
एक ओर राजस्थान, महाराष्ट्र समेत देश के कई प्रदेशों में सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था बेहद अच्छी है तो वहीं हरियाणा और यूपी में सरकारी शिक्षा व्यवस्था को सरकारें ध्वस्त करने में जुटी हुई हैं। शिक्षा पर हर एक नागरिक का अधिकार है। और समान अधिकार है। भारतीय संविधान में शिक्षा व्यवस्था पर बहुत जोर दिया गया है। भारतीय संविधान के मुताबिक देश के हर नागरिक को शिक्षित होना चाहिए, पढ़ना चाहिए। हर किसी को समान शिक्षा का अधिकार भी संविधान देता है। लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा गैर सरकारी हुई, वैसे-वैसे शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त होती गई।
हरियाणा यूपी में शिक्षा व्यवस्था का यह हाल है कि यहां अमीरों के लिए अलग तो गरीबों को अलग शिक्षा व्यवस्था है। इतना ही नहीं गरीब का बच्चा पढ़ाई न करे इसके लिए भी सरकार भारी कदम उठा रही है। यूपी में शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है तो वहीं स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं और जो हैं वो ठीक से पढ़ा नहीं रहे हैं।

हरियाणा तो यूपी से एक कदम और आगे चला गया है यहां अब सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों से 500 रुपये फीस वसूलनी शुरू कर दी है। और गैर सरकारी स्कूलों को बढ़ावा देने के लिए गरीब का बच्चा अगर प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है तो उसके लिए सरकार 1100 रुपये माफ करेगी। मतलब बाकी फीस गरीब को ही देनी पड़ेगी।
है ना अच्छा मजाक। एक गरीब जो महीने में महज 10000 रुपये भी ठीक से मजदूरी नहीं कमा पाता है वो सरकारी स्कूल में 500 रुपये देगा और गैर सरकारी स्कूल में 1000 रुपये देगा। जिसमें की सरकार सब्सिडी भी दे रही है।

ज्यादातर देशों में शिक्षा मुफ्त में दी जाती है क्योंकि भारत को छोड़कर बाकी देशों का मानना है कि अगर देश शिक्षित होता है तो उतना ही सम्पन्न होता है। लेकिन भारत अगर शिक्षित हुआ तो नेताओं की रैलियों में भीड़ कहाँ से आएगी? सड़कों पर हंगामा कौन मचाएगा। कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन कुछ कथित लोगों की भावनाएं आहत हो जाएंगी। इसीलिए हम उतना ही कहेंगे जिससे कि किसी की भावनाएं आहत न हों।
खैर भावनाएं तो इस आर्टिकल से भी आहत होंगी क्योंकि ऐसे लोगों को केवल नेताओं से मतलब होता है इन्हें देश की तरक्की से कोई मतलब नहीं।
बता दें कि हरियाणा बीजेपी की खट्टर सरकार का एक तुगलकी फरमान जारी हुआ है। नए फरमान के अनुसार, सरकारी स्कूलों में पढ़ने पर खुद देनी पड़ रही है 500 रू फीस और प्राइवेट स्कूलों में दाखिला लेने पर 1100 रू फीस सरकार भरेगी।

इस योजना के तहत हरियाणा सरकार पहली से बाहरवीं तक के बच्चों का दाखिला पास के प्राइवेट स्कूलों में कराएगी और इनकी सारी फीस हरियाणा सरकार प्राइवेट स्कूलों को देगी।
राजकीय विद्यालयों को सिर्फ और सिर्फ निजीकरण करने की चाल है। क्योंकि इसमें इंग्लिश मीडियम के नाम पर गरीब बच्चों से दाखिला फीस व 200 से लेकर ₹500 मासिक फीस वसूल की जाएगी।
वहीं यूपी में अगर 2 बहनें एक साथ किसी निजी स्कूल में पढ़ रही हैं तो एक कि फीस सरकार माफ करेगी। यूपी सरकार का भी निजी शिक्षा व्यवस्था पर ज्यादा जोर है। यूपी ही नहीं बल्कि देश के तमाम निजी स्कूल मोटी-मोटी रकम वसूलते हैं और रिजल्ट अच्छा करने के लिए वो क्या कुछ नहीं करते यह किसी से छिपा नहीं है।
आपको याद होगा कि बिहार में एक बार टॉपर्स को लेकर कितना हंगामा हुआ था। बिहार में जिन बच्चों ने टॉप किया था उनका स्टिंग ऑपरेशन हुआ था वो बच्चे अपने सब्जेक्ट भी ढंग से नहीं बता पाए थे। लेकिन जब गैर सरकारी स्कूल के बच्चे 99.99% मार्क्स लाते हैं तो किसी की हिम्मत नहीं होती ऐसे बच्चों का स्टिंग करने की, क्योंकि ज्यादातर छात्र बहुत बड़े स्कूल में पढ़ रहे बहुत बड़े माँ बाप के बच्चे होते हैं। अब ऐसे में स्टिंग तो छोड़िए उनके घर के दरवाजे तक पत्रकार का जाना बहुत बड़ी बात हो जाएगी।

देश में सरकारी शिक्षा व्यवस्था और गैर सरकारी शिक्षा व्यवस्था अब अमीर-गरीब की नाक की बात बन चुका है। सरकारी स्कूलों में यदि कोई पढ़ाना भी चाहे तो लोग ऐसे इंसान को अलग ही नजर से देखने लगे जाते हैं। बोलते हैं कि बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा लिया होता, पैसे हम दे देते। और गैर सरकारी स्कूल का हाल यह है कि वहां 2000 रुपये कम से कम महीने की फीस होती है इसके अलावा 1000 रुपये महीने के बच्चे के अलग से खर्चे हो जाते हैं। यानि देखा जाए तो गैर सरकारी स्कूल में एक बच्चे को कम से कम 5-10 हजार रुपए महीने के खर्च करने पड़ जाते हैं। लेकिन बहुत से प्राइवेट स्कूल में तो एक बच्चे पर 50000-100000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं। यह हाल है भारतीय शिक्षा का।
हम यह नहीं कह रहे हैं कि गैर सरकारी शिक्षा व्यवस्था गलत है या इसे खत्म किया जाना चाहिए। इसकी मॉनिटरिंग जरूरी है। शिक्षा के लिए अमीर गरीब की खाई को पाटना बेहद जरूरी है। अमीरों को यदि बहुत ही आलीशान 5 स्टार स्कूल में पढ़ाना है वो पढ़ाएं लेकिन गरीबों से उनकी शिक्षा का अधिकार न छीनें। सरकारी स्कूल की इस वक़्त जो बदहाली हो रही है उसे ठीक करना बेहद जरूरी है। बहुत सारे सरकारी स्कूलों का तो यह हाल है कि बच्चों को बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं हैं उन्हें नीचे बैठकर पढ़ना होता है। शिक्षक मोबाइल में गेम खेलते रहते हैं और बच्चे मस्ती करते रहते हैं। कई जगह तो सरकारी स्कूलों की इमारते बहुत पुरानी हैं जर्जर हालत में हैं। अब आप खुद सोचिए क्या हाल बनता जा रहा है सरकारी शिक्षा व्यवस्था का।

वहीं सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने की ओर जो कदम उठाए जा रहे हैं इस ओर लोगों को ध्यान देना चाहिए। शिक्षा पर हर किसी का अधिकार है जितना अमीर का है उतना गरीब का भी है। “अगर पढ़ेगा भारत तो बढ़ेगा भारत” इस ओर सरकारों को ध्यान देना चाहिए। लेकिन हमारे यहां जो माननीय बनते हैं वहीं अनपढ़, गुंडे होते हैं यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है भारत का। माननीय बनने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं है। यहां एक गुंडा, अनपढ़ भी सर्वोच्च गद्दी पर बैठ सकता है। अब आप खुद सोचिए कि जब अनपढ़ देश की बागडौर संभालेगा तो वो किसी के लिए क्या करेगा या उसे कितनी समझ होगी? हम यह नहीं कह रहे हैं कि अनपढ़ व्यक्ति गंवार होता है लेकिन बहुत सारी चीजें हैं जिन्हें जानने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी है।
यही वजह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त होती जा रही है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
अब आपके लिए बड़ा सवाल… क्या ऐसे ही देश आगे बढ़ेगा और तरक्की करेगा?
ब्यूरो रिपोर्ट : मनीष कुमार अंकुर, खबर 24 एक्सप्रेस