और अंत में…
संसद में आज का टकराव सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं था, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद—मतदान प्रक्रिया—पर सीधा सवाल था। आने वाले दिनों में यह बहस और तीखी होने वाली है।
अगर आप इस विषय पर अपनी राय देना चाहते हैं, तो बताइए—
क्या भारत में EVM की जगह बैलेट पेपर को वापस लाना चाहिए?
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